वित्त मंत्रालय ने बाजार नियामक SEBI को 100 साल की परिपक्वता वाले अतिरिक्त टियर-1 बॉन्ड पर जारी दिशानिर्देश वापस लेने को कहा

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वित्त मंत्रालय ने बाजार नियामक सेबी से अतिरिक्त टियर-1 (एटी-1) बॉन्ड की 100 साल की परिपक्वता अवधि के संदर्भ में म्यूचुअल फंड उद्योग को जारी दिशानिर्देश वापस लेने को कहा है। मंत्रालय का कहना है कि इससे बाजार और बैंकों द्वारा पूंजी जुटाने के कार्यक्रम पर असर पड़ सकता है। एटी-1 बॉन्ड को सुनिश्चित आय देने वाले बिना परिपक्वता अवधि का बॉन्ड (सतत बॉन्ड) माना जाता है। बासेल-तीन दिशानिर्देशा के तहत यह इक्विटी शेयर की तरह है। यह बैंक की टियर पूंजी का हिस्सा होता है।

सेबी ने इस सप्ताह की शुरुआत में नियम जारी कर म्यूचुअल फंड उद्योग के लिए संचयी रूप से टियर 1 और टियर 2 बॉन्ड में 10 फीसदी निवेश की सीमा तय की। नियामक ने यह भी कहा कि मूल्यांकन के उद्देश्य से सभी सतत बॉन्ड की परिपक्वता अवधि निर्गम तिथि से 100 वर्ष मानी जानी चाहिए। वित्तीय सेवा विभाग ने 11 मार्च को कार्यालय ज्ञापन में कहा कि नई सीमा के साथ म्यूचुअल फंड की बैंक बॉन्ड खरीदने की क्षमता प्रभावित होगी और इसके परिणामस्वरूप ब्याज दर (कूपन रेट) बढ़ेगी। कार्यालय ज्ञापन सेबी चेयरमैन और आर्थिक मामलों के सचिव को चिन्हित किया गया है।

इसमें कहा गया है कि, ‘आने वाले समय में बैंकों की पूंजी जरूरतों और उसे पूंजी बाजार से जुटाने की आवश्यकता को देखते हुए, यह आग्रह है कि सभी सतत बॉन्ड को 100 साल की अवधि का माने जाने से संबंधित संशोधित मूल्यांकन नियम को वापस लिया जाए।’

ज्ञापन के अनुसार मूल्यांकन से जुड़े उपबंध से बाजार में समस्या उत्पन्न हो सकती है। निवेश से संबंधित निर्देश जो म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो में ऐसे उत्पादों के मामले में जोखिम को कम करते हैं, उन्हें बनाए रखा जा सकता है क्योंकि इनके पास 10 फीसदी की सीमा के भीतर भी पर्याप्त गुंजाइश है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बुधवार को खास विशेषताओं वाले ऋण प्रतिभूतियों में निवेश और सतत बॉन्ड के मूल्यांकन के संदर्भ में नियमों की समीक्षा को लेकर परिपत्र जारी किया। नए नियम के तहत म्यूचुअल फंड सतत बॉन्ड जैसे खास विशेषताओं वाली ऋण प्रतिभूतियों में 10 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी नहीं ले सकते। अबतक ऐसे उत्पादों के लिए कोई सीमा नहीं थी।

ज्ञापन में इसके प्रभाव के बारे में कहा कि इससे म्यूचुअल फंड घबराकर संबंधित प्रतिभूतियों में निवेश को भुना सकते हैं। इससे कुल मिलाकर कॉरपोरेट बॉन्ड पर असर पड़ेगा। इससे कंपनियों के लिए ऐसे समय कर्ज की लागत बढ़ सकती है, जब आर्थिक पुनरुद्धार अभी शुरुआती चरण में है।