यशराज फिल्म्स के 50 साल हुए पूरे, आदित्य चोपड़ा ने पिता के लिए शेयर किया खास मैसेज

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बॉलीवुड में रोमांस की परिभाषा को बदलने वाले यश चोपड़ा की आज 88 जयंती है। निर्देशक यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को हुआ था। यश हिंदी सिनेमा में रोमांटिक फिल्में बनाने के लिए मशहूर रहें है। यश चोपड़ा आज भी सबको दिलों पर राज करते है और हमेशा करते रहेंगे। उनकी फिल्मों की बात करें तो चांद की चांदनी जैसी, सूरज की किरणों जैसी, किसी बाग के फूलों जैसी होती थी। य़श चोपड़ा की हीरोइन….बिखरी जुल्फे…लहराती सिफॉ़न की वो साड़ियां …स्विटजरलैंड की वादियों में वो रोमानियत….ये सब य़श चोपड़ा की फिल्मों में ही तो दिखाया जाता था। यश ने 1959 से अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने सबसे पहले फिल्म ‘धूल का फूल’ बनाई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यश चोपड़ा ने बॉलीवुड को एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं। उनमें से उनकी कुछ यादगार फिल्मों के बारे में आज आपको इस रिपोर्ट में बताएंगे।

इस खास मौके पर यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा ने सोशल मीडिया पर उनके लिए एक लंबा-चौथा इमोशनल पोस्ट शेयर किया है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि प्रोडक्शन हाउस ने अस्तित्व के 50 साल पूरे किए हैं। साथ ही यह पत्र दिवंगत निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा के जन्मदिन पर भी बहुत कुछ कहता दिख रहा है। आदित्य ने एक बहुत ही मार्मिक पत्र भी यशराज फिल्म्स में काम करने वालों और यशराज फिल्म्स की फिल्में देखने वालों के लिए जारी किया। उन्होंने वाईआरएफ से जुड़े हर व्यक्ति को धन्यवाद दिया और कहा कि वह हर जन्म में बॉलीवुड का हिस्सा बनना पसंद करेंगे।

इस पत्र में आदित्य लिखते हैं, “सन् 1970 में मेरे पिताजी यश चोपड़ा ने अपने भाई का दिया वरदहस्त और ऐशोआराम त्याग कर अपनी खुद की कंपनी खड़ी की थी। उस वक्त तक वह एक वेतनभोगी कर्मचारी हुआ करते थे और अपना खुद का कहने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। उन्हें पता नहीं था कि कोई बिजनेस कैसे चलाया जाता है और कंपनी बनाने के लिए किन-किन चीजों से गुजरना पड़ता है, इसका उन्हें बुनियादी ज्ञान तक नहीं था। उनके पास मात्र अपने टैलेंट पर भरोसा और कड़ी मेहनत की पूंजी थी, साथ ही साथ अपने पैरों पर खड़े होने का सपना भी उनकी आंखों में तैर रहा था। एक रचनात्मक व्यक्ति द्वारा खुद और अपनी कला को छोड़कर किसी और चीज के भरोसे न रहने वाले दृढ़ विश्वास ने यशराज फिल्म्स को जन्म दिया।

1995 में, यशराज फिल्म्स (YRF) ने अपने 25 वें वर्ष में प्रवेश किया, मेरी निर्देशन में पहली फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ रिलीज हुई. उस फिल्म की ऐतिहासिक सफलता ने मुझे कुछ पागल कर देने वाले जोखिम भरे विचारों को पंख देने का विश्वास दिलाया, जो मुझे वाईआरएफ के भविष्य के लिए थे. मेरे पिता को मेरे प्रति जो असीम प्यार था, उसके अलावा, उन्हें अब मेरी फिल्म की चमत्कारिक सफलता के कारण मेरे विचारों पर बहुत विश्वास था. मैंने भारत में आने वाले और अपने व्यवसाय को संभालने के लिए अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट स्टूडियो के आगमन की भविष्यवाणी की थी. मैं चाहता था कि हम एक निश्चित पैमाने को हासिल करें, ताकि हम आने से पहले अपनी स्वतंत्रता को बनाए रख सकें. मेरे पिता ने अपनी रूढ़िवादी मानसिकता का खंडन किया और बहादुरी से मेरी सारी साहसिक पहल की और 10 त्वरित वर्षों की अवधि में, हम एक फिल्म प्रोडक्शन हाउस से भारत के पहले पूरी तरह से एकीकृत स्वतंत्र फिल्म स्टूडियो में गए।

आज हम यश राज फिल्म्स के 50 वें वर्ष में प्रवेश करते हैं. इसलिए, जैसा कि मैंने इस नोट को लिखा है, मैं यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं कि वास्तव में इस 50 साल की सफलता का रहस्य क्या है? एक कंपनी 50 वर्षों तक क्या फलती-फूलती है? क्या यह यश चोपड़ा की रचनात्मक प्रतिभा है? अपने 25 साल के बड़े बेटे के दुस्साहसिक विजन? या यह सिर्फ सादा भाग्य है? यह उपरोक्त में से कोई नहीं है. इसके लोग. पिछले 50 वर्षों से प्रत्येक YRF फिल्म में काम करने वाले लोग. मेरे पिताजी एक कवि की लाइन- मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गे हमारे करवां बनता गया (मैं अपनी मंजिल की ओर अकेले ही चला, लोग जुड़ते रहे और कारवां बढ़ता रहा). इसे पूरी तरह समझने में मुझे 25 साल लग गए।