केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों लेकर टूट गया 24 साल पुराना शिअद-भाजपा गठजोड़, SAD क‍ृषि विधेयक के खिलाफ राजग से बाहर

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केंद्र सरकार के संसद में कृषि विधेयकों काे पारित कराने को लेकर पंजाब की राजनीति में बड़ा मोड़ आ गया है। पंजाब में 24 साल पुराना शिअद – भाजपा गठजोड़ टूट गया है। शिेरोमणि अकाली दल के कृषि विधेयकोंं केे मुद्दे पर राजग और भाजपा से नाता तोड़ने का फैसला किया है। पार्टी ने इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से खुद को अलग किया था और हरसिमरत कौर बादल ने कैबिनेट मंत्री के पद से इस्‍तीफा दे दिया था।

दोनों पाटियों ने तीन बार पंजाब में मिलकर सरकार चलाई, हर बार कार्यकाल पूरा किया

भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का 24 साल पुराना साथ कृषि विधेयकाें के मुद्दे पर टूटा है। भाजपा के सबसे पुराने साथी शिअद ने भाजपा से अलग होने का फैसला पार्टी की कोर कमेटी में किया। शिवसेना के बाद भाजपा से नाता तोडऩे वाले दलों में शिरोमणि अकाली दल दूसरी पुरानी पार्टी है। ये दोनों ऐसी पार्टियां थीं जो सबसे लंबे समय तक भाजपा के साथ रही हैं।

खासतौर पर शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच रिश्ते काफी सौहार्दपूर्ण थे। दोनों पार्टियों ने मिलकर तीन बार पंजाब में सरकार बनाई और हर बार पूरे पांच पांच साल के कार्यकाल को पूरा किया। अकाली दल और भाजपा के बीच रिश्तों को राजनीतिक से ज्यादा सामाजिक सौहार्द के रूप में देखा जाता रहा है। पंजाब में अकाली – भाजपा का गठबंधन 1997 में ही हो गया था और करीब 22 साल पहले अकाली दल राजग का हिस्सा बना।

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शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी की बैठक में भाग लेते सुखबीर सिंह बादल और अन्‍य नेता।

सुखबीर बोले, ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं रह सकते जो धक्केशाही से अपने फैसले लागू करे

दरअसल गठबंधन टूटने की बुनियाद उसी दिन पड़ गई थी जब अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने कृषि विधेयकों का विरोध करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल को इस्तीफा देने के लिए कह दिया। हरसिमरत बादल के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद अकाली दल पर लगातार भाजपा और राजग से अलग होने का दबाव बना हुआ था। शनिवार करीब साढे तीन घंटे तक चली कोर कमेटी में यह फैसला ले लिया।

बैठक के बाद पार्टी के प्रधान सुखबीर बादल ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि एनडीए सरकार ने कृषि विधेयक लाकर किसानों को मारने का फैसला लिया है। जिस धक्केशाही केंद्र सरकार ने पहले लोकसभा और बाद में राज्यसभा में इसे पारित करवाया वह सभी ने देखा है। इसलिए हमने केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर आने का फैसला लिया।

सुखबीर ने कहा, सरकार से बाहर आने का फैसला लेते समय मैंने कहा था कि आगे की रणनीति तय करने के लिए हम जनता के पास जाएंगे। कई दिनों तक पार्टी कार्यकर्ताओं, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत करने के बाद फैसला किया गया कि ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बना जा सकता जो धक्केशाही के साथ अपने फैसले लागू कर रहा है।

कृषि विधेयक ही नहीं, जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को दूसरी भाषा का दर्जा देने की मांग भी की दरकिनार

उन्होंने कहा कि केवल कृषि विधेयक ही नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को दूसरी भाषा का दर्जा देने संबंध में भी अकाली दल ने मांग की थी कि जम्मू में पंजाबी बोलने वाले बहुत से लोग हैं। परंतु सरकार ने हमारी एक नहीं सुनी। यहां तक कि मेरी (सुखबीर) इस मांग का नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्दुला ने भी समर्थन किया। इसके बावजूद सरकार ने जम्मू कश्मीर की राज भाषाओं में अंग्रेजी को शामिल कर लिया और पंजाबी को बाहर कर दिया। ऐसे में अब हमारे पास राजग से अलग होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।

बता दें कि पंजाब में भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन 22 साल पुराना था। दोनों पार्टियां लोकसभा और विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ती थीं। कृषि विधेयकों मुद्दे पर भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर शिअद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के निशाने पर थी।

भाजपा के पंजाब में कृषि विधेयकों के समर्थन में उतरने और शिअद द्वारा इसका खुलक‍र विरोध करने के बाद राजग के पंजाब में टूटने की संभावना तेज हो गई थी। शिअद और भाजपा का गठबंधन टूटने से अब 2022 में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर पंजाब में सियासी समीकरण में भी बदलाव होगा।

नैतिकता नहीं, मजबूरी में लिया फैसला: कैप्टन

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एनडीए छोडऩे के शिरोमणि अकाली दल के फैसले को राजनीतिक मजबूरी व हताशा में लिया फैसला बताया। उन्होंने कहा कि इस फैसले में कोई नैतिकता नहीं है। अकालियों के सामने कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि भाजपा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कृषि बिधेयक के बारे में किसानों को समझाने में शिअद विफल रहा।

गठबंधन तोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण: अश्वनी शर्मा

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशिवनी शर्मा ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन तोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण है। कृषि विधेयकों पर अकाली दल को एनडीए का सहयोगी दल होने के नाते केंद्र सरकार का साथ देकर किसानों को जागरूक करना चाहिए था। यदि शिअद ने यह फैसला ले लिया है तो पंजाब भाजपा हाईकमान से वार्ता कर आगामी रणनीति अपनाएगी।