Bhuj The Pride Of India Review: रिलीज हो गई ‘भुज द प्राइड ऑफ इंडिया’, जानिए कैसी है अजय देवगन की फिल्म

396

फिल्म : भुद : द प्राइड ऑफ इंडिया

स्टार कास्ट : अजय देवगन, सोनाक्षी सिन्हा, संजय दत्त, नोरा फतेही, एमी विर्क

डायरेक्टर : अभिषक दुधैया

रेटिंग : 4

भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया का जब एलान किया गया था तो इसकी विषयवस्तु बहुत दिलचस्प लगी थी। माधापुर गांव की 300 महिलाओं ने अपनी जान जोखिम में डालकर पाकिस्तानी हवाई हमले में तबाह हुई हवाई पट्टी की 72 घंटों में मरम्मत की थी, ताकि भारतीय जवानों को लाने वाले विमान को वहां उतारा जा सके।

सिर पर निरंतर मंडराते पाकिस्तानी जंगी जहाजों के ख़तरे के बावजूद साधारण ग्रामीण महिलाओं की दिलेरी की इस कहानी को पर्दे पर देखने का एक अलग ही रोमांच था और लगा था कि एक बेहतरीन फ़िल्म देखने को मिलेगी, जिसमें युद्धकाल में आम नागरिक की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया जाएगा।

मगर, जिस ऐतिहासिक घटना पर भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया की पूरी दुनिया टिकी हुई थी, उसे ही फ़िल्म में इतने सस्ते में निपटा दिया गया और फ़िल्म की टाइमलाइन को 1971 में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग के दूसरे क़िस्सों से भर दिया गया। देशभक्ति की बयार में आप सिर्फ़ भारी-भरकम संवादों और नथुने फुलाकर काम चलाने का सोचेंगे तो मामला देर तक जमेगा नहीं।

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध कई मायनों में अहम रहा है। इस युद्ध के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ। यह जंग कई मोर्चों पर लड़ी गयी थी और सेना के तीनों अंगों थल सेना, वायु सेना और नौ सेना की इसमें भूमिका रही। हिंदी फ़िल्मकार समय-समय पर इस युद्ध के विभिन्न घटनाक्रमों को पर्दे पर उतारते रहे हैं।

ज़मीन पर लड़ी गयी लॉन्गेवाला की जंग पर जेपी दत्ता 1997 में बॉर्डर जैसी आइकॉनिक फ़िल्म बना चुके हैं। पानी में जंग पर 2017 में संकल्प रेड्डी ग़ाज़ी नाम से तेलुगु फ़िल्म बना चुके हैं, जिसे हिंदी में द ग़ाज़ी अटैक शीर्षक से रिलीज़ किया गया था। अभिषेक दुधैया की भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया को आकाश में हुई जंग पर बनी फ़िल्म के रूप में देखा जा सकता है। 1971 जंग की शुरुआत पाकिस्तान के ऑपरेशन चंगेज़ ख़ान से ही हुई थी, जिसमें भारत के 11 प्रमुख एयर बेसों पर पाकिस्तान की ओर से एयर स्ट्राइक की गयी थी।

भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया की कहानी इसी ऑपरेशन चंगेज़ ख़ान से निकली है और मुख्य किरदार स्क्वॉड्रन लीडर विजय कार्णिक के नैरेशन के साथ आगे बढ़ती है। नैरेशन की शुरुआत 1947 में भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान और ईस्ट पाकिस्तान के बनने से शुरू होती है और इसके बाद 1971 की जंग के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हुए आगे बढ़ती है। पाकिस्तानी तानाशाह और जनरल याह्या ख़ान भारत के पश्चिमी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके भारतीय प्रधानमंत्री मिसेज़ गांधी को बारगेन टेबल तक लाना चाहता था, ताकि ईस्ट पाकिस्तान से भारत को दूर करने के लिए सौदेबाज़ी की जा सके।

