कोरोना संक्रमण को लेकर यूरोपीय देशों से गहराती चिंता के चलते एक बार फिर से कच्चे की कीमतों में भारी गिरावट आई है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, दुनियाभर में डिमांड घटने की आशंका के चलते कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव बढ़ गया है. साथ ही, कच्चे तेल का उत्पादन और एक्सपोर्ट करने वाले देशों की ओर से लगातार क्रूड की सप्लाई बढ़ाई जा रही है. इसी वजह से ब्रेंट क्रूड 4 गिरकर 37 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया. इस भारी गिरावट के बाद कच्चा तेल पानी से भी सस्ता हो गया है. आपको बता दें कि भारत अपनी जरूरत के 83 फीसदी से अधिक कच्चा तेल आयात करता है और इसके लिए इसे हर साल 100 अरब डॉलर देने पड़ते हैं. कमजोर रुपया भारत का आयात बिल और बढ़ा देता है और सरकार इसकी भरपाई के लिए टैक्स दरें ऊंची रखती है.
कैसे पानी से भी सस्ता हुआ कच्चा तेल- मौजूदा समय में कच्चे तेल के दाम 37 डॉलर प्रति बैरल है. एक बैरल में 159 लीटर होते हैं. इस तरह से देखें तो एक डॉलर की कीमत 74 रुपये है. इस लिहाज से एक बैरल की कीमत 2733 रुपये बैठती है. वहीं, अब एक लीटर में बदलें तो इसकी कीमत 17.18 रुपये के करीब आती है, जबकि देश में बोतलबंद पानी की कीमत 20 रुपये के करीब है.
क्यों गिर रही है कच्चे तेल की कीमतें- कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए यूरोप के देशों में एक बार फिर से लॉकडाउन लग गया है. इससे करोड़ों-अरबों लोग अपने घरों में बंद दरवाजों के पीछे कैद होने को मजबूर हो गए. वहीं, कारोबारी गतिविधियां भी ठप हो गईं. नतीजा ये निकला कि पेट्रोल-डीजल की मांग और खपत तेजी से धड़ाम हो गई. इस बीच सऊदी अरब, रूस और अमेरिका के बीच क्रूड ऑयल का उत्पादन घटाने पर सहमति नहीं बन पाई. सऊदी अरब तेल उत्पादन करता रहा. बाद में कच्चे तेल पर निर्भर सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी तो उसने बहुत तेजी से क्रूड के दाम घटा दिए. बाद में ओपेक प्लस देशों के दबाव में तेल उत्पादन पर अंकुश लगाया गया.
सस्ता कच्चा तेल कैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बनेगा वरदान- भारत सरकार ने इस दौरान कम कीमत पर कच्चा तेल खरीदा जरूर, लेकिन उसके अनुपात में पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमत में खास बदलाव नहीं किया. इससे सरकार को दो बड़े फायदे हुए.पहला देश के चालू खाता घाटा में कमी आई और दूसरा सरकार के राजस्व में इजाफा हुआ. अर्थव्यवस्था के लिहाज से हाल में एक और अच्छी घटना हुई है. डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति में सुधार आया है. रुपया धीरे-धीरे डॉलर के मुकाबले 77 से सुधरकर 74 पर आ गया.
दूसरे शब्दों में कहें तो डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में 4 रुपये की मजबूती आई है. इससे सरकार को आयात के लिए भुगतान कम करना पड़ा और देश के चालू खाता घाटा में कमी आई. रुपये के मजबूत होने से कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक, जेम्स एंड ज्वेलरी, फर्टिलाइजर्स, केमिकल्स सेक्टर को सीधा फायदा होता है. इससे आयात की लागत घट जाती है. हालांकि, इससे कुछ सेक्टर्स को नुकसान भी होता है.