देश में डिजिटल फ्रॉड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ठगों के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं, जिनमें लोग फंस जाते हैं और अपनी मेहनत की कमाई गंवा बैठते हैं। इसी बीच अब “डिजिटल अरेस्ट” का मामला भी लोगों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। भोपाल में एक ऐसा ही अनोखा केस सामने आया है, जिसमें एक व्यापारी को फोन कॉल के जरिए ठगों ने डिजिटल रूप से 6 घंटे तक “कैद” कर दिया।
यह घटना मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के अरेरा कॉलोनी में रहने वाले 68 वर्षीय व्यापारी विवेक ओबराय के साथ हुई। ठगों ने फोन कर खुद को पुलिस अधिकारी बताया और व्यापारी को फर्जी मामलों में फंसाने का डर दिखाकर उन्हें मानसिक तौर पर कैद कर लिया। इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब उनके एक परिचित को शक हुआ और पुलिस को सूचना दी। इसके बाद पुलिस ने कमांडो स्टाइल में पहुँच कर व्यापारी को ठगों के जाल से बचाया और उन्हें करोड़ों की ठगी से सुरक्षित बाहर निकाला।
ठगों ने व्यापारी को बनाया निशाना
मामला दोपहर करीब एक बजे शुरू हुआ जब विवेक ओबराय को एक कॉल आई। कॉलर ने खुद को “ट्राई लीगल सेल” का अधिकारी बताया और उन्हें जानकारी दी कि उनके आधार कार्ड का दुरुपयोग हुआ है। ठग ने बताया कि उनके आधार कार्ड का इस्तेमाल कर कई फर्जी सिम कार्ड खरीदे गए हैं, जिनके माध्यम से फर्जी बैंक खाते खोले गए हैं और इन खातों के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की गई है। कॉलर ने व्यापारी को एक अन्य नंबर दिया और कहा कि इस पर संपर्क करें, ताकि मामले की जांच की जा सके।
फर्जी पुलिस अधिकारी बनकर किया कॉल
जब विवेक ओबराय ने दिए गए नंबर पर कॉल किया, तो दूसरी तरफ से एक शख्स ने खुद को मुंबई क्राइम ब्रांच का सब-इंस्पेक्टर विक्रम सिंह बताया। उसने भी उसी तरह की जानकारी दी और कहा कि विवेक के नाम पर केरल, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में फर्जी बैंक खाते खुले हैं और इन खातों के जरिए करोड़ों की मनी लॉन्ड्रिंग हो रही है। इस जानकारी को सुनकर विवेक घबरा गए और ठगों के जाल में फंस गए।
CBI अधिकारी बनकर बनाया डर का माहौल
इसके बाद एक और कॉल आया, जिसमें ठग ने खुद को CBI के डीसीपी मनेश कलवानिया के रूप में परिचित करवाया। इस बार ठगों ने एक नया तरीका अपनाया और कहा कि विवेक के खिलाफ कई गंभीर मामले हैं और अगर वह जल्द ही सहयोग नहीं करते तो उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। पहली कॉल के करीब 20 मिनट बाद एक और ठग ने उन्हें वीडियो कॉल के जरिए संपर्क किया और उनसे पूछताछ करनी शुरू की।
6 घंटे तक रहा “डिजिटल अरेस्ट”
वीडियो कॉल पर तीनों ठग अलग-अलग यूनिफॉर्म में नजर आ रहे थे, जिससे विवेक को लगा कि वे सच में अधिकारी हैं। उन्होंने विवेक को निर्देश दिया कि वह पूछताछ के दौरान कहीं नहीं जा सकते, न खाना खा सकते हैं, न ही टॉयलेट जा सकते हैं। उनसे कहा गया कि वह दरवाजा भी बंद रखें। विवेक छह घंटे तक इसी स्थिति में बैठे रहे, इस डर में कि उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। ठगों ने विवेक से धीरे-धीरे उनकी निजी जानकारी हासिल की और फिर उनसे पैसे ऐंठने की योजना बनाई।
पैसे की मांग शुरू की
