Lucknow : शब-ए-कद्र की यह रात रमजान महीने की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं या 29वीं रात में से कोई एक होती है. 27वीं शब-ए-कद्र की रात को ही अल्लाह ने कुरआन पाक को नाजिल किया था. दुनियाभर में रमजान का पवित्र महीना चल रहा है. जैसे ही रमजान का महीना पूरा होगा वैसे ही पूरी दुनिया में ईद मुबारक का त्योहार मनाया जाएगा. रमजान के महीने में एक ऐसी रात भी होती है जिसे खुदा ने हजारों रातों से भी ज्यादा बेहतरीन बनाया है. इस रात को ही शब-ए-कद्र की रात कहते हैं. शब-ए-कद्र की रात को ही अल्लाह ने कुरआन पाक को नाजिल किया था. इस वजह से यह रात एक खास इबादत वाली रात मानी जाती है. हालांकि अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि शब-ए-कद्र की रात कौन सी होती है लेकिन इतना जरूर बताया गया है कि इस रात को अल्लाह से की गई दुआ कबूल होती है. शब-ए-कद्र वाली रातों को जितना हो सके उतनी ज्यादा इबादत करनी चाहिए. रमजान के महीने की इन रातों के महत्व को देखते हुए बहुत से लोग शब-ए-कद्र की रात से पहले ही एतिकाफ यानि कि एकांतवास में चले जाते हैं. वो बिना किसी विघ्न के अपनी इबादत पूरी कर सकें. ये लोग ईद का चांद निकलने के बाद उसे देखकर ही घरों से बाहर निकलते हैं.
इस्लाम धर्म में रमजान के आखिरी 10 दिनों को खास महत्व दिया गया है. आखिरी अशरे में एतिकाफ में बैठकर सभी लोग एक किनारा पकड़ लेते हैं और इसी में कई लोग एक साथ बैठते हैं. यहां बैठने के बाद इन लोगों को कुछ जरूरी बातों को छोड़कर उस जगह से अलग जाने की इजाजत नहीं होती है. अगर मस्जिद में कोई एतिकाफ में बैठा है तो वह व्यक्ति मस्जिद परिसर से बाहर नहीं जा सकता है. आपको बता दें कि एतिकाफ में बैठकर मानवता के लिए दुआएं मांगी जाती है. एतिकाफ में लोग समाज के लिए बरकत, उनकी तरक्की और लोगों को रोगमुक्त करने की खुदा से दुआएं मांगते हैं.