अफगानिस्तान मीडिया कवरेज और भारतीय मीडिया प्रोपेगेंडा: रियाजुल्ला खान

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Riazullah Khan
Riazullah Khan

समाजवादी लोहिया वाहिनी ज़िला अध्यक्ष रियाजुल्ला खान ने कहा – जो लोग भारतीय मीडिया को परम पवित्र और श्रेष्ठ मीडिया मानते हैं वे जान लें कि भारतीय मीडिया असत्य के प्रौपेगैंडा में सारी दुनिया में अव्वल है और उसके मालिकों में पूंजीपति लॉबी का वर्चस्व है। यही कारपोरेट लॉबी सैन्य उद्योग से लेकर हर उद्योग की भी सबसे बड़ी मालिक है।

मीडिया में अफ़ग़ानिस्तान, आतंकवाद और तालिबान के संदर्भ में बीस साल पुराने मीडिया कवरेज की पुनर्वापसी हो गई है। इस तरह के कवरेज के दो लक्ष्य हैं, पहला लक्ष्य है जनता की राय को युद्धोन्माद के इर्द-गिर्द गोलबंद करना। मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत के आधार पर गोलबंद करना। उन लोगों को बाँधे रखना जो ‘युद्धोन्माद’, मुसलिम विरोधी घृणा और ‘बदले की कार्रवाई’ के एडिक्ट हैं।
कुछ इस तरह के वीडियो फ़ुटेज भी सामने आए हैं जिनमें कुछ लोग अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का विरोध कर रहे हैं। इनमें अधिकांश वे लोग हैं जो अमेरिका-सीआईए के एजेंट या मुखबिर के तौर पर काम करते रहे हैं।

भारत में भी एक बड़ा तबका है जिसे ‘बदले की कार्रवाई’ और समुदाय विशेष और विचारधारा विशेष के खिलाफ आए दिन ज़हर उगलते सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक सहज ही देखा जा सकता है। इस वर्ग के मन संतोष के लिए भारत में कई लोगों को तालिबान के समर्थन के नाम पर गिरफ्तार किया गया है।
एक सांसद के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई है। दुखद बात यह है कि विदेशों में क्या हो रहा है, उस पर भी नागरिकों को बोलने से रोका जा रहा है। निर्दोष लोगों पर दमन चक्र तेज कर दिया गया है।

आश्चर्य है विश्व में कहीं पर तालिबान के पक्ष-विपक्ष में बोलने पर मुकदमे या गिरफ्तारियां नहीं हो रहीं। यहां तक कि अमेरिका में भी गिऱफ्तारियां नहीं हुई हैं, जब कि वहां पर बड़ी संख्या में लेखकों-पत्रकारों और आम लोगों ने अपनी अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ तक प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं।
विदेश की घटनाओं, खासकर अफगानिस्तान की घटनाओं पर भारत सरकार का कोई नीतिगत बयान अभी तक नहीं आया है ऐसे में आम नागरिकों को बयान देने के नाम पर गिरफ्तार करना गलत है। यह सीधे मानवाधिकारों का उल्लंघन है। यूपी में एक सपा सांसद के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। असम में 14 लोग गिरफ्तार किए गए हैं।

दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार ने तालिबान की निंदा में एक बयान तक जारी नहीं किया है। विगत सात सालों में, मोदी के पीएम बनने के बाद एक भी बयान जारी नहीं किया है। उलटे विभिन्न तरीकों से तालिबान के साथ विदेश मंत्रालय के स्तर पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संवाद चलता रहा है।
मोदी सरकार तुरंत तालिबान के बारे में अपना रुख साफ करे और बताए कि क्या उनकी सरकार तालिबान को आतंकी संगठन मानती है ? क्या अफगान सरकार को आतंकी सरकार मानती है ? तालिबान जब तक शासन में रहेंगे क्या उनसे कोई संवाद नहीं करेगी ?
भारत के विदेश मंत्री ने सुरक्षा परिषद तक में तालिबान के ख़िलाफ़ एक वाक्य तक नहीं बोला। आखिरकार यह चुप्पी क्यों ?

तालिबान के प्रसंग में विदेश नीति में स्पष्टता के अभाव में जमीनी स्तर भारत के निर्दोष लोगों को मात्र बयान देने की वजह से गिरफ्तार करना और उनके खिलाफ एफआईआर करना निंदनीय है।

यह असल में उस मीडिया प्रौपेगैंडा का असर है जो एक सिरे उन्माद और बदले की कार्रवाई के फ्रेम में हम सबके बीच में चल रहा है।
यह सच है तालिबान एक आतंकी संगठन है और उसका नाम आतंकी संगठनों की सूची में संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर अमेरिका तक में दर्ज है। लेकिन मात्र इतने से या अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान छोड़ना पड़ा, इस बिना पर मीडिया के तालिबान संबंधी मीडिया कवरेज को संतुलित नहीं कह सकते।

