Glasgow COP26: भारत ने जलवायु समिट को बताया सफल, कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने के सुझाव को माना गया

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    भारत ने ग्लासगो में हुए संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन (COP26) को ‘सफल’ बताते हुए रविवार को कहा कि इसने विकासशील दुनिया की चिंताओं और विचारों को विश्व समुदाय के सामने ‘संक्षेप में और स्पष्ट रूप से’ रखा. ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन अतिरिक्त समय तक जारी रहने के बाद शनिवार को एक समझौते पर सहमति के साथ संपन्न हुआ. यह समझौता जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को “चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने” के भारत के सुझाव को मान्यता देता है.

    इस शिखर सम्मेलन में करीब 200 देशों के वार्ताकारों ने हिस्सा लिया. सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि दुनिया को इस वास्तविकता को स्वीकार करने की जरूरत है कि वर्तमान जलवायु संकट विकसित देशों में अस्थिर जीवन शैली और बेकार खपत पैटर्न से उत्पन्न हुआ है.

    यादव ने रविवार को एक ब्लॉग में लिखा, “शिखर सम्मेलन भारत के दृष्टिकोण के लिहाज से सफल साबित हुआ क्योंकि हमने विकासशील दुनिया की चिंताओं और विचारों को काफी संक्षिप्त और स्पष्ट रूप से व्यक्त किया और सामने रखा. भारत ने मंच पर एक रचनात्मक बहस और न्यायसंगत एवं न्यायपूर्ण समाधान का मार्ग प्रस्तुत किया. हालांकि, सीओपी26 आम सहमति से दूर रहा. भारत ने यह सुनिश्चित किया कि वर्तमान जलवायु संकट मुख्य रूप से विकसित देशों में अस्थिर जीवन शैली और बेकार खपत पैटर्न से उत्पन्न हुआ है. दुनिया को इस वास्तविकता को जागृत करने की जरूरत है.”

    मंत्री ने ब्लॉग ‘सीओपी 26 डायरी’ में लिखा है कि भारत ने जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए अंतररष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (CDRI) और ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन सन ग्रिड’ बनाने में सक्रिय रूप से अग्रणी भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा, “अपनी भूमिका निभाने के बाद, भारत ने शिखर सम्मेलन में इस निर्णायक दशक में विकसित दुनिया से ठोस कार्रवाई करने और प्रतिबद्धताओं को कार्यों में बदलने के लिए कहा.”

    भारत के बयान को स्वीकारने के अलावा विकल्प नहीं- अमेरिका

    ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोत कोयले की शक्ति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बजाय, चरणबद्ध तरीके से कम करने के संबंध में किए गए परिवर्तन के लिए भारत की कई देशों द्वारा आलोचना की गई है. छोटे द्वीपीय देशों समेत कई देशों ने कहा है कि वे भारत के इस सुझाव से बेहद निराश हैं क्योंकि कोयला आधारित संयंत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत हैं.

    वहीं जलवायु मामलों पर अमेरिका के दूत जॉन केरी ने कहा कि सरकारों के पास कोयला के संबंध में भारत के बयान को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा, “अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो हमारे बीच कोई समझौता नहीं होता. हम वास्तव में जलवायु अराजकता से बचने और स्वच्छ हवा, सुरक्षित पानी और स्वस्थ ग्रह हासिल करने की दिशा में पहले से कहीं ज्यादा करीब हैं.”

    भारत पेरिस समझौते को हासिल करने की राह पर- यादव

    यादव ने कहा कि जीवाश्म ईंधन और उनके उपयोग ने दुनिया के कुछ हिस्सों को उच्च स्तर की बढ़ोतरी हासिल करने में सक्षम बनाया है. उन्होंने कहा, “अब भी, विकसित देशों ने कोयले के इस्तेमाल को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया है. यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) सभी स्रोतों से जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए संदर्भित करता है. यूएनएफसीसीसी किसी विशेष स्रोत पर निर्देशित नहीं है. विकासशील देशों का वैश्विक कार्बन बजट में उचित हिस्से का अपना अधिकार है और उन्हें इस दायरे में जीवाश्म ईंधन के जिम्मेदार उपयोग का हक है.”

    मंत्री ने कहा कि पेरिस समझौते में निहित जलवायु के अनुकूल जीवन शैली और जलवायु न्याय जलवायु संकट को हल करने की कुंजी है. उन्होंने कहा, “हम आज गर्व से कह सकते हैं कि भारत एकमात्र जी20 देश है, जो पेरिस समझौते के तहत उल्लिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के बारे में और इसके बारे में बहुत सारी बातें हुई हैं, जलवायु वित्त पर प्रतिबद्धता की कमी परेशानी का सबब है.”

    उन्होंने कहा, “जलवायु वित्त और शमन प्रयासों के बीच एक व्यापक बेमेल है. विकासशील देशों को कार्यान्वयन सहायता के साधनों का रिकॉर्ड अब तक निराशाजनक रहा है. भारत आगे विकासशील देशों को वित्त और प्रौद्योगिकी सहायता में बदलाव की आशा करता है.” उन्होंने आशा जताई कि दुनिया जलवायु संकट की तात्कालिकता की ओर बढ़ेगी.

    जलवायु आपदा के कगार पर खड़े- गुटेरेस

    वहीं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक बयान में कहा, “पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील धरती के लिए कदम उठाना बेहद जरूरी है. हम जलवायु आपदा के कगार पर खड़े हैं. हमने इस सम्मेलन में लक्ष्यों को हासिल नहीं किया, क्योंकि प्रगति के मार्ग में कुछ बाधाएं हैं.”

    ग्लासगो में दो सप्ताह तक संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में कई देशों ने एक-एक कर अपनी आपत्ति जताई कि कैसे यह समझौता जलवायु संकट से निपटने में पर्याप्त नहीं है. लेकिन, कई देशों ने कहा कि कुछ नहीं करने से बेहतर है कि कुछ किया जाए और इस दिशा में आगे बढ़ते रहना बेहतर होगा.