Parliament Session :नेशनल कांफ्रेंस ने संसद में जम्मू-कश्मीर पर बात करने के लिए दिया नोटिस

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लोकसभा सदस्य और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला लगभग एक साल बाद सोमवार को संसद की कार्यवाही में पहली बार शामिल हुए। उम्मीद के विपरीत उन्होंने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पर कोई मौखिक एतराज नहीं जताया, लेकिन पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसलों और उसके बाद के प्रदेश के हालात पर चर्चा के लिए एक नोटिस जरूर दिया है। उन्होंने कोविड-19 से पैदा हालात पर केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया और कहा कि जम्मू में आक्सीजन की कमी सरकारी दावों की हकीकत बयां करती है।

लगभग एक साल बाद कश्मीर से बाहर निकल दिल्ली पहुंचे फारूक

डॉ. फारूक अब्दुल्ला पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद गत रविवार को पहली बार कश्मीर से बाहर दिल्ली पहुंचे हैं। उनके साथ बारामुला-कुपवाड़ा के सांसद मोहम्मद अकबर लोन और अनंतनाग-पुलवामा के सांसद जस्टिस (सेवानिवृत्त) हसनैन मसूदी भी संसद में मौजूद रहे।

अपने दो सांसदों के साथ संसद की कार्यवाही में शामिल हुए डॉ. फारूक

मानसून सत्र में संसद की पहले दिन की कार्यवाही में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष अपने दोनों साथी सांसदों के साथ शामिल हुए। संसद में पहुंचने पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर और मनीष तिवारी, एनसीपी की सुप्रिया सुले, डीएमके के ए राजा और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने उनका स्वागत किया। सभी उम्मीद कर रहे थे कि नेकां के तीनों सांसद आज जरूर कुछ बोलेंगे, जम्मू-कश्मीर की सियासत, पुनर्गठन और हालात पर बात करेंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

पुनर्गठन पर कुछ नहीं बोले, कोविड-19 पर केंद्र सरकार को घेरा

सांसद हसनैन मसूदी ने बताया कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कोविड-19 से जम्मू-कश्मीर में विशेषकर जम्मू में पैदा हालात पर केंद्र को लताड़ा है। उन्होंने हाल ही में जम्मू में आक्सीजन की कमी से कथित तौर पर कुछ लोगों की मौत का जिक्र करते हुए कहा कि यह मामला केंद्र और जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा कोविड-19 से निपटने की दिशा में किए जा रहे दावों की हकीकत बयां करता है।

हसनैन मसूदी ने जम्मू-कश्मीर के सियासी हालात पर नेकां सांसदों द्वारा कोई मुद्दा न उठाए जाने पर कहा कि हम नियमों के मुताबिक चलते हैं। आज डॉ. अब्दुल्ला के नेतृत्व में हमने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को लागू करने, उसके बाद से पैदा हालात पर चर्चा के लिए एक नोटिस दिया है। केंद्र सरकार ने इस अधिनियम को लागू करते हुए जो ख्वाब दिखाए थे, वह सभी धाराशायी हो चुके हैं। हम चाहते हैं कि पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल हो।