मीडिया लगातार आतंकवाद के ख़िलाफ़ कवरेज के सवालों दुरंगा-तिरंगा रवैय्या व्यक्त करता रहा है
तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान में नियंत्रण है यह ज़मीनी हक़ीक़त हमें स्वीकार कर लेनी चाहिए और कोशिश करें कि अफ़ग़ानिस्तान में शरणार्थियों की आड़ में विभिन्न आतंकी संगठन बाहर से आकर सक्रिय न होने पाएँ। तालिबान ने शांति, सामान्य प्रशासन, जनता को सुरक्षा देने और विदेशी राजनयिक मिशनों की सुरक्षा का वायदा किया है।

संक्षेप में, तालिबान के सत्ता में वापसी के बहाने आतंकवाद के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे प्रचार अभियान पर गौर करें। मसलन्, भारतीय मीडिया में उन लोगों की कवरेज की बाइटस अधिक आ रही हैं जो अमेरिका के समर्थक हैं, रिपब्लिकन-डेमोक्रेट पार्टी के सैन्यवादी प्रचार अभियान में लगे रहे हैं। मसलन्, जलालाबाद में एक घटना घटी तो उसका कवरेज इस तरह आया गोया तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में कत्लेआम मचा रहे हैं। जबकि अमेरिकी सेना ने विगत बीस साल में हर सप्ताह अफगानिस्तान में व्यापक कत्लेआम किया, तकरीबन एक लाख से अधिक नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन उसका कोई कवरेज नहीं आया।

अमेरिका की पिछलग्गू सरकार के रूप में काम कर रही है मोदी सरकार नया क़ायदा यह है कि अमेरिका के साथ रहो, मनमाने ज़ुल्म करो, मीडिया में कोई कवरेज नहीं आएगा। यही स्थिति भारत में है। मोदी सरकार अमेरिका की पिछलग्गू सरकार के रूप में काम कर रही है। मोदी के ख़िलाफ़ मीडिया में कवरेज एक सिरे से नदारत है।

भारत का मीडिया कवरेज के मामले में अमेरिकी मीडिया का अंधानुकरण करता है। चूंकि अमेरिकी मीडिया में तालिबान विरोधी तथ्यहीन प्रौपेगैंडा शुरु हो गया है तो भारत का मीडिया पीछे कैसे रह सकता है, वह भी तालिबान के ख़िलाफ़ तथ्यहीन, उन्मादी प्रौपेगैंडा कर रहा है।
अमेरिकी मीडिया की तर्ज़ पर भारतीय मीडिया अफ़ग़ानी औरतों के दमन-उत्पीड़न के क़िस्से और आख्यान बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। इसी मीडिया ने अमेरिकी सेना के द्वारा विगत बीस साल में हज़ारों अफगानी औरतों को मौत के घाट उतार दिया गया लेकिन कोई कवरेज पेश नहीं किया। यहां तक कि हज़ारों अफगानी नागरिक जेलों और यातना शिविरों में अकथनीय यातनाएँ झेलते रहे, उनके बारे में कोई कवरेज पेश नहीं किया।यही हालत सऊदी अरब की औरतों की है, वहाँ औरतें अकथनीय यातना की शिकार हैं लेकिन मीडिया में कोई न्यूज़ आइटम नज़र नहीं आएगा, क्योंकि सऊदी अरब का प्रशासन पूरी तरह अमेरिका के साथ है।सऊदी अरब में औरतों को वोट का अधिकार नहीं है, कार चलाने का अधिकार नहीं है। वे बाज़ार में अकेले नहीं जा सकतीं, उनके साथ परिवार के मर्द का होना जरूरी है, लेकिन भारतीय मीडिया को यह सब नज़र ही नहीं आता। वह तो अमेरिकी मीडिया का अंधानुकरण करते हुए अफ़ग़ानिस्तान की औरतों के फेक नरेटिव परोसने में व्यस्त है।भारत के उन तथाकथित बुद्धिजीवियों और स्त्री समर्थकों का कोई बयान और फ़ेसबुक पोस्ट तक नज़र नहीं आएगी जो इन दिनों अफ़ग़ानी औरतों के दमन के क़िस्सों को अतिरंजित ढंग से पेश कर रहे हैं।

वाशिंगटन पोस्ट (16 अगस्त 2021) में माइग्रेट सुलीवन ने लिखा कि बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ जो सोशल मीडिया दे रहा है, वह ऐतिहासिक संदर्भ के बिना आ रही है। जबकि इस तरह की ख़बरें ऐतिहासिक संदर्भ के साथ दी जानी चाहिए। पार्टीजन तरीक़े से आरोप न लगाए जाएँ। मीडिया में ‘पराजित और विजेता’ के आख्यान फ़्रेमवर्क में अफ़ग़ानिस्तान की खबरें पेश की जा रही हैं। इस तरह के कवरेज में ख़बर के ऊपर विश्लेषकों -विशेषज्ञों की राय हावी है। ख़बर नदारद है। जबकि हक़ीक़त यह है अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक परिस्थिति धीरे धीरे विकसित हो रही है, उसे पूरी शक्ल अख़्तियार करने में समय लगेगा।

मीडिया में ‘न्यूज़ उपभोक्ता’ को केन्द्र में रखकर ख़बरें पेश की जा रही हैं। यह एक तरह से मांग-पूर्ति के सिद्धांत के अनुसार ‘क्विक-टेक जर्नलिज़्म’ है। इस तरह की पत्रकारिता ख़बर कम और प्रौपेगैंडा अधिक परोस रही है।