विकास के लिए ओबीसी जातिगत जनगणना ज़रूरी, कुर्मी महासभा ने प्रदेश भर से भेजा राष्ट्रपति को मांगपत्र

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लखनऊ। ओबीसी वर्ग वर्षों से सामाजिक अन्याय एवं वंचना का शिकार रहा है। ऐसी स्थिति में उसे मुख्यधारा में लाने के लिए सर्वप्रथम उसकी वास्तविक स्थिति का अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है। यह अध्ययन ओबीसी की वास्तविक संख्या, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति से संबंधित होना चाहिए। गिरजेश कुमार पटेल प्रदेश महासचिव भारतीय कुर्मी महासभा उत्तर प्रदेश ने बताया कि ओबीसी की जातिगत जनगणना कराने की मांग को लेकर प्रदेश के 38 जिलों में जिलाधिकारी के माध्यम से व 125 स्पीड पोस्ट पत्र माननीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय को सीधे भी भेजे गए हैं।

उन्होने कहा कि यदि वास्तविक स्थिति का पता नहीं होगा तो ओबीसी के उत्थान हेतु नीति निर्माण कैसे संभव हो पाएगा? राज्यों की आबादी में जातीय विभिन्नता व्याप्त है। अनुसूचित जाति व जनजाति के संदर्भ में जनगणना होने के कारण यह आसानी से तय कर दिया जाता है कि उक्त राज्य में उनके लिए कितना प्रतिशत आरक्षण होगा? किंतु ओबीसी की गणना न होने से इस तरह के लाभ से वे वंचित हो जाते हैं।

भारतीय कुर्मी महासभा मांग करती है कि 2021 की जनगणना में ओबीसी की जातिगत जनगणना भी कराई जाए। जिससे ओबीसी समाज को सरकार द्वारा बनाई जाने वाली नीतियों से अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। साथ ही जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण की 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा का कोटा बढ़ाए जाने की मांग को भी समझना आवश्यक है। यदि केंद्र सरकार ओबीसी की जातिगत जनगणना नहीं कराती है तो भारतीय कुर्मी महासभा उत्तर प्रदेश अन्य ओबीसी संगठनों के साथ सड़क पर उतर कर धरना प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होगी।