जयशंकर ने की चीनी विदेश मंत्री से मुलाकात, कहा- द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमा पर शांति जरूरी

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    विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर परोक्ष रूप से पाकिस्तान और उसके हमदर्द चीन पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि एससीओ का मुख्य मकसद आतंकवाद और कट्टरपंथ से मुकाबला करना है और इसे आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना चाहिए।

    ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हुई बैठक में जयशंकर ने अफगानिस्तान के हालात के साथ ही जन स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार के क्षेत्र में आ रही परेशानियों का भी उल्लेख किया। बैठक में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी शामिल हुए। विदेशमंत्री ने ट्वीट किया कि दुशांबे में एससीओ के एफएमएम को संबोधित किया।

    अफगानिस्तान, जन स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार प्रमुख मुद्दे हैं। आतंकवाद और कट्टरपंथ का मुकाबला करना एससीओ का प्रमुख मकसद है। इसे आतंकवाद के वित्तपोषण और डिजिटल सुविधाओं को रोकना चाहिए। उन्होंने अपने संबोधन में ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ संदेश को भी रेखांकित किया। साथ ही कोरोना महामारी से निपटने के लिए जल्द से जल्द वैश्विक टीकाकरण का आह्वान किया। उन्होंने बहुपक्षवाद में सुधार पर भी बात की और इस क्षेत्र को फिर से जीवंत करने की आवश्यकता बताई।

    अफगानिस्तान और कोरोना बाद के प्रभावों से निपटने पर विशेष ध्यान
    इससे पहले एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा कि एससीओ की स्थापना की 20वीं वर्षगांठ उपलब्धियों पर मनन और चुनौतियों पर चर्चा करने का उपयुक्त समय है। अफगानिस्तान और कोरोना बाद के प्रभावों पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। अफगानिस्तान में पिछले कुछ दिनों के दौरान कई आतंकी हमले हुए हैं। ये हमले अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी की प्रक्रिया के साथ ही बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में अफगानिस्तान में बढ़ती हिंसा चिंता का एक विषय बन गई है।

    2017 में भारत बना था सदस्य
    एससीओ आठ सदस्य देशों का समूह है, इसे नाटो के टक्कर में खड़ा किया गया था। भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके स्थायी सदस्य बने। भारत और पाकिस्तान के अलावा एससीओ में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में रूस, चीन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा एक शिखर सम्मेलन में की गई थी।