भुज हवाई पट्टी को नेस्तनाबूद करने के बाद पाकिस्तानी सेना इस पर क़ब्ज़े के लिए 1800 जवानों और 100 टैंकों के साथ कच्छ के रास्ते से भारत में दाख़िल होने के लिए आ रही थी, जिसे रोकने की ज़िम्मेदारी लेफ्टिनेंट कर्नल नायर की बटालियन को दी गयी। मगर, ले. कर्नल नायर के पास सिर्फ़ 120 जवान थे। ले. कर्नल नायर तक मदद पहुंचाने के लिए भुज की हवाई पट्टी का ठीक होना ज़रूरी था।

आस-पास के एयरबेस से भी इंजीनियर और टेक्नीशियंस नहीं बुलाए जा सकते थे, क्योंकि वहां भी हमला हुआ था। ऐसे में स्क्वॉड्रन लीडर विजय कार्णिक माधापुर गांव के लोगों से मदद मांगता है। इस गांव के ज़्यादातर मर्द काम के लिए बाहर रहते हैं, इसलिए गांव में अधिकतर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग ही हैं। सोनाक्षी सिन्हा सुंदरबेन के किरदार में हैं। थोड़ी-सी ना-नुकुर और सुंदरबेन की प्रेरणा से महिलाएं तैयार हो जाती हैं। विजय कार्णिक महिलाओं की मदद से हवाई पट्टी की मरम्मत करवाता है। पंजाबी एक्टर एसी विर्क फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह बाज के रोल में हैं, जिन्हें भुज एयरबेस पर जवानों को ले जाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है।

फ़िल्म में संजय दत्त रणछोड़ दास पगी के रोल में हैं, जो रेत में पांव के निशान देखकर भांप लेता है कि उधर से हिंदुस्तान की फौज गयी है या पाकिस्तान की। रणछोड़ दास पगी भारतीय जासूसी संस्था रॉ के लिए काम करता है। नोरा फतेही भी भारतीय जासूस हीना रहमान के किरदार में हैं, जिसकी शादी पाकिस्तान की आर्मी इंटेलीजेंस के मुखिया से हुई है। नोरा का भाई भी भारतीय जासूस होता है, जिसे पकड़े जाने पर पाकिस्तानी फौज ने बेहरमी से मार डाला था। इसलिए पाकिस्तान से जंग नोरा के लिए निजी और देश के लिए दोनों है।

भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया का निर्देशन अभिषेक दुधैया ने किया है, जो फ़िल्म की लेखन टीम का भी हिस्सा हैं। भारत-पाक युद्ध और इससे जुड़ी तमाम जानकारियों को समेटने के चक्कर में फ़िल्म मुख्य कथानक के साथ न्याय नहीं कर पाती। लेखक-निर्देशक और कलाकारों ने पूरी तरह एक ख़ास जज़्बात पर खेलने की कोशिश की है, मगर इस क्रम में वो दर्शक की भावनाओं से खेल जाते हैं।

अजय

नोरा फतेही का ट्रैक दिलचस्प है, मगर अति नाटकीय लगता है। नोरा के एक्सप्रेशन उनके भारी-भरकम संवादों से मेल नहीं खाते। उनकी अदाकारी का अंदाज़ मशीनी है। समझ नहीं आता कि हर किरदार का इंट्रोडक्शन इतना ओवर द टॉप करने की ज़रूरत क्या है। क्या हम अपनी फ़िल्मों में लाउड हुए बिना अपनी देशभक्ति का इज़हार नहीं कर सकते? या करना इतना ही ज़रूरी है तो कम से कम कलाकार तो ऐसा लीजिए, जो कंविंसिंग लगे।

फ़िल्म में संजय दत्त की मौजूदगी को जस्टिफाई करने के लिए उनके किरदार रणछोड़ दास पगी को स्क्रीनप्ले में ज़रूरत से ज़्यादा खींच दिया गया है। यह किरदार अकेला ही दर्ज़नों पाकिस्तानी सैनिकों को कुल्हाड़ी से काट डालता है। माधापुर गांव बनाने में प्रोडक्शन ने अच्छा काम किया है, मगर सब कुछ इतना नया-नया और रंगीन दिखाया गया है कि नकली लगने लगता है।

