फिल्म: गहराइयां
प्लेटफॉर्म- अमेजन प्राइम वीडियो
कलाकार : दीपिका पादुकोण, सिद्धांत चतुर्वेदी, अनन्या पांडे, धैर्य करवा, रजत कपूर, नसीरुद्दीन शाह
निर्देशक : शकुन बत्रा
निर्माता- करण जौहर, हीरू जौहर, शकुन बत्रा, अपूर्व मेहता।
अवधि- 2.28 घंटा।
रेटिंग- 2.5/5
कभी कॉमेडी, कभी ड्रामा, कभी रोमांस तो कभी मिस्ट्री-थ्रिलर के रूप में बेवफाई की कहानियां पर्दे पर आती रही हैं, यूं तो शादी के बाद अफेयर और बेवफाई की कहानियां हम सभी ने बॉलीवुड में कई बार बनते देखी है,लेकिन ‘गहराइयां’ इस टॉपिक को और गहराई से दिखाती है. फिल्म में एक रिश्ते के होते हुए भी उसके खत्म होने के कारणों पर बात की है.
‘गहराइयां’ की कहानी मुख्य रूप से चार किरदारों अलिशा, टिया, जेन और करण की है। चारों ही किरदार अपने-आप से किसी ना किसी तरह जूझ रहे हैं। अपनी निजी जिंदगी की उलझन को सुलझाने के लिए किसी दूसरे रिश्ते की पनाह लेना चाहते हैं,अलीशा एक योग इंस्ट्रक्टर है। जैन एक रियल एस्टेट का हॉटशॉट। पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच एक अट्रेक्शन पैदा होता है। दोनों समय के साथ इस नए रिश्ते की गहराइयों में गोते लगाने लगते हैं। लेकिन भावनाओं से इतर एक असल दुनिया भी है, जिसकी सच्चाई इस रिश्ते को बड़ा झटका देती हैं। अलीशा की कजिन है टिया , जिससे जैन की शादी होनी हैं , दोनों अमेरिका से मुंबई आते हैं. जो अरबपति हैं. जेन रियल-एस्टेट बिजनेस में है और अलीबाग में सैकड़ों करोड़ का प्रोजेक्ट डेवलप कर रहा है, जो पूरी फिल्म में नजर नहीं आता.अलीशा भी छह साल से करण के साथ लिव-इन रिलेशन में है।
चारों अलीबाग में कुछ अच्छे पल बिताने जाते हैं. वहां फ्लर्ट करते-करते अलीशा-जेन एक-दूसरे के नजदीक आ जाते हैं. दोनों भले ही अपनी जिंदगी में पार्टनर्स को पा चुके हैं, लेकिन फिर भी खुद को अधूरा महसूस करते हैं. दोनों के रिश्ते अपने पार्टनर्स के लिए खास नहीं चल रहे हैं. अलीशा और करण में रोज लड़ाई होती है और जेएन, टिया के लिए अब वैसा महसूस नहीं करता, जैसा कभी किया करता था. ऐसे में जब जेएन और अलीशा एक दूसरे से मिलते हैं तो उन्हें वो मिल जाता है जिसकी दोनों की जिंदगी में कमी थी. इसके बाद कहानी बोरियत के रास्ते पर बढ़ जाती है, अलीशा-जेन सच्चे प्यार की कसमें खाते हैं और अलीशा प्रेग्नेंट हो जाती है. उधर, जेन के प्रोजेक्ट को झटके लगते हैं. वह किसी भी पल डूब सकता है.फिल्म में अलीशा और जैन का रिश्ता जीवन की इस सच्चाई के आगे एक अनसुलझी पहले की तरह है और यह एक ऐसी राह पर आगे बढ़ता है, जहां आगे फिसलन है।
गहराइयां फिल्म में बस एक दीपिका का किरदार हैं जिसने एक बार फिर पर्दे पर छाप छोड़ी है। कई मौकों पर वह बिना आंखों में आंख डाले, बहुत कुछ कह जाती हैं। सीधे दिल पर चोट करती हैं। एक ऐसी कहानी जो सामान्य और सहज तरीके से शुरू होती है, लेकिन फिर थ्रिलर का रूप ले लेती है। फिल्म में कई सीन ऐसे डिजाइन किए गए हैं, जहां खामोशी है, शांति है, लेकिन उनमें भीतर ही भीतर बहुत शोर भरा है।
फिल्म देखने के बाद हम ऐसा कह सकते हैं पूरी फिल्म में दीपिका के अलावा ऐसा कुछ नहीं है जिससे आम ऑडियंस कनेक्ट हो. फिल्म में एक्ट्रेस ने अलिशा का रोल किया है. ऑडियंस ये उनके करियर का सबसे बेहतरीन अभिनय कह सकती है. फिल्म में एक सीन है, जब अलिशा ज़ेन से कहती है-”मैंने करण को अपने लिए छोड़ा है, तुम्हारे लिए नहीं.”जैसे की उसे सब क्लैरिटी है कि वो क्या कर रही है और क्यों कर रही है. मगर कुछ इमोशंस ऐसे होते हैं, जिन पर आपका कंट्रोल नहीं होता. प्यार उन्ही भावों में से एक है, जिससे अलिशा गुज़र रही है. वो जो कुछ भी सोचती है, वो सबकुछ उसके व्यवहार और बर्ताव में रिफ्लेक्ट होता है. चेहरे पर नज़र आता है.
