पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बोले ‘अमेरिका पैसा कमाने की फ़िराक में आया था अफ़ग़ानिस्तान’

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Pakistan PM Imran Khan
Pakistan PM Imran Khan

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 साल लंबे ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ में शामिल होने के देश के फैसले पर मंगलवार को अफसोस जताते हुए इसे ‘खुद का घाव’ और पैसे के लिए किया गया फैसला बताया, न कि जनता के हित में.

लगभग दो दशक लंबे युद्ध में पाकिस्तान की भागीदारी के लंबे समय से आलोचक रहे इमरान खान ने दावा किया कि वह 2001 में निर्णय लेने वालों के करीब थे जब तत्कालीन सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने आतंक के विरुद्ध लड़ाई’ का हिस्सा बनने का फैसला किया था.

खान ने इस्लामाबाद में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा, “और इसलिए, मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि फैसले के पीछे क्या विचार थे. दुर्भाग्य से, पाकिस्तान के लोगों के बारे में कुछ नहीं सोचा गया.”


सोवियत-अफगान युद्ध का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “इसके बजाय, विचार 1980 के दशक के समान थे, जब हमने अफगान जिहाद में भाग लिया था,” जिसे तब “पवित्र युद्ध” कहा जाता था. इमरान ने कहा, “हम खुद जिम्मेदार हैं … जैसा कि हमने [दूसरों] को अपना इस्तेमाल करने दिया, सहायता के लिए अपने देश की प्रतिष्ठा का त्याग किया और पैसे के लिए एक विदेश नीति बनाई जो सार्वजनिक हित के खिलाफ थी.

इससे पहले 18 दिसंबर को अफगान संकट पर चिंता जताते हुए खान ने कहा कि पड़ोसी देश में लोग भूख से मर रहे हैं और अमेरिका को उनकी सहायता करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 9/11 (11 सितंबर 2001) के आतंकवादी हमलों में कोई अफगान शामिल नहीं था, इसके बावजूद अमेरिका ने अज्ञात कारणों से अफगानिस्तान पर हमला किया. उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता है कि अमेरिका अफगानिस्तान में क्या हासिल करना चाहता था. तथाकथित युद्ध (आतंकवाद के खिलाफ) के नाम पर उन्होंने 20 साल तक देश पर कब्जा जमाए रखा. अगर लक्ष्य सिर्फ अलकायदा को खत्म करना था, तो वह दो साल में ही पूरा हो गया था.”

खान ने कहा कि अगर अफगानिस्तान अनिश्चितता का शिकार होता है तो पाकिस्तान को भी इसके परिणाम भुगतने होंगे क्योंकि दोनों देश 2,600 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन करने का आग्रह करते हुए बीते 15 दिसंबर को कहा था कि युद्धग्रस्त राष्ट्र को अलग-थलग कर देना दुनिया के लिए ‘नुकसानदेह’ होगा.