सारे गांव वाले एकदम चकाचक और चमकदार पारम्परिक परिधानों में नज़र आते हैं, जैसे कोई त्योहार मना रहे हों। सोनाक्षी सिन्हा का किरदार कच्छी है, मगर उसके उच्चारण में स्थानीयता का कोई पुट नहीं। उन्हें लगता है, सिर्फ़ ‘देश’ को ‘देस’ बोलने से स्थानीय लहज़ा मिल जाता है। वही हाल संजय दत्त के किरदार रणछोड़ दास का है। सिख फ्लाइंग लेफ्टिनेंट बने एमी विर्क ज़रूर बातचीत में अपने लहज़े को पकड़कर रखते हैं, जो उनकी अपनी मातृ भाषा भी है। प्रणिता सुभाष अजय देवगन के किरदार की पत्नी बनी हैं। फ़िल्म में प्रणिता का एक गाने और कुछ फ्रेम्स में आने के अलावा कोई योगदान नहीं है। प्रणिता इससे पहले हंगामा में नज़र आयी थीं। हालांकि, उनकी पहली साइन हिंदी फ़िल्म भुज ही है और महामारी ना होती तो यह उनका डेब्यू होता।

भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया लेखन के साथ तकनीकी रूप से प्रभावित नहीं करती। आसमान में जेटों की लड़ाई के कुछ शुरुआती दृश्य ज़रूर ध्यान खींचते हैं, मगर बाक़ी फ़िल्म का ख़राब वीएफएक्स ने कबाड़ा कर दिया है, जिसकी वजह से कई बेहतरीन हो सकने वाले दृश्य कमज़ोर लगते हैं। दर्शक जानता है कि फ़िल्मों में बहुत सी चीज़ों के लिए अब वीएफएक्स का इस्तेमाल किया जाता है।

मगर, जब वो फ़िल्म देखता है तो यह उम्मीद करता है कि वो वीएफएक्स ना लगे, बिल्कुल असली लगे और इसी में निर्देशक और तकनीकी टीम की जीत है। सोनाक्षी सिन्हा अपने किरदार के परिचय दृश्य में जिस तेंदुए को दरांती से मारती है, उसे वीएफएक्स से बनाया गया है, जो साफ़ पता चलता है। फ़िल्म के अंत की ओर युद्ध का एक दृश्य तो इतना बनावटी लगता है कि उस गंभीर दृश्य को देखते हुए भी हंसी आ जाती है।

अजय देवगन जैसे बेहतरीन और हर तरह से सक्षम कलाकार और निर्माता जब ऐसे विषय चुनते हैं तो उम्मीद की जाती है कि वो ऐसा सिनेमा बनाएंगे, जो भारतीय फ़िल्म इतिहास में दर्ज़ होगा। ख़ासकर तब, जबकि फ़िल्म 1971 युद्ध के 50 साल पूरे होने का जश्न मनाने का दावा करती हो।

वैसे, इस सबकी सफ़ाई फ़िल्म शुरू होने से पहले शरद केल्कर की आवाज़ में जारी किये गये एक डिस्क्लेमर में दे दी गयी है। उसमें साफ़ बता दिया गया है कि यह फ़िल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और कुछ दृश्यों को फ़िल्माने में सिनेमाई लिबर्टी ली गयी है। फ़िल्म सभी के नज़रिए का सम्मान करती है। स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर करने को कुछ नहीं है और डिज़्नी प्लस हॉटस्टार का ऐप है तो भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया देख सकते हैं।

एक्टिंग
अजय देवगन अपने किरदार में इतने परफेक्ट हैं कि ऐसा लग रहा है जैसे उनके अलावा ये सीन और कोई कर ही नहीं सकता था. संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, शरद केलकर और एमी विर्क ने भी अच्छा काम किया है. कैमियोज में नवनी परिहर बतौर पूर्व प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी के किरदार में परफेक्ट नजर आईं.

क्यों देखें
अगर आपको देशभक्ति भरी फिल्में पसंद है तो ये फिल्म आपके लिए बेस्ट है और परिवार के साथ भी आप इस फिल्म को देख सकते हैं.