राज्यसभा से इस्तीफे के बाद दिनेश त्रिवेदी बोले- पीएम मोदी मेरे दोस्त, भाजपा से जुड़ता हूं तो मुझे कोई रोक नहीं सकता

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राज्यसभा से इस्तीफा देकर दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि वह बेहद भावुक शख्स हैं। अगर पार्टी में रहते हुए आपको कहा जाए कि आप प्रधानमंत्री को गाली दीजिए, गृह मंत्री को गाली दीजिए तो वह क्यों ऐसा करेंगे। बंगाल की संस्कृति ऐसी नहीं रही है। त्रिवेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 1990 से मेरे मित्र हैं। उनके लिए भाजपा के दरवाजे कभी बंद नहीं हुए। गृह मंत्री अमित शाह भी उनके दोस्त हैं। दोनों सिर्फ देश के बारे में सोचते हैं। मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब वह उनसे मिलने जाते थे। भाजपा से जुड़ना कोई गलत बात नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि मैं भाजपा से जुड़ता हूं तो मुझे कोई रोक नहीं सकता। एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में बातचीत के दौरान त्रिवेदी ने कहा कि मैं जो भी करता हूं, दिल से करता हूं। मैंने पहले से सोचकर इस्तीफा नहीं दिया, बस यह हो गया। हमें क्यों देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को गाली देनी चाहिए। बंगाल की संस्कृति में हिंसा और गाली की जगह नहीं है। मैंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमने की निंदा की थी इसलिए मेरा विरोध किया गया।

मेरे बंगाल में अत्याचार बढ़ता जा रहा है, मेरी अंतरात्मा मुझसे बोल रही थी कि मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए

त्रिवेदी ने कहा कि ममता से मेरा निजी तौर पर कोई मतभेद नहीं है। मैं उनकी बेहतरी के लिए कामना करता हूं। मेरा उनसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि वह बंगाल में हिंसा न करें और हिंसा की निंदा करें। मेरे ऊपर बोझ था, अब इस्तीफा देने के बाद वह सिर से हट गया। बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अब तक का सबसे बड़ा झटका देते हुए तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उनके बेहद करीबी दिनेश त्रिवेदी ने शुक्रवार को बजट सत्र के दौरान राज्यसभा सदस्य पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। वह पिछले दो महीने से पार्टी से दूरी बनाकर चल रहे थे। पूर्व मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में रेल मंत्री रहे त्रिवेदी ने सदन की कार्यवाही के दौरान इस्तीफे की घोषणा करते हुए कहा, मेरे बंगाल में अत्याचार बढ़ता जा रहा है और मैं कुछ नहीं कर पा रहा। मुझे यहां बैठे-बैठे अजीब सा लग रहा है। मेरी अंतरात्मा मुझसे बोल रही है कि अगर मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं तो मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए। इसके बाद शाम को उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यसभा के सभापति व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सौंप दिया।

वहीं, इस्तीफे के बाद संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत में त्रिवेदी ने कहा, ये मेरी अंतरात्मा की आवाज थी। खासतौर पर बंगाल में जो हो रहा है उसे देखकर मैं चुपचाप संसद में नहीं बैठ सकता था। मेरे पास कोई ऐसा मंच नहीं था, जहां मैं अपनी आवाज उठा सकूं। मैं बंगाल के साथ अन्याय नहीं कर सकता। आगे उन्होंने कहा, मैं अकेला नहीं हूं जो यह महसूस कर रहा हूं। पार्टी में और भी लोग हैं जो मेरी तरह की घुटन में हैं। हम लोगों ने ममता बनर्जी को देखकर पार्टी जॉइन की थी, लेकिन अब वो उनकी पार्टी नहीं रह गई है।

