राकेश टिकैत बोले – 4 दिसंबर को होने वाली बैठक से पहले MSP और किसानों की मौत पर बातचीत करे केंद्र सरकार

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केंद्र सरकार (Central Government) ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के अपने वादे को पूरा करते हुए संसद के दोनों सदनों में कृषि कानून वापसी विधेयक पास करा दिया है. हालांकि इसके बावजूद किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. लेकिन खबर ये भी है कि अब कुछ किसान आंदोलन खत्म कर वापस घर जाना चाहते हैं जबकि कुछ MSP खरीद गारंटी पर क़ानून बनाने के लिए केंद्र सरकार से बिना ठोस आश्वासन के आंदोलन खत्म करने के पक्ष में नहीं है. इसी कड़ी में 4 दिसंबर को अहम बैठक होने वाली है.

इससे पहले आज यानी मंगलवार को बीकेयू नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) का बयान सामने आया है. उन्होंने 4 दिसंबर को होने वाली बैठक से पहले केंद्र सरकार के साथ बैठक करने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि ”हम चाहते हैं कि भारत सरकार 4 दिसंबर को हमारी (एसकेएम) बैठक से पहले एमएसपी और मरने वाले किसानों पर हमारे साथ बैठक करे. हमारा आंदोलन खत्म नहीं हो रहा है. सरकार ने अभी तक हमारी मांगों को स्वीकार नहीं किया है.”

1 दिसंबर को किसानों की आपात बैठक

वहीं, दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा ने 4 दिसंबर से पहले 1 दिसंबर को आपात बैठक बुलाई है. इस बैठक में वो सभी 42 के लगभग किसान संगठनों के नेता होंगे जो विज्ञान भवन में केंद्र सरकार से बातचीत में शामिल थे. इस बैठक का मकसद संयुक्त किसान मोर्चा के सभी नेताओं में किसान आंदोलन को खत्म करने के सर्वमान्य तरीके पर सहमति बनाने की कोशिश होगी.

इससे पहले तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले पर राकेश टिकैत ने कहा था कि, ‘ये काले कानून एक बिमारी थे. अब इस बिल पर राष्ट्रपति की मोहर लग जाएगी तो यह खत्म हो जाएगा. इसके बाद सरकार जहां बुलाएगी हम वहां बात करने जाएंगे.’ उन्होंने कहा था, ‘राष्ट्रपति द्वारा बिल पर मुहर लगने के बाद हम 750 किसानों की मौत, एमएसपी और किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द करने जैसे अन्य मुद्दों को सरकार के सामने चर्चा के लिए उठाएंगे.’

वहीं, केंद्र सरकार ने एमएसपी और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए समिति गठित करने को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से पांच प्रतिनिधियों के नाम मांगे हैं. किसान नेता दर्शनपाल ने मंगलवार को कहा कि किसान संगठन इस मामले में चार दिसंबर को होने वाली बैठक में फैसला लेंगे. यह कदम ऐसे समय में सामने आया है, जब एक दिन पहले ही संसद के दोनों सदन में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए विधेयक पारित किया गया है.