शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअली प्रतिभाग किया। इस दौरान उन्होंने ताजिकिस्तान के लोगों को आजादी के तीसवें पर्व की बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस साल हम एससीओ की भी 20वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। अच्छी बात है कि इस संगठन में नए लोग भी जुड़ रहे हैं। नए साझेदारों के जुड़ने से एससीओ और भी क्रेडिबल बनेगा।
कट्टरपंथ एक चुनौती, भविष्य के बारे में सोचने का वक्त
प्रधानमंत्री ने कहा कि एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संगठन के भविष्य के बारे में भी सोचने का अवसर है। इन समस्याओं का बढ़ता हुआ कारण रेडिकलाइजेशन है। अफगानिस्तान में हालिया घटनाओं ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है। इस मुद्दे पर एससीओ को पहल लेकर काम करना चाहिए। अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो मध्य एशिया का क्षेत्र प्रोग्रेसिव कल्चर और वैल्यूज का गढ़ रहा है। मध्य एशिया की इस धरोहर के लिए एससीओ को रैडिकलाइजेशन से लड़ने का एक साझा टेंपलेट बनाना चाहिए। भारत और अन्य देशों में इस्लाम से जुड़ी इन्कलूसिव संस्थाएं हैं। अब इसके लिए एससीओ को भी कदम बढ़ाने चाहिए। हमें सभी एससीओ पार्टनर्स के साथ आगे काम करना होगा।
युवाओं को रैशनल थिंकिंग की ओर आगे बढ़ना होगा
रैडिकलाइजेशन से लड़ाई, क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी हितों के लिए आवश्यक है। ये हमारे युवाओं के लिए भी जरूरी है। हमें अपने प्रतिभाशाली युवाओं को रैशनल थिंकिंग की ओर आगे बढ़ाना होगा। हमें एससीओ पार्टनर्स के साथ एक ओपन सोर्स तकनीक को शेयर करने में और कैपसिटी बिल्डिंग आयोजित करने में खुशी होगी। रैडिकलाइजेशन और असुरक्षा के कारण इस क्षेत्र का आर्थिक पोटेंशियल भी अनटैप्ड रह गया है। खनिज संपदा हो या और कुछ हमें बढ़ती कनेक्टिविटी पर ध्यान देना होगा। मध्य एशिया की भूमिका हमेशा से कनेक्टिविटी के लिए लोकप्रिय रहा है। भारत सेंट्रल एशिया के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कनेक्टिविटी की कोई भी पहल वनवे नहीं हो सकती। इन प्रोजेक्ट्स को पारदर्शी और पार्टिसिपटेरी होना चाहिए। इनमें सभी देशों की टेरिटोरियल इंटेग्रिटी का सम्मान होना चाहिए। एससीओ के इसके लिए उपयुक्त नॉर्म्स बनाने चाहिए। कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स तभी हमें जोड़ने का काम करेंगे, न कि दूरी बढ़ाने का। इसके लिए भारत अपनी तरफ से हर कोशिश के लिए तैयार है।