बास्केटबॉल का राष्ट्रीय खिलाड़ी बाईपास पर लगा रहा सब्जी का ठेला

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एक खिलाड़ी भले ही मैच हार जाए लेकिन वह कभी हिम्मत नही हारता। कोरोना महामारी के दौर में सब कुछ बन्द हुआ तो दूसरे वर्ग के साथ ही खिलाड़ी वर्ग भी आर्थिक रूप से कमज़ोर हो गया। कोई अवसाद में चला गया तो किसी ने सरकार से मदद की गुहार लगाई लेकिन बास्केटबॉल के राष्ट्रीय खिलाड़ी ने अपनी जीविका चलाने के लिए सब्ज़ी का ठेला लगाना शुरू कर दिया। तीन बार नेशनल चैंपियनशिप का प्रदेश की टीम की ओर से हिस्सा रहे खिलाड़ी सुरेंद्र गुप्ता की जब आर्थिक स्थिति बिगड़ी तो उन्हें एक करीबी से 6 हज़ार रुपये उधार लेकर देवरिया बायपास पर सब्ज़ी का ठेला लगाने पर विवश होना पड़ा। सुरेंद्र का कहना है कि खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होता है और कोई काम छोटा नही होता है। वक़्त पड़ने पर खिलाड़ी कुछ भी कर सकता है, इस बात का गवाह अब मैं खुद हूँ। बीते एक महीने से प्रतिदिन सुबह शाम सब्ज़ी बेच रहा हूँ। कोरोना में मास्क लगाना खुद को बचाने के लिए ज़रूरी है लेकिन इस मास्क से मुझे एक और फायदा हुआ वह ये के मेरा आत्मसम्मान भी बचा हुआ है। क्योंकि अगर किसी को पता चले के मैं खिलाड़ी हूँ और सब्जी बेच रहा हूँ तो सहानुभूति दिखाने लोग आएंगे जो मैं नही चाहता हूँ। मैं फिट हूँ मेरे हाथ पैर सलामत है तो मैं कोई भी काम कर सकता हूँ।

-सब्ज़ी बेची लेकिन अभ्यास नही छोड़ा
सुरेंद्र गुप्ता ने जंहा एक ओर जीविका चलाने के लिए चौराहे पर सब्ज़ी बेचना मंज़ूर किया तो वंही दोगुनी मेहनत कर अपने खेल को अभ्यास से जिंदा रखने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। सुरेंद्र ने बताया कि सुबह और शाम सब्ज़ी बेचता हूँ लेकिन हूँ तो एक खिलाड़ी और देश के लिए खेलना है इसलिए अपने खेल को कमज़ोर होने नही दे सकता हूँ। सुबह सब्ज़ी बेचने के लिए निकलने से पहले भोर में 4 से 6 अभ्यास करता हूँ उसके बाद रात में सब्जी बेच के आने के बाद अभ्यास करता हूँ। कोरोना काल में खेल आयोजन और खेल प्रतियोगिताएं पूरी तरह बंद है। जब भी खेल शुरू होंगे तो जो फिट और अभ्यास में होगा वही टीम में जगह बनाएगा इसलिए जरूरी है कि मेरा अभ्यास न छुटे। थक जाता हूँ मेहनत दोगुनी करनी पड़ती है लेकिन सपनो को पूरा करने के लिए ये ज़रूरी है।
-चाय बेचकर पिता ने बनाया खिलाड़ी
सुरेंद्र आज सब्ज़ी का ठेला लगाने को मजबूर है। सुरेंद्र के पिता रामवृक्ष गुप्ता देवरिया बाईपास पर चाय की दुकान चलाते है। सुरेंद्र ने कहा कि पिता ने चाय बेच कर मुझे पढ़ाया और खिलाड़ी बनाया है। आज भले सब्ज़ी बेच रहा हूँ लेकिन पिता के सपनो को टूटने नही दूंगा और बड़ा खिलाड़ी बनकर दिखाऊंगा।

-कॉलेज से नही मिला वेतन
सुरेंद्र गुप्ता बास्केटबाल खेलने के साथ ही एक कॉलेज में बच्चो को बास्केटबॉल की ट्रेनिंग भी देते थे। लइकन कोरोना कॉल में उन्हें कॉलेज से वेतन मिलना बंद हो गया उसके बाद आर्थिक रूप से कमज़ोर होते गए।तब जाकर सब्ज़ी बेचना विकल्प दिकहाय और सब्जी का ठेला लगाया
खेल में माहिर खिलाड़ी सुरेंद्र
जंगल सीकरी बाईपास में रहने वाले खिलाड़ी सुरेंद्र का सफर गोरखपुर के रीजनल स्टेडियम से शुरू हुआ। साल 2013-14 से स्टेडियम में प्रवेश मिला।अंडर 17 में उत्तर प्रदेश की टीम में चयन हुआ और पहली नेशनल चैंपियनशिप 7 अक्टूबर 2014 से 14 अक्टूबर 2014 चंडीगढ़ में खेली। दूसरी नेशनल चैम्पियनशिप का हिस्स सुरेन्द्र मई 2016 में अण्डर 19 में रहे। प्रतियोगिता पुडूचेरी में हुई। तीसरी जूनिर नेशनल चैम्पिनशिप 2017-18 में भुवनेश्वर में खेली। इसके अलावा इंटर यूनिवर्सिटी के साथ ही 9 स्टेट चैम्पिशनशिप का हिस्सा रहे। सुरेन्द्र के कोच दिलीप कुमार हैं।