रियाजुल्ला खान ने केंद्र पर बोला हमला, कहा- भारत को नई लोकतांत्रिक क्रांति की ज़रूरत है

406
Riazullah Khan
Riazullah Khan

समाजवादी लोहिया वाहिनी ज़िला अध्यक्ष रियाजुल्ला खान ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा- भारत में ‘जनता की सरकार की शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि इंसान अपनी संकुचित सोच की वजह से वर्तमान के बारे में ही सोचता रहता था, न कि भविष्य के लिए। हमारे बुजुर्गों ने सोचा था कि सरकारी संस्थाएं, संसदीय परंपरा और जनप्रतिनिधि हमारे स्वार्थ की उड़ान पर लगाम लगाएंगे और समाज को दूरदृष्टि देने का काम करेंगे. पर देश भर में आज के राजनीतिक माहौल को देखें, तो हालात इसके ठीक उलट लगते हैं. जो उम्मीद देश वासियों को लोकतंत्र से थी, वो टूटती हुई साफ़ दिखती है. आज हमारी राजनीतिक व्यवस्था फौरी चुनौतियों से निपटने का ज़रिया भर बन गई है. किसी भी लोकतांत्रिक सरकार में भविष्य को लेकर कोई दूरदृष्टि नहीं दिखती. वो आने वाली नस्लों के बारे में नहीं सोचते. नेता तो अगले चुनाव से आगे की सोच ही नहीं पाते. नियमित रूप से चुनाव होना लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. लेकिन, इस बुनियादी व्यवस्था ने नेताओं को भविष्य की फ़िक्र करने से आज़ादी दे दी है.वो बस अगला चुनाव जीतने की जुगत में लगे रहते हैं. यही वजह है कि अपराध बढ़ने पर अपराधियों के एनकाउंटर या गिरफ़्तार करने की खानापूर्ती होती है. इसके सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. अंतरराष्ट्रीय विवादों को हल करने में देशों के अपने स्वार्थ आड़े आते हैं.

इस धरती को बचाने और पर्यावरण को आने वाली पीढ़ियों के लिए साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी आज कोई नहीं लेना चाहता. पृथ्वी से जीवों की नस्लें विलुप्त हो रही हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में अपने फौरी स्वार्थ का बलिदान कोई देश नहीं करना चाहता.
आधुनिक लोकतंत्र की ये संकुचित सोच भविष्य की पीढ़ियों को आज की ज़रूरतों का ग़ुलाम बना रही है.

रियाजुल्ला खान बोलें- ये भविष्य को गुलाम बनाने वाला लोकतंत्र बन गया है, इसकी समस्या की जड़ लोकतंत्र की बुनियाद में ही है. चुनाव जीतने की जुगत में लगे नेता, वोटर को लुभाने के लिए टैक्स में छूट, बड़े कारोबारियों को मनमानी करने की इजाज़त देने और पर्यावरण को लेकर समझौते करने को तैयार रहते हैं. इसका बोझ आने वाली पीढ़ियों को उठाने के लिए छोड़ दिया जाता है. भविष्य के लिए शिक्षा में निवेश और पर्यावरण बेहतर करने की योजनाओं में निवेश से बचा जाता है. निकट भविष्य के ऐसे फ़ायदों के नुक़सान का बोझ आने वाली पीढ़ियों पर डाल दिया जाता है.मौजूदा पीढ़ी की ज़रूरतों को देखते हुए न तो पर्यावरण की फ़िक्र होती है, न शिक्षा में निवेश होता है, न ही ऐसी तकनीक विकसित किए जाने पर ज़ोर होता है, जिससे आने वाली नस्लों के लिए हम सुरक्षित और साफ़-सुथरी धरती को छोड़ जाएं. आने वाली पीढ़ियों को भी साफ़ हवा में सांस लेने का मौक़ा मिले. पर, तमाम लोकतांत्रिक देश, भविष्य की चुनौतियों को दबाकर रखना चाहते हैं. कई जानकार कहते हैं कि आज के लोकतंत्र भविष्य की पीढ़ियों को ग़ुलाम बना रहे हैं. वो पर्यावरण के ख़तरों, तकनीक के नुक़सान, परमाणु कचरे और सरकारों के क़र्ज़ का बोझ भविष्य पर डाल रहे हैं.

लोहिया वाहिनी ज़िला अध्यक्ष ने कहा- इसीलिए आज ज़रूरत है कि लोकतंत्र अपने आप को नए नज़रिए से देखे. अपनी संकुचित सोच के दायरे से बाहर निकले. भविष्य को अपना ग़ुलाम समझने वाली सोच से आज़ाद हो. ये हमारे दौर की सबसे बड़ी चुनौती है. कुछ लोगों का मानना है कि लोकतंत्र के लिए ये संभव नहीं. इसलिए मार्टिन रीस जैसे ब्रिटिश खगोलशास्त्री तो नरमदिल तानाशाही की वक़ालत करते हैं. मार्टिन रीस का मानना है कि लंबे वक़्त की चुनौतियों से निपटने के लिए हमें ऐसे तानाशाह की ज़रूरत है, जो हम सबकी बिना पर भविष्य के लिए फ़ैसले ले सके. वो इसके लिए चीन की मिसाल देते हैं, जिसने भविष्य को देखते हुए सौर ऊर्जा में भारी निवेश किया है. लेकिन, नरमदिल तानाशाही की वक़ालत करने वाले रीस ये भूल जाते हैं कि चीन का मानवाधिकार का रिकॉर्ड बुरा है. फिर, स्वीडन जैसा देश बिना तानाशाही के भी आज अपनी ज़रूरत की 60 प्रतिशत बिजली ऐसे स्रोत से हासिल करता है, जिन्हें फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं, चीन में ये अनुपात महज़ 26 प्रतिशत है. इसी तरह इसराइल में 2001 से 2006 तक भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक लोकपाल नियुक्त किया गया था. हालांकि बाद में ये पद ख़त्म कर दिया गया.फिर कोई तानाशाह हमेशा नरमदिल रहेगा, इसकी गारंटी कौन लेगा. हालांकि कुछ लोग इसका विरोध ये कहकर कर रहे हैं कि इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में बुनियादी बदलाव नहीं आएगा।लोकतंत्र ने अपनी शुरुआत से लेकर कई बार ख़ुद में बदलाव किए हैं. अपने आप को फिर से खोजा है, तराशा है।

रियाजुल्लाने कहा- देश में अखिलेश यादव जैसे नेता की ज़रूरत है जिसने भविष्य को ध्यान में रखकर पर्यावरण, तकनीकी, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य पे काम करके भविष्य की पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त किया समाजवादी विचारधारा ही लोकतांत्रिक क्रांति ला सकती और देश और दुनिया को भविष्य के लिए संवार सकती है।