पीली पगड़ी पहन किसानों ने मनाया शहीदी दिवस, मिली किसान आंदोलन को ऊर्जा, कलाकारों ने बढ़ाया हौसला

354

23 मार्च 1931 को अंग्रेजी शासनकाल के दौरान भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इसके बाद से 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। अब एक बार फिर से 23 मार्च 2021 की तारीख को दिल्ली में लगभग चार महीने (केवल दो दिन कम) से चल रहे किसान आंदोलन के लिए याद रखा जाएगा। लगभग कहने भर के लिए बचे किसानों के इस आंदोलन को शहीद दिवस से प्राणवायु मिल गई। मंगलवार को हजारों युवाओं, महिलाओं में आंदोलन में आकर इंकलाबी झंडे गाड़ दिए और कहा कि अब वह किसानों का हक लेकर ही दिल्ली से वापस जाएंगे।

टीकरी बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से जहां तक नजर जा रही थी वही वसंती पगड़ियां और पीली, धानी चुन्नियां दिखाई दी। युवाओं और महिलाओं के हाथों में राष्ट्रध्वज तिरंगे के साथ-साथ किसान मोर्चे और भगत सिंह के चित्रों वाले झंडे भी थे। युवाओं ने बताया भगत सिंह कहते थे कि आजादी तो हमें मिलेगी इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन किन शर्तों पर मिलेगी यह महत्वपूर्ण है। वह चाहते थे कि जल, जंगल, जमीन पर किसानों, मजदूरों और गरीबों का हक हो। नहीं तो आजादी के बाद देश में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद हावी हो जाएंगे।

युवा किसान नेता हरप्रीत भाऊ ने कहा कि भगत सिंह पूरी सोच है, उनकी सोच कायम होने पर पूरे भारत में खुशहाली होगी। होशियारपुर से पहुंची भगत सिंह की भांजी गुरजीत कौर ने कहा कि सरकार पूंजीपतियों के साथ खड़ी है। वह भगत सिंह के सपने को मिटाना चाहती थी।

किसान आंदोलन के  118 वें दिन मंगलवार को गाजीपुर और सिंघु बॉर्डर पर शहीदी दिवस मनाया गया। किसानों ने शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद करते हुए श्रद्घासुमन अर्पित किए। मंच  से देशभक्ति के तराने इस माहौल में मानों रंग भर रहे थे। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, माई मेरा रंग दे बसंती चोला, पगड़ी संभाल जट्टा, जैसे फिल्मों के गाने चल रहे थे।

इस मौके पर भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन ने कहा कि  शहीदी दिवस को मनाने का उद्देश्य काले कृषि कानूनों की खिलाफत है। वीर शहीदों ने भी अंग्रेजी कानून नहीं माना और प्राणों का बलिदान किया था। किसान भी शहीद दिवस पर प्रण करेंगे कि नए कृषि कानून नहीं मानेंगे, चाहे मर जाएं।

गाजीपुर बार्डर पर उमड़े जन सैलाब के बीच गायक सोनिया मान और अजय हुड्डा ने देश भक्ति के गीतों से से समा बांधा। कई ग्रुपों ने मंच से नाटकों का मंचन किया, जिससे आंदोलनकारी किसानों ने तीनों शहीदों को याद किया।

शहीदी दिवस के मौके पर 11 की जगह 17 किसान 24 घंटे के क्रमिक अनशन पर रहे। अनशनकारियों में हरवेल सिंह, गुरदीप सिंह, अनुराग, सत्य प्रकाश यादव, चौधरी तेजपाल सिंह, मनजीत सिंह बाजवा, मणि देव चतुर्वेदी, अकबर, पंडित अर्जुन, करण सिंह, मूलचंद कुलदीप सिंह चीमा, गोपाल सिंह, सूबेदार मेजर जयप्रकाश मिश्र, हरविंदर सिंह राणा,  देशा सिंह और नसरुद्दीन शामिल रहे।

सिंघु बॉर्डर पर अलग शहरों से पहुंचे युवाओं ने किसानों को संबोधित किया। महिलाओं ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि महिला शक्ति भी वर्तमान की भगत सिंह हैं। इस मौके पर मौजूद नौदीप कौर ने भी किसान और मजदूरों के शोषण के षड़यंत्र को किसानों के समक्ष रखा। पंजाबी कलाकार रविंदर ग्रेवाल और हरजीत हरमन ने इंकलाबी गीतों से किसानों का हौंसला बढ़ाया। 

इस दौरान शहीदों से जुड़े स्थल सुनाम, खटकड़कलां, आनंदपुर साहिब, फतेहगढ़ साहिब, सराभा, जलियांवाला बाग, हुसैनीवाला और चमकौर साहिब से मिट्टी इकट्ठा कर पहुंचे। पिछले करीब चार महीने से कृषि कानूनों और एमएसपी की गारंटी की मांग पर डटे किसानों ने आंदोलन में जान गंवानों वालों को याद करते हुए आंदोलन को आगे सफल बनाने का आह्वान किया।