समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष रियाज़ुल्लाह खान ने केंद्र सरकार पर किया करारा हमला, मोदी को सुनाई खरी खोटी

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रियाज़ुल्लाह खान ने मोदी पर तंज कस्ते हुए कहा- 2014 में बेरोजगारों को हर साल 2 करोड़ नौकरियाँ देने तथा प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 100 दिन के अंदर 15 लाख जमा कराने के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार ने जिस तरह आरक्षण के खात्मे के लिए अंधाधुंध लाभजनक सरकारी कंपनियों के साथ रेलवे, हास्पिटलों, हवाई अड्डों इत्यादि को निजी हाथों में देने का सिलसिला शुरू किया, उससे बड़े पैमाने पर जागरूक बहुजनों का मोहभंग हुआ। रही सही कसर मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल की समाप्ति के प्रायः 5 माह पूर्व गरीब सवर्णों को आरक्षण देकर पूरा कर दिया। किन्तु जिस तरह उन्होंने कोरोना काल में अचानक लॉकडाउन कर लाखों करोड़ों लोगों को पैदल ही लॉन्ग मार्च के लिए विवश करने के साथ इस आपदा काल को अवसरों में बदलते हुये सरकारी संपत्तियों और कंपनियों को निजी हाथों में देने में अतिरिक्त तत्परता दिखलाया, उससे उनसे बहुजनों की उम्मीदें हमेशा के लिए खत्म हो गयी हैं। किन्तु वंचित बहुजन हमेशा के लिए उनसे नाउम्मीद जरूर हुये हैं, पर, किसी कोने से यह शोर नहीं सुनाई पड़ रहा है कि मोदी ने बहुजनों को गुलामों की स्थिति में डाल दिया है।

जिलाध्यक्ष ने गुलाम की परिभाषा बताते हुए कहा, इस विषय में अपना मस्तिष्क सक्रिय करें तो पता चलेगा कि शासक और गुलाम के बीच मूल शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक) पर कब्जे में निहित रहता है. गुलाम वे हैं जो शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत रहते हैं, जबकि शासक वे होते हैं, जिनका शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार रहता है। याद रहे मण्डल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद बहुजनों को आज की दिशा में पहुंचाने तथा शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों का एकाधिकार स्थापित करने की सबसे पहले परिकल्पना नरसिंह राव ने की। इसी मकसद से राव द्वारा 24 जुलाई, 1991 को ग्रहण किये गए नवउदारवादी अर्थनीति को उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह ने भी आगे बढ़ाया। पर, सबसे जोरदार तरीके से किसी ने हथियार के रूप में नवउदारवादी अर्थनीति का इस्तेमाल किया तो वह नरेंद्र मोदी ही रहे।

जिलाध्यक्ष ने कहा, कि मोदी की सवर्णपरस्त नीतियों का कमाल 22 जनवरी, 2018 को प्रकाशित ऑक्सफाम की रिपोर्ट के जरिये सामने आया. उस रिपोर्ट से पता चला कि टॉप की 1% आबादी अर्थात 1 करोड़ 3o लाख लोगों का देश की धन-दौलत पर 73 प्रतिशत कब्ज़ा हो गया है. इसमें मोदी सरकार के विशेष योगदान का पता इसी बात से चलता है कि सन 2000 में 1% वालों की दौलत 37 प्रतिशत थी, जो बढ़कर 2016 में 58.5 प्रतिशत तक पहुंच गयी. अर्थात 16 सालों में इनकी दौलत में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. किन्तु, उनकी 2016 की 58.5 प्रतिशत दौलत सिर्फ एक साल के अन्तराल में 73% हो गयी अर्थात सिर्फ एक साल में 15% का इजाफा हो गया. शायद ही दुनिया में किसी परम्परागत सुविधाभोगी तबके की दौलत में एक साल में इतना इजाफा हुआ हो. किन्तु मोदी की सवर्णपरस्त नीतियों से भारत में ऐसा चमत्कार हो गया.
केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी 2016 को जारी आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार में ग्रुप ‘ए’ की कुल नौकिरयों की संख्या 84 हजार 521 है। इसमें 57 हजार 202 पर सामान्य वर्गो ( सवर्णों ) का कब्जा है। यह कुल नौकरियों का 67.66 प्रतिशत होता है। इसका अर्थ है कि 15-16 प्रतिशत सवर्णों ने करीब 68 प्रतिशत ग्रुप ए के पदों पर कब्जा कर रखा है और देश की आबादी को 85 प्रतिशत ओबीसी, दलित और आदिवासियों के हि्स्से सिर्फ 32 प्रतिशत पद हैं।

