तालिबान के खिलाफ अब कंधार में भी उभरा क्रोध, घर खाली करने के हुक्म के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग

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कंधार के दक्षिणी इलाके में एक आवसीय सैन्य कॉलोनी के लोगों को तालिबान की तरफ से कॉलोनी खाली करने का फरमान दिया गया, जिसके बाद से हजारों स्थानीय निवासी तालिबान के खिलाफ कंधार प्रांत के गवर्नर हाउस के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं।

एक पूर्व सरकारी कर्मचारी ने बताया कि करीब तीन हजार परिवारों से बिना किसी कारण के तीन दिन में घर खाली करने को कहा गया है। प्रदर्शनकारियों ने शहर के रास्तों को घेर रखा है। इस मसले पर तालिबान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। वहीं, तालिबानी अधिकारियों ने मामले की जांच कराने का आश्वासन देते हुए प्रदर्शनकारियों से कहा है कि उन्हें प्रदर्शन की इजाजत लेनी चाहिए थी। 

अफगान महिलाओं के लिए बढ़ता कट्टरपंथ बड़ा खतरा
तालिबान की कथनी व करनी का अंतर अफगान महिलाओं के भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। एक तरफ तो तालिबान महिलाओं के सम्मान और हक का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसके लड़ाके दिन-ब-दिन महिलाओं पर अत्याचार कर रहे हैं। ऐसे में तालिबान के वादे पर यहां की महिलाओं को यकीन नहीं है।

अफगानी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबानी लड़ाके जब काबुल में दाखिल हुए, उन्होंने सबसे पहले उन विज्ञापनों को हटाया जिनमें महिलाएं शादी के कपड़े पहने हुए नजर आ रही थीं। इससे पहले जुलाई में उन्होंने 15 वर्ष से अधिक की सभी लड़कियों और 45 से कम उम्र की विधवाओं की सूची तैयार करने के लिए कहा था, ताकि उनका विवाह लड़कों से कराया जा सके। वहीं, इंटरनेट पर चर्चित एक वीडियो में हेरात प्रांत में एक महिला को एक युवक से फोन पर बात करने के जुर्म में बदचलन बताते हुए 40 कोड़े मारने की सजा दी जा रही थी। ऐसी घटानाओं से उसकी कथनी और करनी में अंतर देखा जा सकता है।

नहीं देना चाहते आजादी का हक
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 के पहले दस माह में महिलाओं के खिलाफ अफगानिस्तान में कुल 3,477 मामले दर्ज हुए। इनमें से 167 मामले हत्या के थे, जबकि 281 मामले मारपीट, दुष्कर्म आदि के थे। ज्यादातर अफगान पुरुष मानते हैं कि महिलाओं को आजादी का कोई हक नहीं है।

दो दशक रहीं मुक्त समाज में
तालिबान राज में मारपीट, दुष्कर्म, कोड़े की सजा, ऑनर किलिंग जैसे खतरों से महिलाओं को हर रोज गुजरना पड़ता है। लोकतांत्रिक अफगानिस्तान में बीते दो दशक में महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी ऐसी तैयार हुई जिसने शिक्षा पाई, आजादी हासिल की और मुक्त समाज में रहने का अनुभव पाया। इस पीढ़ी के लिए अचानक तालिबान के शासन में रहना एक भयानक सपने की तरह है।
जहां कैद रहे तालिबानी अब उसी जेल के प्रभारी
राजधानी काबुल में पुल-ए-चरखी जेल में कुछ दिन पहले हजारों तालिबानी कैद थे, अब उस जेल का प्रभारी एक तालिबानी है। फिलहाल, कुछ तालिबानी लड़ाके जेल पर पहरा देते हैं। जेल तकरीबन खाली है, केवल एक हिस्से में 60 कैदी हैं। इन पर आपराधिक व नशे का आदी होने का आरोप है।

अब इस जेल को तालिबानी अपने परिचितों के सामने जीत के किस्से के तौर पर बयां करते हैं। सोमवार को एक तालिबानी कमांडर अपने साथियों को जेल घुमाने लाया और उस सेल को दिखाया, जहां वह कैद था। कमांडर ने बताया कि करीब एक दशक पहले उसे पुल-ए-चरखी जेल में लाया गया था। जेल के दिनों को बहुत बुरी याद बताते हुए उसने कहा, जेल में 14 माह उस पर खूब अत्याचार किए गए। आज पूरी आजादी के साथ इस जेल में घूमना जीवन का सबसे सुखद पल है। 

जेल का अतीत है भयावह
पुल-ए-चरखी जेल का अतीत बहुत भयावह रहा है। 1970 से 1980 के दशक में सोवियत समर्थित सरकार के दौरान हुई हिंसा, सामूहिक कत्लेआम, प्रताड़ना और सामूहिक कब्रें इसके काले अतीत की गवाही देती हैं।