भारत के साथ दूरियों को पाटने की जिम्मेदारी पाकिस्तान की बताते हुए सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने बृहस्पतिवार को कहा कि नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम जारी है तथा घुसपैठ को रोकने जैसे कदमों से दोनों देशों के बीच विश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी. जनरल नरवणे ने कहा कि पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर संघर्ष-विराम का लंबे समय तक कायम रहना पड़ोसी देश की गतिविधियों पर निर्भर करता है. उन्होंने यह भी कहा कि सीमा पर आतंकी ढांचा अभी पूरी तरह मौजूद है, इसलिए तैयारियों में कोई ढील नहीं दी जाएगी. जनरल नरवणे ने जम्मू कश्मीर के अपने दो दिन के दौरे की समाप्ति पर चुनिंदा पत्रकारों से बातचीत की.
भारत और पाकिस्तान के बीच फरवरी में हुए संघर्ष-विराम समझौते के बारे में पूछे गये प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि आपको पता है कि फरवरी के आखिर में हमारी पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर संघर्ष-विराम करने की सहमति बनी थी. इस समय संघर्ष-विराम प्रभाव में है और संघर्ष-विराम चलता रहे, इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह पाकिस्तान पर है. हम तो चाहते हैं कि संघर्ष-विराम जितने लंबे समय तक चल सके, चलता रहे.’’
सेना प्रमुख ने कहा कि नियंत्रण रेखा के दूसरी तरफ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी शिविरों तथा आतंकवादियों की मौजूदगी समेत आतंकी ढांचे होने जैसी गतिविधियां अब भी जारी हैं. उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, जहां तक हमारी तैयारियों और तत्परता के स्तर की बात है तो उसमें कोई ढील नहीं दी जा सकती.’’ जब सेना प्रमुख से पूछा गया कि संघर्ष-विराम को 100 दिन हो गये हैं तो क्या इस्लामाबाद पर अब भरोसा किया जा सकता है तो उन्होंने कहा, ‘‘विश्वास बहुत कठिन चीज है और इसे पैदा होने में बहुत समय लगता है. भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों तक अविश्वास रहा है. इसलिए जाहिर है कि हालात रातों-रात नहीं बदल सकते.’’ उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान पूरी तरह संघर्ष-विराम का पालन करता है तो छोटे-छोटे कदमों के भी बड़े लाभ मिल सकते हैं.
जनरल नरवणे ने कहा, ‘‘अगर पाकिस्तान भारत में समस्या पैदा करने से बचता रहे तो छोटे कदमों से भी उस स्तर का विश्वास पैदा हो सकता है जिसकी आप बात कर रहे हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए जैसा कि मैंने कहा, हमने अभी तक जो हासिल किया है, उसे कायम रखने की पूरी जिम्मेदारी पाकिस्तान की है.’’ जनरल नरवणे ने स्पष्ट किया कि निकट भविष्य में सैनिकों की संख्या कम नहीं की जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि संघर्ष-विराम की स्थिति है, फिर भी ‘‘हम किसी भी तरह अपनी तत्परता और तैयारी के स्तर को कम नहीं कर सकते.’’
उन्होंने कहा कि आतंकवादियों को प्रवेश से रोकने के लिए हमारे पास एक घुसपैठ रोधी ढांचा है और आंतरिक क्षेत्र में हमारे पास आतंकवाद निरोधक ढांचा है जिनकी समय-समय पर समीक्षा की जाती है. उन्होंने कहा, ‘‘जवानों की तैनाती एक गतिशील प्रक्रिया है. अगर हालात में सुधार होता है तो कुछ सैनिकों को सक्रिय जिम्मेदारी से हटा लिया जाता है ताकि उन्हें भी आराम मिल जाए, लेकिन उन्हें पूरी तरह नहीं हटाया जायेगा .’’
सेना प्रमुख ने हिंसा के पथ पर बढ़ गये जम्मू कश्मीर के युवाओं के लिए एक संदेश में कहा वे इस रास्ते को छोड़ दें. उन्होंने कहा कि लंबे समय बाद ऐसे हालात बने हैं जहां अमन-चैन है और लोग अपने सपनों तथा आकांक्षाओं को पूरा करने की स्थिति में हैं. उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए न केवल युवाओं के लिए बल्कि सभी के लिए मेरा संदेश होगा कि जब हम अमन-चैन में होंगे तभी विकास हो सकेगा और विकास होगा तो हम मिलकर समृद्धि हासिल कर सकेंगे इसलिए हमें हिंसा के इस रास्ते को छोड़ देना चाहिए.’’
सेना प्रमुख ने कहा, ‘‘आपको केवल बाहर देखना है कि दुनिया कहां पहुंच गयी है. भारत किस तरह बढ़ा है और इसलिए भविष्य के बारे में सोचें.’’ इस साल अमरनाथ यात्रा के आयोजन के संबंध में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि कमांडरों ने उन्हें स्थिति से अवगत कराया है और ‘‘मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे निर्णय के सभी मानदंडों पर सामान्य स्थिति की दिशा में बहुत सुधार हुआ है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘अमरनाथ यात्रा सुगमता से संचालित करने के लिए हम पूरी तरह तैयार हैं लेकिन यात्रा होगी या नहीं, इस बारे में फैसला स्थानीय प्रशासन करेगा. हम अपनी तरफ से तैयार हैं.’’ सेना प्रमुख ने कहा कि पूरा देश न केवल जम्मू कश्मीर में बल्कि पूरे भारत में अमन-चैन लाने के लिए काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि सेना का काम हिंसा को उस स्तर तक कम करना है जिसमें असैन्य प्रशासन और स्थानीय सुरक्षा बल क्षेत्र के विकास के लिए अपनी भूमिका अदा कर सकें. सेना प्रमुख ने ‘सद्भावना’ परियोजना का उल्लेख किया जिसके तहत सेना स्थानीय पंचायतों, स्कूलों, नलकूपों, पुलों आदि के लिए इमारतों का निर्माण करती है तथा बच्चों को देशभर में दौरों पर ले जाया जाता है.