अब ग्रुप ‘बी’ के पदों को लेते हैं। इस ग्रुप में 2 लाख 90 हजार 598 पद हैं। इसमें से 1 लाख 80 हजार 130 पदों पर अनारक्षित वर्गों का कब्जा है। यह ग्रुप बी की कुल नौकरियों का 61.98 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि ग्रुप बी के पदों पर भी सर्वण जातियों का ही कब्जा है। यहां भी 85 प्रतिशत आरक्षित संवर्ग के लोगों को सिर्फ 28 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी है।कुछ ज्यादा बेहतर स्थिति ग्रुप ‘सी’ में भी नहीं है। ग्रुप सी के 28 लाख 33 हजार 696 पदों में से 14 लाख 55 हजार 389 पदों पर अनारक्षित वर्गों ( अधिकांश सवर्ण )का ही कब्जा है। यानी 51.36 प्रतिशत पदों पर। आधे से अधिक है। हां, सफाई कर्मचारियों का एक ऐसा संवर्ग है, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी 50 प्रतिशत से अधिक है।

रियाज़ुल्लाह बोले- जहां तक उच्च शिक्षा में नौकरियों का प्रश्न है 2019 के आरटीआई के सूत्रों से पता चला कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसर, एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पदों पर सवर्णों की उपस्थित क्रमशः 95.2 , 92.90 और 76.12 प्रतिशत है.उपरोक्त आंकड़े 2016 के हैं। जबकि 13 अगस्त, 2019 को संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर नजर दौड़ाई जाय तो नौकरशाही के निर्णायक पदों पर सवर्णों का वर्चस्व देखकर किसी के भी होश उड़ जाएंगे। उस रिपोर्ट से पता चलता है कि मोदी सरकार के 89 सचिवों में से 1-1 एससी और एसटी के, जबकि ओबीसी का एक भी व्यक्ति नहीं है।

डॉ. आंबेडकर के अनुसार शक्ति के स्रोत के रूप में जो धर्म आर्थिक शक्ति के समतुल्य है, उस पर आज भी 100 प्रतिशत आरक्षण इसी वर्ग के लीडर समुदाय का है। धार्मिक आरक्षण सहित सरकारी नौकरियों के ये आंकडे चीख-चीख कह रहे हैं कि आजादी के 70 सालों बाद भी हजारों साल पूर्व की भांति सवर्ण ही इस देश के मालिक हैं।सरकारें चाहे समाजवादियों की रहे बहुजनो की भारत का मूल निवासी जिसकी आबादी 85 प्रतिशत वो रहेगा ग़ुलाम ही क्योंकि आज पूंजीवाद निजीकरण के रूप में सामंतवाद,मनुवाद वर्ण व्यवस्था के रूप में पांव जमा चुका है।खैर मुझे क्या बहुजन(पिछड़े,दलित) खुश रहे राम मंदिर बन ही रहा है मुस्लिम परेशान है,वैसे भी सदियों की ग़ुलामी की आदत जो ठहरी जाने से तो रही अम्बेडकर का सपना था बहुजनो तुम्हारे उत्थान के लेकिन तुम आज भी केवल वोट बैंक हो जिसको कोई दल जो तुम्हारे हितैषी बनता तुम्हारा सौदा कर देता है लेकिन तुमने कभी आपत्ति नही की क्योंकि आपत्ति करना तुम्हे आता ही कहाँ।नई पीढ़ी सीख ले आपत्ति करना क्योंकि निजीकरण के बाद सिर्फ एक मात्र रास्ता मुक्ति की लड़ाई।