नेपाल में लंबा खिंचेगा सियासी संकट, PM ओली का इस्तीफा देने का इरादा नहीं, संसद का सामना करने को तैयार

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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तत्काल इस्तीफा नहीं देंगे और दो सप्ताह के भीतर संसद का सामना करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करेंगे। ओली के प्रेस सलाहकार सूर्या थापा ने बुधवार को बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला विवादास्पद है, लेकिन फिर भी उसे स्वीकार कर लागू किया जाना चाहिए। इसका असर भविष्य में देखने को मिलेगा क्योंकि इस फैसले से राजनीतिक समस्याओं का कोई समाधान नहीं हुआ है।

‘हिमालयन टाइम्स’ ने थापा के हवाले से लिखा है, प्रधानमंत्री फैसले पर तामिल करने के लिए प्रतिनिधि सभा का सामना करेंगे, लेकिन इस्तीफा नहीं देंगे। कोर्ट के फैसले से अस्थिरता आएगी और सत्ता की लड़ाई का रास्ता खुल जाएगा। ओली के मुख्य सलाहकार विष्णु रिम ने कहा कि हम सभी को शीर्ष अदालत का फैसला स्वीकार करना होगा।

हालांकि इससे देश के राजनीतिक संकट का कोई समाधान नहीं होता। दरअसल, नेपाल के अधिकतर मीडिया घरानों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लोकतांत्रिक मूल्यों को बरकरार रखने वाला और संविधान की रक्षा करने वाला बताया था। नेपाल के चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर जेबीआर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 275 सदस्यों वाले संसद के निचले सदन को भंग करने के सरकार के फैसले पर मंगलवार को रोक लगा दी थी।

कोर्ट ने 13 दिन के भीतर सदन का सत्र बुलाने का आदेश दिया था। नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी में खींचतान के बीच उस समय सियासी संकट में घिर गया था जब ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 20 दिसंबर को संसद की प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था।

राष्ट्रपति ने 30 अप्रैल से 10 मई के बीच नए सिरे से चुनाव कराने की घोषणा की थी। ओली के प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले का पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाले नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के विरोधी धड़े ने विरोध किया था। प्रचंड सत्ताधारी दल के सह-अध्यक्ष भी हैं।