श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की हालत पस्त, महंगाई पहुंची आसमान पर

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sr lanka economic crisis
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पड़ोसी मुल्क श्रीलंका इस समय सीरियस फाइनेंशियल क्राइसिस से जूझ रहा है. वहां महंगाई आसमान पर पहुंच चुकी है. दिसंबर में वहां खुदरा महंगाई दर बढ़कर 14 फीसदी पर पहुंच गई. नवंबर में वहां महंगाई दर 11.1 फीसदी थी. उसके मुकाबले यह भारी उछाल है. फूड और फ्यूल क्राइसिस के कारण वहां की इकोनॉमी की हालत पतली हो गई है. श्रीलंका के सांख्यिकीय कार्यालय ने शनिवार को मुद्रास्फीति बढ़ने की जानकारी दी. नवंबर में मुद्रास्फीति पहली बार दहाई के आंकड़े में पहुंची थी. यह लगातार दूसरा महीना है जब मुद्रास्फीति दो अंकों में बनी हुई है. राष्ट्रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के हिसाब से दिसंबर में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 6.3 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि गैर-खाद्य वस्तुओं की कीमतें 1.3 फीसदी बढ़ीं.

श्रीलंका इस समय विदेशी मुद्रा संकट से जूझ रहा है. उसका विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घट रहा है. इससे श्रीलंका की मुद्रा का मूल्य घट रहा है और आयात भी महंगा हो रहा है. इस स्थिति में भारत ने भी अपने पड़ोसी देश श्रीलंका को 90 करोड़ डॉलर से अधिक का कर्ज देने की घोषणा की थी. इससे देश को विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने और खाद्य आयात में मदद मिलेगी.

वहां की सरकार ने विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण आयात पर कई तरह का प्रतिबंध लगा दिया है. इसके कारण वहां कई जरूरी सामानों की किल्लत हो गई है. मांग बनी रहने के कारण महंगाई लगातार बढ़ रही है. खासकर फूड इंफ्लेशन में तेजी से हालात और बिगड़ गए हैं. दिसंबर में वहां फूड इंफ्लेशन बढ़कर 21.5 फीसदी पर पहुंच गया, जबकि नवंबर में यह 16.9 फीसदी था. कमजोरी क्वॉलिटी के फर्टिलाइजर के इस्तेमाल के कारण वहां सब्जियों और फलों के उत्पादन में भारी कमी आई है.

2019 में गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका की कमान संभाली थी. उस समय विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 बिलियन डॉलर था जो दिसंबर के अंत में घटकर 3.1 बिलियन डॉलर रह गया है. वर्तमान में उसके पास केवल दो महीने के आयात के लिए फॉरन रिजर्व बचा हुआ है. श्रीलंका पर विदेशी कर्ज 35 बिलियन डॉलर का है. ऐसे में इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसियों ने सॉवरेन रेटिंग को घटा दिया है. हालांकि, सरकार लगातार कह रही है कि वह अपने जरूरतों को पूरा करने में अभी भी सक्षम है.

विशेषज्ञों का कहना है कि, कोरोना महामारी, विभिन्न परियोजनाओं के लिए विदेशों से उधार लेने की हड़बड़ी (विशेष कर चीन से) और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के रातों-रात कृषि क्षेत्र में “शत प्रतिशत जैविक खेती” शुरू करने के फैसला, वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार है. गोटाबाया ने देश के कृषिविदों और वैज्ञानिकों से परामर्श किए बिना, देश की कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया. वैचारिक दृष्टि से ‘जैविक खेती’ की शुरुआत की घोषणा करना एक बात है, और इस पर अमल करना बड़ा कठिन हे. इसके लिए वैज्ञानिक तरीकों से विभिन्न स्थर पर लागू करने की आवशकता है. उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने भी इस फैसले को उचित महत्व नहीं दिया. नतीजतन, श्रीलंका के कृषि क्षेत्र को अभूतपूर्व फसल विफलता का सामना करना पड़ा और देश को खाद्यान्न की कमी से जूझना पर रहा है.. एक साल में खाद्यान्न उत्पादन घटकर एक चौथाई रह गया है.