SC ने आरक्षण पर कहा- केवल कुछ जातियां को मिल रहा लाभ, कुछ अब भी पिछड़ी हैं

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उच्चतम न्यायालय 2004 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार करेगा जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी-एसटी) को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के उद्देश्य से छोटे उप वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को एससी-एसटी में वर्गीकरण के मामले को सात जजों की पीठ को भेज दिया। इस फैसले के  दूरगामी राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं।

माना जा रहा है कि सुनवाई के जरिए एससी-एसटी की तथाकथित क्रीमी लेयर को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हो जाएगी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि एससी-एसटी समूह के अंदर असमानता है, राज्यों को देश के संघीय ढांचे के मद्देनजर ऐसे उप-वर्गीकरण करने का अधिकार दिया गया है, जो उन्हें पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान करने का अधिकार देता है।

पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के एससी-एसटी उप-वर्गीकरण को लेकर दिए अपने पिछले फैसले की समीक्षा करने को कहा। पीठ ने कहा, ‘मामले में लाभ एससी की सूची में शामिल सभी जातियों के लिए है। इसका इस्तेमाल कुछ जातियों द्वारा किया जा रहा है जिनके पास पर्याप्त प्रतिनिधित्व है, वे उन्नत और क्रीमी लेयर से हैं। ऐसे में यह असमानता घातक होगी क्योंकि भूख लगने पर प्रत्येक व्यक्ति को खाना खिलाना और रोटी उपलब्ध कराना आवश्यक होता है। एक सजातीय वर्ग बनाने की आड़ में दूसरों के हक की कीमत पर सारी चीजें शक्तिशाली वर्ग को नहीं दी जा सकती हैं। सच्चाई ये है कि कुछ जातियां पहले जहां थीं, अब भी वहीं हैं।’