दिल्ली में महीनों बाद खुले 9वीं से 12वीं तक के स्कूल, मूसलाधार बारिश भी नहीं तोड़ सकी बच्चों का हौसला

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देश की राजधानी दिल्ली में बुधवार सुबह से 9वीं से लेकर 12वीं तक के स्कूल खुल गए हैं। महीनों बाद स्कूल खुलने के एहसास मात्र से छात्रों का काफी खुशी है। यही वजह है कि सुबह से ही हो रही झमाझम बारिश भी बच्चों के हौसले पस्त नहीं कर सकी। कोई रेनकोट पहनकर कोई छाता लेकर स्कूल पहुंचा है। बच्चों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह बेहद खुश हैं। उनके सभी दोस्त इसी दिन का इंतजार कर रहे थे कि कब स्कूल खुलें और कब वो पढ़ने के लिए जाएं क्योंकि क्लास में बैठकर पढ़ने और ऑनलाइन क्लास में पढ़ने में बहुत अंतर है। हर हाल में क्लास की पढ़ाई ही सबसे अच्छी है। हालांकि बच्चों ने ये जरूर कहा कि कोरोना का डर कहीं न कहीं उनके मन में भी है लेकिन स्कूल तो आना ही है, पढ़ाई कर परीक्षा भी देनी है। वहीं स्कूलों में कोरोना नियमों का पूरी तरह से ख्याल रखा जा रहा है। स्कूल में प्रवेश से पहले बच्चों, शिक्षकों व स्कूल के अन्य स्टाफ की थर्मल स्कैनिंग की गई। वहीं उन्हें सैनिटाइज भी किया गया।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद बंद हुए स्कूलों के दरवाजे नौवीं से बारहवीं तक के बच्चों के लिए फिर खुल गए हैं। कोरोना से बचाव के लिए स्कूलों ने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली है। स्कूलों के मेडिकल रूम को आपातकालीन स्थिति के लिए आइसोलेशन रूम में बदल दिया दिया गया है। कुछ स्कूलों ने इनमें ऑक्सीजन सिलिंडर और कंसंट्रेटर की व्यवस्था भी की है। वहीं जो बच्चे स्कूल नहीं आएंगे उनके लिए पहले की तरह ऑनलाइन कक्षाएं चलती रहेंगी। स्कूल एक कक्षा में 9 से 12 बच्चों को ही बिठाएंगे। कक्षाओं में बच्चे अधिक आने पर स्कूल ऑड-ईवन सिस्टम भी अपना सकते हैं। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कितने अभिभावक बच्चों को स्कूल आने की अनुमति देंगे। बीते जनवरी में दसवीं-बारहवीं के लिए और फरवरी में नौवीं व ग्यारवीं के बच्चों के लिए स्कूल खोले गए थे। लेकिन कोरोना महामारी की दूसरी लहर को देखते हुए स्कूलों को फिर से बंद कर दिया गया था। 

अब एक सितंबर से एक साथ नौवीं व बारहवीं के बच्चों के लिए स्कूल खुल गए हैं। स्कूलों की ओर से अभिभावकों से बच्चों को भेजने के लिए सहमति पत्र लिए गए हैं। फिलहाल 10 से 40 फीसदी अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल भेजने की मंजूरी दी है। विद्या बाल भवन प्रिंसिपल डॉ सतबीर शर्मा के अनुसार स्कूल को पूरी तरह से सैनिटाइज किया गया है। आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर स्कूल के मेडिकल रूम को आइसोलेशन रूम बना दिया है। मेडिकल रूम के साथ ही एक क्वांरटीन रूम भी तैयार किया गया है। यहां ऑक्सीजन सिलिंडर और कंसंट्रेटर की व्यवस्था की गई है। कोरोना से बचाव के सभी सुरक्षा मानकों का पूरी तरह से पालन किया जा रहा है। प्रत्येक कक्षा में 12 बच्चों के बिठाने की व्यवस्था की गई है। स्टाफ को भी प्रशिक्षित किया गया है। अधिकतर स्टाफ को वैक्सीन लग चुकी है जिन्हें नहीं लगी है वह घर से ही ऑनलाइन कक्षाएं लेंगे। स्कूल में अभी 20-22 फीसदी अभिभावकों ने बच्चों को भेजने की सहमति दी है। बच्चों की सुरक्षा व सेहत केसाथ कोई लापरवाही नहीं की जाएगी। 

एसआर कैपिटल स्कूल के निदेशक लक्ष्य छाबड़िया ने बताया कि डीडीएमए की गाइडलाइंस तो आ गई हैं लेकिन अभी शिक्षा विभाग की गाइडलाइंस नहीं आई हैं। लेकिन हमने बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए अभिभावकों की मंजूरी ले ली है। कोरोना महामारी के कारण स्कूल में 50 फीसदी से भी कम बच्चे आएंगे। स्कूलों में  स्कूलों में जो बच्चे नहीं आएंगे उनकेलिए ऑनलाइन कक्षाएं चलती रहेंगी। एक कक्षा में अधिक बच्चे होने पर बच्चों के नाम के अक्षर के हिसाब से हम ऑड ईवन सिस्टम भी अपना सकते हैं। स्कूल में सफाई व सेनिटाइजेशन का काम पूरा कर लिया गया है। स्कूल परिसर में बच्चों के लिए सामाजिक दूरी का खास ख्याल रखा जाएगा। स्कूल गेट पर भीड़ ना होने पाए इसका भी ध्यान रखेंगे।

माउंट आबू स्कूल की प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा ने बताया कि मंगलवार को अभिभावकों के लिए ऑनलाइन ओरिएंटेशन प्रोग्राम किया है। इसमें उनके डर को दूर करने और बच्चे को क्या करना है क्या नहीं, यह बताया गया है। दो दिन पहले ही अभिभावकों को गाइडलाइंस भेज दी गई थी। मॉस्क पहनना, लंच व स्टेशनरी का अन्य सामान साझा ना करें, इस बात का ध्यान रखा जाएगा। कक्षाएं ऑनलाइन के साथ ऑफलाइन मोड में चलेंगी। अभी स्कूल भेजने को लेकर काफी कम अभिभावकों ने अपनी सहमति दी है। उम्मीद है कि अगले सप्ताह तक यह चालीस फीसदी तक हो जाए। स्कूल में क्वांरटीन रूम भी बनाया गया है। 

स्कूलों ने बच्चों को फिलहाल ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं देने का फैसला किया है। इस कारण से बच्चों को खुद ही स्कूल आना होगा। इस संबंध में अभिभावकों को बता दिया गया है। स्कूलों का कहना है कि बस में सामाजिक दूरी का पालन कराना मुश्किल हो जाएगा। वहीं कुछ ही अभिभावक बस या वैन से भेजना चाह रहे हैं तो एक दो बच्चे के लिए पूरी बस की व्यवस्था करना अभी मुश्किल होगा। ऐसे में अभिभावकों को खुद ही स्कूल भेजना होगा। स्कूलों का कहना है कि बच्चों की संख्या बढने पर ट्रांसपोर्ट उपलब्ध कराया जा सकता है। डीडीएमए की गाइडलाइंस में कहा गया है कि बस को सेनिटाइज करना होगा और ड्राइवर और सहायक को वैक्सीन लगा होना जरुरी है।