दिनेश त्रिवेदी ने राज्यसभा में कहा… सबसे सर्वोपरि देश होता है

त्रिवेदी ने शुरुआत में कहा, हर मनुष्य के जीवन में एक घड़ी आती है, जब उसे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई देती है। मेरे जीवन में भी ऐसी ही घड़ी आई है। मैं यहां बैठकर सोच रहा था कि हम राजनीति में क्यों आते हैं? देश के लिए आते हैं। सबसे सर्वोपरि होता है देश। दो दिन पहले प्रधानमंत्री और गुलाम नबी आजाद भी देश के लिए अपनी भावना व्यक्त कर रहे थे। एक सत्ता पक्ष और एक विपक्ष के थे। जब रेल मंत्री था, उस दिन भी मेरे जीवन में ऐसी ही घड़ी आई थी। जब निर्णय करना पड़ा था कि देश बड़ा है, पक्ष बड़ा है कि खुद अपने आप बड़े हो।

प्रधानमंत्री की अगुवाई में देश ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी

त्रिवेदी ने आगे कहा, आज भी जब देखते हैं कि देश की क्या परिस्थिति है। पूरी दुनिया हिंदुस्तान की तरफ देखती है। कोविड-19 के दौरान भी दुनिया देख रही थी कि किस तरह से हिंदुस्तान आगे बढ़ता है। बहुत अच्छी तरह हम सब ने मिलकर इससे लड़ाई लड़ी। 130 करोड़ लोगों ने मिलकर कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई लड़ी, लेकिन नेतृत्व प्रधानमंत्री का था।

मेरे बंगाल में हिंसा हो रही, मुझे घुटन महसूस होने लगी

उन्होंने कहा, जिस तरह से मेरे प्रांत (बंगाल) में हिंसा हो रही है, मुझे यहां बैठे-बैठे अजीब लग रहा है। हम उस प्रांत से आते हैं जहां से रवींद्रनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, खुदीराम बोस आते हैं। हम सभी जन्मभूमि के लिए ही हैं। इसलिए अब मुझसे ये देखा नहीं जा रहा है। मैं एक पार्टी में हूं और उसके कुछ नियम हैं, लेकिन अब मुझे घुटन महसूस होने लगी है कि हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उधर, बंगाल में अत्याचार बढ़ रहा है। मेरी आत्मा की आवाज ये कह रही है कि यहां बैठे-बैठे चुपचाप रहो और कुछ नहीं कर सकते हो तो यहां से इस्तीफा दे दो। मैं बंगाल के लिए आगे काम करता रहूंगा।

चुनाव हारे तो ममता ने राज्यसभा भेजा था

गौरतलब है कि दिनेश त्रिवेदी ने पिछले साल अप्रैल में राज्यसभा की सदस्यता ग्रहण की थी। त्रिवेदी ने 1980 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी। इसके बाद 1990 में वह जनता दल के साथ चले गए थे। 1998 में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई तो त्रिवेदी भी उनकी पार्टी में शामिल हो गए। त्रिवेदी दो बार लोकसभा सांसद रहे। हालांकि, वे 2019 में लोकसभा चुनाव हार गए थे।

2012 में रेल मंत्री का पद छोड़ना पड़ा था

यह पहली बार नहीं है जब त्रिवेदी ने खुलकर पार्टी के खिलाफ अपनी शिकायत जाहिर की है। इससे पहले मार्च 2012 में उन्हेंं रेल मंत्री का पद छोडऩा पड़ा था। तब ममता बनर्जी ने उनकी ओर से पेश रेल बजट का विरोध किया था। इसके बाद उन्हेंं हटाकर तब पार्टी के महासचिव रहे मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनाया गया था। त्रिवेदी को पार्टी से सस्पेंड भी कर दिया गया था, लेकिन बाद में उन्हेंं बहाल कर दिया गया।

अब तक 11 तृणमूल विधायकों ने भाजपा का दामन थामा

गौरतलब है कि बंगाल में पिछले दो महीने में 11 तृणमूल विधायकों ने भाजपा का दामन थामा है। तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल होने का सिलसिला 19 दिसंबर से तेज हुआ। तब कद्दावर नेता सुवेंदु अधिकारी के साथ सांसद सुनील मंडल, पूर्व सांसद दशरथ तिर्की सहित छह अन्य तृणमूल विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।