एशिया से लेकर अफ्रीका तक, जितना हो सका चीन ने उतने ही देशों को अपने कर्ज जाल की नीति का शिकार बनाया. वो लालच देकर शुरुआत में कर्ज देता है और जब दूसरा देश उसे लौटाने में सक्षम नहीं होता, तो चीन अपने असल मकसद को पूरा कर उस देश के बंदरगाहों और हवाईअड्डों पर या तो कब्जा कर लेता है या फिर वहां अपना सैन्य अड्डा ही बना लेता है. यूं तो अब तक उसके कई शिकार बने हैं, लेकिन फिलहाल श्रीलंका चर्चा में बना हुआ है. श्रीलंका इस कदर कर्ज जाल में फंस गया है कि उसे चीन से इस संकट से निकलने के लिए मदद मांगनी पड़ी है.
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने रविवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ ऋण संकट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि क्या बीजिंग अपने विदेशी ऋण को पुनर्गठित करके विदेशी मुद्रा संकट से उबरने में उनके देश की मदद कर सकता है. वांग मालदीव से शनिवार को दो दिवसीय यात्रा पर श्रीलंका पहुंचे थे और उन्होंने राष्ट्रपति सचिवालय में राजपक्षे से मुलाकात की. इस दौरान श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने यह मुद्दा उठाया.
श्रीलंका के राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक राजपक्षे ने कहा कि अगर कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के समाधान के रूप में ऋण पुनर्गठन पर विचार किया जाता है, तो यह श्रीलंका के लिए एक बड़ी राहत होगी. एक अनुमान के मुताबिक श्रीलंका को इस साल 1.5 से दो अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज चीन को चुकाना है. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका द्वारा 150 करोड़ अमेरिकी डॉलर के अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बांड भुगतानों को पूरा करने पर संदेह जताया है.
इसमें से 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का पहला भुगतान अगले सप्ताह किया जाना है. श्रीलंका के राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि अगर चीन से आयात के लिए रियायती व्यापार ऋण योजना को मंजूरी मिल जाए, तो इससे उद्योग ठीक ढंग से काम कर सकेंगे. वांग की यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब श्रीलंका अपने अब तक के सबसे बुरे विदेशी मुद्रा संकट का सामना कर रहा है.