पानी के मुद्दे पर हरियाणा और दिल्ली सरकार के बीच सियासत गर्म हो गई है। आरोप प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। दिल्ली सरकार के पानी न दिए जाने के आरोप लगाए जाने के बाद हरियाणा सरकार ने इस मामले में पानी के आंकड़े पेश करते हुए दिल्ली सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। सरकार के मुताबिक दिल्ली में पानी की कमी पूरी तरह से उनका आंतरिक मामला है। इसमें हरियाणा की कोई भूमिका नहीं है। मानसून में देरी के कारण हरियाणा पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहा है, फिर भी दिल्ली को बिना किसी कमी के जलापूर्ति की जा रही है।
हरियाणा सरकार के मुताबिक हरियाणा दिल्ली को नहर के माध्यम से मुनक में 1049 क्यूसेक पानी लगातार उपलब्ध करा रहा है। सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि मानसून में देरी के कारण यमुना नदी में पानी न उपलब्ध होने के कारण और दिल्ली में जल प्रबंधन की कुव्यवस्था के चलते दिल्ली वासियों को पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए झूठी राजनीतिक बयानबाजी कर रही है।
सच तो यह है कि यमुना में इस वर्ष लगभग 40 प्रतिशत पानी की कमी के चलते दिल्ली को अपने हिस्से का पानी दिया है। दिल्ली सरकार के इकनामिक सर्वे वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पेयजल के कुप्रबंधन के कारण 20 प्रतिशत पेयजल व्यर्थ हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार व्यर्थ होने वाले पेयजल की मात्रा 30 प्रतिशत से अधिक है। यह अति खेद का विषय है कि हरियाणा सरकार अपने सकारात्मक प्रयत्नों एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए भी दिल्ली सरकार की आलोचना झेल रही है।
उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन के लिए मुनक में हरियाणा द्वारा यमुना का 330 क्यूसेक अतिरिक्त पानी छोड़ा जाता है।
कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा है कि दिल्ली को पानी का पूरा हक दिया जा रहा है। आम आदमी पार्टी की आदत है गलत बयानबाजी करना। दिल्ली सरकार पहले भी ऑक्सीजन और प्रदूषण के मामले में गुमराह करती रही है। केजरीवाल को चाहिए कि वे पंजाब सरकार से हरियाणा को एसवाईएल का पानी दिलवाने की बात करें।