अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर मायूस रहा ‘दिल्ली का काबुल’, अपनों की चिंता में बेचैन दिखे लोग

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अफगानिस्तान में तालिबान के कहर के बीच बृहस्पतिवार को दिल्ली में मिनी काबुल (लाजपत नगर) में मायूसी का माहौल नजर आया। 19 अगस्त, 1919 को अफगानिस्तान को आजादी मिली थी। इस बार जश्न की जगह, हर चेहरे पर अपनों की तलाश और अफगानिस्तान के दिनोंदिन खराब हो रहे हालात की बेचैनी दिखी। रेस्तरां, डिपार्टमेंटल स्टोर सहित तमाम जगहों पर कोई उल्लास नहीं था।

23 वर्षीय शरीफा आशुरी, 2015 में अपने पिता की मौत के बाद दिल्ली आ गईं। मौजूदा हालात को देखकर उनकी बेचैनी और बढ़ गई है। लाजपत नगर के एक रेस्तरां में काम कर अपना गुजारा करने वाली शरीफा वर्तमान हालात देखने के लिए सोशल मीडिया पर नजरें रखती हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता सेना में काम करते थे, जिन्हें मार दिया गया। 

इसके बाद उनकी मां परिवार के साथ भारत आ गईं। सुरक्षा की खराब स्थिति के कारण उन्हें भारत आना पड़ा। अधिकतर रेस्तरां में कुछ कर्मचारी ही अफगानिस्तान के मौजूदा हालात पर चर्चा कर रहे थे। अफगानी मूल के लोगों की दुकान और रेस्तरां पर भी लोगों के चेहरे पर मायूसी और बेचैनी ही थी। हर बार की तरह 102वीं वर्षगांठ पर लाजपत नगर-2 में लोग चुपचाप एक कोने में खाना खाते नजर आए। 

अफगानिस्तान की राजधानी के नाम पर 17 वर्षीय पुराने रेस्तरां में काबुल में उज्बेकी, कोफ्ता चलाओ, कव्रदान (मटन) जैसे लजीज व्यंजन का भी स्वाद चखने के लिए लोग पहुंचते हैं। इस बार न तो फ्राई, कोरमा कोफ्ता, और फिरनी (मिठाई) से अधिक लोगों की नजरें मोबाइल पर टिकी थीं। हेरात की जामी मस्जिद की एक तस्वीर फ्रेम में दीवार पर टंगी थी, लेकिन इस साल 19 अगस्त के लिए कोई खास मेन्यू नहीं था।

मोहम्मद शफीक ने तालिबान को कट्टरपंथी बताते हुए नफरत की नजर से देखते हैं। महिलाओं को शिक्षा या स्वतंत्रता नहीं है तो इस बार उदारवादी दिखाने वाले तालिबान के लोगों पर किसी को विश्वास नहीं है। मेरा अफगानिस्तान पहले जैसा था, अब नहीं है। देश तबाह हो गया, इससे बुरा क्या होगा कि आजादी के दिन हमारे भाई-बहन अपनी ही मातृभूमि में दहशत में जी रहे हैं। 

काली टी-शर्ट में अपनी बाईं कलाई पर टैटू बनाए रखने वाली अशूरी ने कहा कि अफगानिस्तान की महिलाओं के बारे में सोचकर रूह कांप उठती है। भारत में डेनिम और टी-शर्ट में सहज महसूस करती हूं। अगर अफगानिस्तान में होती तो अब तक गोली का शिकार हो गई होती। सहकर्मी 23 वर्षीय इजाजुल हक दुर्रानी कहते हैं मेरे अंदर एक तूफान चल रहा है। मेरे माता-पिता काबुल हवाई अड्डे पर डेरा डाले हुए हैं। दो दिन पहले माता-पिता से फोन पर बात हुई थी, लेकिन अब मोबाइल फोन स्विच ऑफ आ रहा है। 

एक अफगान युवक ने कहा कि एक महीने पहले परिवार के एक सदस्य के इलाज के लिए दिल्ली आया था। वीजा दो महीने में समाप्त हो जाता है। अगर भारत में मुझे रहने की इजाजत मिलती है तो मैं वापस नहीं जाऊंगा। अशूरी ने जब उनसे आजादी का मतलब पूछा तो उन्होंने अपने टैटू की ओर इशारा किया और कहा पक्षियों। यही आजादी है, काबुल से नहीं तो मैं दिल्ली से अपने सपनों के शहर पेरिस के लिए उड़ान भरूंगा।