आज जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा (Fumio Kishida) भारत की यात्रा पर आ रहे हैं. उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से भी होगी. इस मुलाकात में दोनों देश के बीच व्यापारिक रिश्ते को मजबूत करने की दिशा में अहम बातचीत की जाएगा. जापान के एक न्यूज पेपर (Nikkei Asia)के मुताबिक, इस मुलाकात के दौरान जापान भारत में अगले पांच सालों में 42 बिलियन डॉलर यानी 5 ट्रिलियन येन के भारी भरकम निवेश की घोषणा कर सकता है. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने साल 2014 में भारत की यात्रा की थी और उस दौरान उन्होंने अगले पांच सालों में 3.5 ट्रिलियन येन के निवेश का ऐलान किया था. जापान भारत के अर्बन इन्फ्रास्ट्रक्चर और हाई स्पीड बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में निवेश और मदद कर रहा है.
निक्की एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 वें इंडिया-जापान एनुअल समिट में जापान की तरफ से पब्लिक प्राइवेट फंडिंग प्लान का ऐलान किया जा सकता है. माना जा रहा है कि पीएम फुमियो किशिदा 300 बिलियन येन के लोन का ऐलान कर सकते हैं. इसके अलावा कार्बन को घटाने को लेकर भी दोनों देशों के बीच अहम करार हो सकता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पिछले दिनों कहा था कि जापान के प्रधानमंत्री भारत के दो दिवसीय यात्रा पर आ रहे हैं. यात्रा की शुरुआत शनिवार से हो रही है.
यूक्रेन क्राइसिस पर भी दोनों नेताओं की बातचीत संभव
इस बैठक में यूक्रेन क्राइसिस को लेकर भी दोनों नेताओं के बीच अहम बातचीत होगी. अपनी यात्रा से पहले पीएम किशिदा ने कहा कि इस ट्रिप के दौरान रूस-यूक्रेन क्राइसिस पर भी चर्चा होगी. हम चाहते हैं कि भारत और जापान मिलकर इंटरनेशनल मुद्दों पर एकजुटता दिखाए. भारत और जापान QUAD का सदस्य है जिसका एक सदस्य अमेरिका भी है. अमेरिका, जापान समेत यूरोप के देशों ने यूक्रेन पर रूस के एक्शन का विरोध किया है और उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं. क्वॉड के सदस्य देशों में एकमात्र भारत ऐसा सदस्य है जिसने यूक्रेन पर रूस के हमले की खुलकर निंदा नहीं की है.
रणनीतिक संबंधों को गहरा किया गया
भारत और जापान की बात करें, तो दोनों देशों ने अपने रणनीतिक संबंधों को काफी गहरा किया है. दोनों ही देश स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बात करते हैं. साथ ही रक्षा, सुरक्षा और क्षेत्रीय संदर्भ में भी प्रगति हुई है. भारत और जापान एक्ट ईस्ट फोरम में भी शामिल हैं. इसकी स्थापना करने का फैसला साल 2017 के शिखर सम्मेलन में लिया गया था. इसका उद्देश्य कनेक्टिविटी, वन प्रबंधन, आपदा जोखिम में कमी लाना और निर्माण के क्षेत्र में पूर्वोत्तर भारत में विकास परियोजनाओं का समन्वय करना है.