भारत की तरह पड़ोसी देश नेपाल में भी किसान सड़कों पर, सरकार से वार्ता को तैयार नहीं

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भारत की तरह पड़ोसी देश नेपाल में भी किसानों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया है। गन्ने की बकाया राशि के भुगतान के लिए वे काठमांडो की सड़कों पर आ डटे हैं। लेकिन सरकार टस से मस नहीं हो रही। बल्कि मंत्रियों ने आंदोलन को बिचौलियों द्वारा भड़काए के आरोप लगा दिए। इसके बाद अब किसान सरकार से बातचीत को भी राजी नहीं हैं।

रविवार को शुरू हुआ आंदोलन लगातार बढ़ रहा है। वे सरकार को कदम उठाने के लिए कह रहे हैं, इसके लिए अलावा उन्हें कोई बातचीत नहीं करनी है। इसी मामले में गृह मंत्रालय ने जनवरी में आदेश दिए थे कि बकाया भुगतान न करने वाली चीनी मिलों पर कानूनी कार्रवाई होगी। लेकिन साल खत्म हो रहा है और किसानों को कोई राहत नहीं मिली, न कोई मिल मालिक गिरफ्तार हुआ। इससे सरकार पर किसानों का विश्वास खत्म हो रहा है। मंगलवार को गृहमंत्री राम बहादुर थापा ने उद्योग व आपूर्ति मंत्री लेखराज भट्टा, कृषि व पशुपालन मंत्री घनश्याम भूसल, सामान्य प्रशासन मंत्री हृदयेश त्रिपाठी व अधिकारियों से बैठक कर विभिन्न जिलों के प्रशासन को फिर आदेश दिया कि गन्ना मिल मालिकों पर कानूनी कार्रवाई करें। लेकिन क्या कदम उठाए जाएंगे, यह अब भी नहीं बताया।

किसानों को थापा के आदेश पर विश्वास नहीं है। गन्ना किसान संघर्ष समिति संरक्षक राकेश मिश्रा ने कहा कि जब तक सरकार पैसा नहीं दिलवाती, आंदोलन जारी रहेगा। किसानों ने थापा व मिल मालिकों से बैठक का निवेदन भी ठुकरा दिया। मिश्रा ने कहा कि सरकार चाहे तो प्रधानमंत्री राहत कोष से किसानों को भुगतान करवा सकती है और इसकी ब्याज सहित वसूली मिल मालिकों से कर सकती है।

मंत्री लेखराज भट्टा ने सोमवार को कहा कि आंदोलन में किसान नहीं बिचौलिए हैं। उन्होंने यह बात मिल मालिकों के हवाले से कही। राकेश मिश्रा ने जवाब में कहा कि जब सरकार को समझौता करना होता है तो हमें किसान मानती है लेकिन अभी बिचौलिया बता रही है। आम जनता किसानों का समर्थन कर रही है, इसलिए सरकार उनका चरित्र हनन कर रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार मंत्रियों के बयान से सरकार विश्वास खो चुकी है। मिल मालिक भी 55 करोड़ बकाये का ही दावा कर रहे हैं, किसानों के अनुसार 90 करोड़ की रकम बकाया है। किसानों के सामने अगली फसल लगाने की भी चिंता है, पैसा मिलने पर ही वे बुआई कर पाएंगे। यह जीवनयापन का प्रश्न है, इसलिए वे अपना पैसा मिलने तक वापस लौटने को तैयार नहीं।