हार के बाद अखिलेश, जयंत या राजभर सबके बदले सुर – सपा के लिए गठबंधन बड़ी चुनौती

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विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी शिद्दत से बनाए गए सपा गठबंधन पर अब महत्वाकांक्षाओं की आंच आने लगी है। चुनाव में गठबंधन को थोड़ी सफलता तो मिली लेकिन सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई। इस हार के लिए लेकर गठबंधन के नेता एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं।

यह सिलसिला आगे और बढ़ा तो सपा के लिए गठबंधन में एका बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी, सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर व महान दल अध्यक्ष केशव देव मौर्य व गठबंधन के अन्य साथी 2024 का लोकसभा चुनाव मिल कर लड़ने का ऐलान कर रहे हैं। लेकिन हार के कारणों की समीक्षा करते-करते छोटे बड़े नेता एक दूसरे पर हार का कारण बनने, भितरघात का आरोप दबी जुबान से लगा रहे हैं।

हाल में रालोद के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मसूद अहमद ने तो खुल कर पैसे लेकर टिकट बेचने, सपा के दबाव में सीट छोड़ने वाले, मुस्लिम व दलितों के मुद्दे किनारे करने का आरोप लगा चुके हैं और इस्तीफा भी दे चुके हैं। रालोद के कई स्थानीय नेता भी दबी जुबान से पार्टी के जनाधार वाली सीटें सपा के लिए छोड़े जाने पर नाराजगी जता रहे हैं।

चुनाव के वक्त ही शुरू हो गई थी रार
सपा गठबंधन में महान दल व जनवादी पार्टी व रालोद पहले से ही थे। कई दलों से बात करने के बाद ओम प्रकाश राजभर अखिलेश यादव के साथ आए और सबसे आखिरी में भाजपा छोड़ कर स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में शामिल हो गए। महान दल को इन नेताओं को सपा द्वारा दी जा रही अहमियत रास नहीं आई। चुनाव के बीच तो उन्होंने सुभासपा पर तंज किए और चुनाव नतीजे आने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य को भी निशाने पर लिया। साथ ही उलाहना दी कि सपा स्वामी प्रसाद के भरोसे अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई। गठबंधन के लिए एक मुश्किल और है। गठबंधन के विधायकों के भाजपा के संपर्क में रहने का भी खतरा बना हुआ है।