मेट्रो के नकली-बनावटी किरदार, दिखावे की यॉट से लेकर फाइव स्टार होटल, महंगी शराब, चिकने बाथटब, गद्देदार बिस्तर, करोड़ों-करोड़ की हाई-फाई बातें मिलाकर फिल्म को उठाने के बजाय गहराईयों में डुबो देती है.फिल्म की रफ्तार बहुत सुस्त और किरदार हमेशा रोते हुए-से हैं. एक में भी आपको कोई जीवन-ऊर्जा नहीं दिखती. अलीशा सदा उदास है. करन घर बैठा फ्लॉप-बेरोजगार राइटर है. जेन का आत्मविश्वास नकली है. तान्या छोटी रईस बच्ची जैसी है, जिसकी जिंदगी का कोई लक्ष्य यहां नहीं है. इन सबकी बैक-स्टोरी भी कोई उत्सुकता नहीं पैदा करती
लेखक न तो किरदारों में कोई जान डाल पाने में सफल हैं और न ही कहानी को सही ढंग से नहीं संभाल पाए. फिल्म में कुछ ऐसा भी है जो खलता है। एक तो इसकी लंबाई, जो आपकों खींची हुई लगती है। और दूसरी इसकी स्पष्टता। फिल्म अपने दूसरे हिस्से में कुछ इस तरह आगे बढ़ती है कि आप यह सोचने लगते हैं कि यह किस ओर जा रही है। 2 घंटे और 28 मिनट में यह आपको थकाने लगती हैं
दीपिका पादुकोण ने लूटी महफिल
दीपिका अभिनय कमाल का करती हैं। पूरी फिल्म में एकमात्र किरदार जो कुछ प्रभाव छोड़ता है, वह है अलीशा. दीपिका पादुकोण ने इसे वाकई खूबसूरती और मेहनत से निभाया है. उन्हें देखकर नहीं लगता कि वह अपनी तरफ से कोई कसर बाकी रख रही हैं. एक्ट्रेस ने फिल्म में बेहतरीन काम करके महफिल लूट ली है. दीपिका नेकॉम्प्लिकेटेड किरदारों की नब्ज को ऐसा पकड़ा है कि कमाल करके ही दिखाती हैं
सिद्धांत चतुर्वेदी फिल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी
सिद्धांत चतुर्वेदी बहुत निराश करते हैं. वह न अपने अभिनय से, न हाव-भाव से और न बॉडी लैंग्वेज से आकर्षित कर पाते हैं. वह फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। उनके चेहरे के भाव हर दृश्य में एक जैसे ही रहते हैं। अब समझ आता है कि एमसी शेर में उनका अभिनय दरअसल अभिनय नहीं बल्कि वही था जो वह हैं। एमसी शेर ही सिद्धांत चतुर्वेदी है। यह स्पष्ट होने के बाद सिद्धांत का अभिनय बहुत कमजोर लगने लगता है।
अनन्या पांडे का काम भी ठीक है , एक्टिंग में तरक्की कर रही हैं। लेकिन इस फिल्म फिल्म में एक भी सीन नहीं जिसमें, अनन्या बहुत प्रभावी नजर आई हों. फिल्म जैसे जैसे आगे बढ़ती है अनन्या को अपने एक्टिंग टैलेंट को दिखाने का मौका दिया जाता है.नसीरुद्दीन शाह और रजत कपूर जैसेएक्टर्स के काम पर शक तो आप कभी कर ही नहीं सकते.
डायरेक्शन
डायरेक्शन और म्यूजिक सब्जेक्ट के हिसाब से शकुन बत्रा का डायरेक्शन सही है, उन्हें अपनी टारगेट ऑडियंस पता थी और वह उन्हें खुश कर देंगे। म्यूजिक अच्छा है लेकिन सुपरहिट गानों की कमी खलती है। डूबे डूबे सबसे अच्छा गाना है। टाइटल सॉन्ग भी काफी अच्छा है। गाने के बोल फिल्म के मूड के साथ मैच करते हैं। बैक ग्राउंड म्यूजिक ड्रामा को निखारता है। कौशल शाह ने बेहतरीन लोकेशन को अपने कैमरे में बखूबी कैद किया है। नितेश भाटिया की एडिटिंग शार्प है। गहराईयां युवाओं के लिए अच्छी फिल्म है। सबसे सही बात यह है कि यह डायरेक्ट ओटीटी (अमेजन प्राइम) पर रिलीज हुई है। सिनेमाघरों में रिलीज होती तो उत्तर प्रदेश, जैसे प्रदेशों में शायद से कम पसंद की जाती।
कन्क्लूजन
कुल मिलाकर ढाई घंटे से कुछ कम की गहराईयां ऐसी फिल्म है, जिसे आप बहुत जरूरी समझें तो फास्ट-फॉरवर्ड मोड पर देख सकते हैं. जितना समय यह लेती है, बदला में वैसा कुछ कीमती लौटाती नहीं. अंत में गहराईयां सिर्फ दीपिका के अभिनय के लिए याद रह जाती है.