पिछडो, दलितों, अल्पसंख्यको का गठबंधन बनाएगा उत्तर प्रदेश में सरकार – रियाजुल्ला खान

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Riazullah Khan
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समाजवादी लोहिया वाहिनी ज़िला अध्यक्ष रियाजुल्ला खान ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा- उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस बार के चुनाव में कई अहम मुद्दे केन्द्र में होंगे, लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा है भाजपा के जनाधार में सेंधमारी कैसे की जाय ? दूसरी तरफ भाजपा – आरएसएस ने अपनी पूरी शक्ति अपने जनाधार को बचाने में झोंकने का फ़ैसला किया है। भाजपा कई दशकों से हिन्दू वोट बैंक बनाने में लगी है, इसमें उसे एक हद तक सफलता भी मिली है।

रियाजुल्ला खान बोले- भारत के विभिन्न राज्यों में हिन्दू वोट बैंक बनाने और हिन्दू तुष्टिकरण के आधार पर हिंदू बहुसंख्यकवाद के आधार पर हिन्दुओं को गोलबंद करने और एक हद तक हिन्दू वोट बैंक स्थिर करने में उसे सफलता मिली है। यह एक तरह से वोट बैंक राजनीति का नया पैराडाइम है। इसके ज़रिए आरएसएस-भाजपा समाज को जाति समूहों में बांटने, उनमें अंतर्विरोध पैदा करने और उनको हिन्दुत्व के नाम पर एकजुट करने में सफल रही है। उसने विभिन्न जाति समूहों के लिए अलग-अलग कार्यक्रम तय करके हिन्दू वोट बैंक विकसित किया है। यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसे सपा, बसपा,कांग्रेस आदि अपने-अपने तरीक़ों और राजनीतिक नारों और मिथकीय प्रतीकों के ज़रिए चुनौती देने की योजना बना रहे हैं। इस दिशा में पहल बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा ने की है। उसने अपने अब तक के घोषित दलित एजेंडे को गौण बनाकर सबसे पहले ब्राह्मणों को सम्बोधित करने और ब्राह्मणों का जन समर्थन हासिल करने के लिए यूपी में छह ब्राह्मण सम्मेलन करने का फ़ैसला किया है। इसकी शुरुआत में पहला ब्राह्मण सम्मेलन अयोध्या में 23 जुलाई को किया गया। इस तरह के छह ब्राह्मण सम्मेलन आगामी 29 जुलाई तक होंगे।इसी तरह समाजवादी पार्टी ने 15 अगस्त को ब्राह्मण सम्मेलन करने का फ़ैसला किया है।

रियाजुल्ला खान ने कहा- भाजपा के बाद यूपी में इन दोनों दलों का जनाधार सबसे बड़ा है। विपक्ष की यदि सरकार बनेगी तो उसमें इन दोनों दलों की केन्द्रीय भूमिका होगी। कांग्रेस पार्टी चौथे नम्बर पर है। ब्राह्मण सम्मेलन के प्रसंग में प्रमुख सवाल यह है कि क्या जाति सम्मेलन, धर्म सम्मेलन या संत-महंत सम्मेलनों से यूपी की जनता की आर्थिक-सांस्कृतिक तरक़्क़ी होगी ? यूपी को हिंदू वोट बैंक की राजनीति की दलदल से निकालने का जो भी पार्टी सबसे बड़ा मोर्चा बनाएगी, उसके सरकार बनाने की संभावनाएँ सबसे अधिक है।इसमें यूपी के विभिन्न अंचलों में सक्रिय छोटे-छोटे दलों, वामदलों और लोकदल को ख़ासतौर पर जोड़ने की ज़रूरत है। इससे भी बड़ी बात यह कि यूपी को बड़े विजन की ज़रूरत है। इस विजन के निर्माण के लिए विभिन्न वर्गों और पेशेवर समूहों के बेहतरीन लोगों को एकत्रित करके एक कार्यबल बनाया जाए जो यूपी का विजन दस्तावेज तैयार करे ।

बहुजन समाज पार्टी का मानना है यूपी में दलितों के तेईस प्रतिशत और ब्राह्मणों के तेरह प्रतिशत वोट यदि एक साथ मिलकर खड़े हो जाएँ यानी वे वोट बसपा को मिल जाएँ तो वह सरकार बना लेगी। इसके लिए वे एक पुराना नारा नए सिरे से दे रहे हैं, नारा है ‘हाथी नहीं गणेश है. ब्रह्मा, विष्णु, महेश है।’

भाजपा पर जमकर हमला बोलते हुए लोहिया वाहिनी ज़िला अध्यक्ष ने कहा- याद कीजिए उस नारे को जो कांशीराम ने दिया था, उनका नारा था ‘तिलक, तराजू और तलवार। इनको मारो जूते चार।’ उन्होंने दलितों को केन्द्र में रखकर सोचने की बात कही थी। अब मायावती दलितों को छोड़कर सवर्ण ज़ाति की अस्मिता की राजनीति कर रही हैं। यह नकारात्मक अस्मिता राजनीति है।हिंदू एजेंडे के आधार हिंदुओं को एकजुट करो, ये सब नकारात्मक अस्मिता राजनीति है। इसे काउंटर करने के लिए बसपा अपने सवर्णवादी एजेंडे को जनप्रिय बनाने के लिए 23-29जुलाई तक छह ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है।जबकि भाजपा के शासन में 400 से अधिक ब्राह्मणों की एनकाउंटर करके हत्या की गई। सवाल यह है यूपी को हिंदुत्ववादी और हिंदू वोट बैंक की नकारात्मक अस्मिता राजनीति से कैसे बाहर निकाला जाय ? इसके लिए अस्मिता की राजनीति और नारे मदद नहीं करेंगे। बल्कि सकारात्मक लोकतांत्रिक बड़े विज़न की ज़रूरत है। यूपी में शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध, रोजगार, कानून और व्यवस्था, किसान-मजदूरों के सुरक्षा के ठोस उपायों से युक्त कार्यक्रम की जरुरत है। आम जनता में सकारात्मक लोकतांत्रिक भावबोध पैदा करने की जरुरत है। इसके लिए पहली चुनौती है आम जनता को आरएसएस के हिन्दुत्ववादी नकारात्मक वैचारिक एजेंडे की कैद से कैसे मुक्त किया जाय। यह विचारधारात्मक काम है, इसके लिए एक तरफ़ व्यवहारवादी राजनीति एक्शन प्लान चाहिए, दूसरी ओर हिंदुत्व की नकारात्मक राजनीति से मुक्त करने के लिए व्यापक लोकतांत्रिक वैचारिक मुहिम के अनेक कार्यक्रम चाहिए। उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा,भाजपा,कांग्रेस जब सवर्णो को रिझाने में लगे है जिनकी आबादी मात्र दहाई/सैकड़ा है ऐसे में समाजवादी पार्टी के पिछड़ा वर्ग,दलित ,और अल्पसंख्यक के हित में सामाजिक न्याय/आर्थिक न्याय के नायक अखिलेश यादव के सामने पूरा राजनैतिक मैदान खाली पड़ा है समाजवादियों ने हमेशा शोषित दलित पिछडो अल्पसंख्यको के लिये कार्य किया है अखिलेश यादव जी को केवल पिछडो दलितों अल्पसंख्यको को विश्वास दिलाना है कि उनकी हितैषी केवल समाजवादी पार्टी है और 2022 का चुनाव मंडल बनाम कमंडल के बीच होगा।