दोहा में तालिबानी नेता से मिले भारतीय राजदूत – नागरिकों की वापसी सहित कई मुद्दों पर हुई चर्चा, पीएम मोदी ने गठित की उच्चस्तरीय समिति

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    अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान के हाथों में सत्ता आने के साथ ही भारत ने भी अपने कूटनीतिक हितों के हिसाब से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। भारत ने सीधे तौर पर तालिबान के साथ संवाद शुरू कर यह संकेत दिया है कि वह अफगानिस्तान में उसकी सत्ता को मान्यता दे सकता है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उसके शासन में अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारतीय हितों के खिलाफ नहीं होना चाहिए।

    दूसरी तरफ तालिबान के सत्ता में आने के बाद सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों पर नजर रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को मिलाकर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है। भारत की अध्यक्षता में हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सोमवार देर रात बैठक के जरिये भी विश्व बिरादरी ने साफ संकेत दिया है कि अफगानिस्तान को आतंक का अड्डा नहीं बनने दिया जाएगा।

    तालिबान के आग्रह पर दोहा स्थित भारतीय दूतावास में हुई बैठक

    विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक दल के मुखिया शेर मुहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात की है। मुलाकात का आग्रह तालिबान की तरफ से आया था और दोनों की बैठक दोहा स्थित भारतीय दूतावास में हुई। इनके बीच अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षा, संरक्षा और उनकी शीघ्र वापसी को लेकर बातचीत हुई है। अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक जो भारत आना चाहते हैं, उस बारे में भी वार्ता हुई है। भारतीय राजदूत ने तालिबान के सामने अपनी इस चिता को रखा है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किसी आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होनी चाहिए। साथ ही भारत ने यह भी कहा है कि अफगानिस्तान में किसी भी सूरत में भारत विरोधी गतिविधियों को संरक्षण नहीं मिलना चाहिए।

    तालिबान के प्रतिनिधि ने भारत को दिलाया भरोसा

    तालिबान के प्रतिनिधि ने भारत को भरोसा दिलाया कि वह इन सभी मुद्दों को देखेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि ऐसा नहीं हो। विदेश मंत्रालय ने जिस तरह से तालिबान के नेता के साथ भारतीय राजदूत की मुलाकात पर आधिकारिक बयान जारी किया है उससे साफ है कि अब भारत काबुल की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद ज्यादा व्यवहारिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ेगा। खास तौर पर तब जब पाकिस्तान व चीन जैसे पड़ोसी देशों की अफगानिस्तान में महत्व बढ़ने की पूरी संभावना है। यह मुलाकात एक तरह से तालिबान को राजनीतिक मान्यता देने जैसा ही है।

    तालिबान बार-बार दे चुका है भारत से रिश्तों की दुहाई

    तालिबान की तरफ से भी बार-बार भारत के साथ रिश्तों को दुहाई दी जा रही है। उसने कई बार भारत के साथ सामान्य रिश्ते रखने के संकेत दिए हैं। देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में सैन्य प्रशिक्षण लेने वाले स्टेनकजई ने एक दिन पहले ही एक वीडियो संदेश जारी किया था, जिसमें भारत के साथ रिश्तों को काफी महत्वपूर्ण बताया था। तालिबान नेता ने भारत के साथ सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक संबंध बनाए रखने की बात कही थी। सूत्रों का कहना है कि भले ही पहली बार भारत ने तालिबान के साथ वार्ता को सार्वजनिक किया हो लेकिन इसके पहले भी तालिबान के साथ भारतीय प्रतिनिधियों की मुलाकात हुई है।

    वार्ता के साथ सुरक्षा को लेकर भी भारत सतर्क

    तालिबान के साथ संपर्क का यह कतई मतलब नहीं है कि भारत अपनी सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को लेकर कोताही बरत रहा है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया है कि पीएम मोदी की तरफ से गठित उच्च स्तरीय समिति पिछले कुछ दिनों से लगातार बैठकें कर रही है। समिति न सिर्फ अफगानिस्तान से भारत के नागरिकों को निकालने में सामंजस्य स्थापित कर रही है बल्कि अफगान के हालात को लेकर वैश्विक विरादरी की प्रतिक्रिया पर भी नजर रख रही है। नीति तय करने में भी अहम भूमिका निभा रही समिति इस समिति की मदद से ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की सोमवार देर रात हुई बैठक में भारतीय पक्ष की नीति तय की गई है।

    यूएनएससी की तरफ से जारी प्रस्ताव में तालिबान से वैश्विक समुदाय ने आतंकवाद से दूर रहने और अफगानिस्तान की जमीन किसी दूसरे देश के हितों के खिलाफ इस्तेमाल नही करने की जो बात कही है, उसे तैयार करने में भारत की भूमिका अहम रही है।

    तालिबान को स्पष्ट संदेश

    भारत ने बातचीत के साथ ही तालिबान को आतंकी संगठनों को लेकर स्पष्ट संदेश भी दे दिया है। विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने कहा कि तालिबान को साफ तौर पर बता दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उससे क्या उम्मीद लगाए हुए है। उन्होंने यह भी कहा कि जैश-ए- मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को अफगानिस्तान में किसी तरह का प्रश्रय नहीं मिलना चाहिए।