लोन मोरेटोरियम केस में SC में बोली केंद्र सरकार बोली- ‘राजकोषीय नीति में कोर्ट नहीं दे सकती दखल’

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supreme court
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लोन मोरेटोरियम मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दाखिल किया है। सरकार ने कहा है कि मौजूदा हालात में विभिन्न सेक्टर को और राहत देना संभव नहीं है। राजकोषषीय नीति के मामले में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। पांच अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार के हलफनामे पर असंतोषष जताया था। साथ ही केंद्र एवं भारतीय रिजर्व बैंक ([आरबीआइ)] को विस्तृत जानकारी के साथ हलफनामा देने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट में अपने नए हलफनामे में सरकार ने कहा, ‘नीतियां बनाना सरकार का काम है और अदालत को सेक्टर विशेषष को वित्तीय राहत देने के मामलों पर विचार नहीं करना चाहिए। दो करो़़ड रपये तक के लोन पर मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज पर ब्याज में दी गई राहत से ज्यादा कोई छूट देना अर्थव्यवस्था एवं बैंकिंग सेक्टर के लिए घातक होगा।’ पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि दो करो़़ड रपये तक के एमएसएमई और पर्सनल लोन पर छह महीने की मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज पर ब्याज नहीं वसूला जाएगा। इस छूट पर आने वाले खर्च को सरकार स्वयं वहन करेगी।

नए हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिकाओं के जरिये अलग-अलग सेक्टर के लिए राहत नहीं मांगी जा सकती है। सरकार ने कहा, ‘कर्जदार और कर्जदाता अपने स्तर पर रीस्ट्रक्चरिंग प्लान बनाते हैं। केंद्र और रिजर्व बैंक इसमें दखल नहीं दे सकते।’ सरकार ने यह भी कहा कि व्यापक विमर्श के बाद कुछ श्रेणियों के लिए ब्याज पर ब्याज में छूट का फैसला लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में नए हलफनामे में रिजर्व बैंक ने कहा कि लोन मोरेटोरियम की अवधि और ब़़ढाना सही नहीं है। मोरेटोरियम को छह महीने से ज्यादा ब़़ढाने से कर्ज अनुशासन बिग़़डेगा। कर्जदारों का व्यवहार प्रभावित होगा। इससे सबसे ज्यादा छोटे कर्जदार प्रभावित होंगे। केंद्रीय बैंक ने अदालत से फैसला आने तक किसी भी खाते को फंसा कर्ज ([एनपीए)] नहीं घोषिषत करने के अंतरिम आदेश को भी तत्काल वापस लेने की अपील की है। आरबीआइ ने कहा कि ऐसा नहीं होने से बैंकिंग सिस्टम पर बुरा असर प़़डेगा और कई नियामकीय व्यवस्थाएं भी प्रभावित होंगी