छह घंटे बाद ठगों ने विवेक से कहा कि अगर वह चाहते हैं कि मामला यहीं खत्म हो जाए, तो उन्हें एक निश्चित राशि का भुगतान करना होगा। ठगों ने यह भी दावा किया कि इस पैसे के बदले मामला “सेटल” कर दिया जाएगा और उन्हें कोई कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। विवेक पूरी तरह ठगों के जाल में फंस चुके थे और पैसे देने के लिए तैयार हो रहे थे।
कैसे पकड़ा गया ठगी का खेल
शाम करीब 6 बजे विवेक का एक पड़ोसी मित्र उनसे मिलने उनके घर पहुंचा। विवेक की पत्नी ने जब उनसे कहा कि विवेक किसी पूछताछ में व्यस्त हैं, तो उनके मित्र को शक हुआ। उन्होंने तुरंत राज्य साइबर क्राइम सेल के एडीजी योगेश देशमुख को फोन किया और मामले की जानकारी दी। उन्होंने संदेह जताया कि विवेक को “डिजिटल अरेस्ट” में फंसाया गया हो सकता है।
पुलिस ने बचाया ठगी से
जानकारी मिलते ही पुलिस की टीम सक्रिय हो गई और मौके पर दो पुलिसकर्मी भेजे गए। जब पुलिसकर्मियों ने दरवाजे पर दस्तक दी, तो पहले तो दरवाजा नहीं खुला। पुलिसकर्मियों ने बाहर से ही आवाज लगाई कि वे ठगों के जाल में फंसे हैं और दरवाजा खोलने को कहा। यह सुनते ही विवेक ने दरवाजा खोला, लेकिन ठगों ने उन्हें पुलिसकर्मियों को नकली पुलिस बताकर दरवाजा बंद करने को कहा। तभी स्क्रीन अचानक बंद हो गई, और विवेक डिजिटल अरेस्ट से बाहर आ गए।
पुलिस ने ठगों को कैसे रोका
पुलिस ने विवेक को तुरंत ठगों के बारे में समझाया और उन्हें होश में लाया। उन्होंने विवेक को बताया कि इस तरह के ठगों का यह नया तरीका है, जिसमें वे लोगों को मानसिक रूप से अरेस्ट करते हैं और फिर उन्हें धमकाकर पैसे ऐंठने की कोशिश करते हैं। इसके बाद पुलिस ने विवेक को हर तरह से सुरक्षा का आश्वासन दिया और उनसे इस तरह के किसी भी कॉल से सावधान रहने को कहा।
ठगों का यह नया तरीका क्यों खतरनाक है
डिजिटल अरेस्ट एक नया और खतरनाक तरीका बनता जा रहा है, जिसमें ठग अपने शिकार को मानसिक रूप से कैद कर लेते हैं। इस तकनीक में ठग पहले लोगों को धमकाते हैं और फिर उन्हें वीडियो कॉल में उलझाकर उनसे जानकारी लेते हैं। यह तरीका इसलिए खतरनाक है क्योंकि इसमें व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है और वह ठगों की बातों में आकर उनकी मांगों को मानने पर मजबूर हो जाता है।
पुलिस की अपील
पुलिस ने इस घटना के बाद जनता से अपील की है कि वे इस तरह के किसी भी फोन कॉल या वीडियो कॉल से सतर्क रहें। किसी भी अनजान व्यक्ति की बातों में आकर अपने निजी और बैंकिंग जानकारी साझा न करें। अगर किसी भी तरह का संदेह हो, तो तुरंत साइबर क्राइम सेल या पुलिस से संपर्क करें।
इस घटना से मिली सीख
इस घटना से यह साफ हो गया है कि ठग नए-नए तरीके अपनाकर लोगों को ठगने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में लोगों को चाहिए कि वे सतर्क रहें और किसी भी अज्ञात कॉल पर बिना जांच-पड़ताल किए भरोसा न करें। यदि आप खुद को ऐसे किसी स्थिति में पाएं तो सबसे पहले शांत रहें, और पुलिस को सूचना दें।
डिजिटल सुरक्षा के लिए कुछ सुझाव
1. किसी भी अज्ञात कॉल पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें।
2. बैंकिंग जानकारी, आधार कार्ड नंबर और ओटीपी को कभी भी साझा न करें।
3. साइबर क्राइम सेल की हेल्पलाइन नंबर को अपने फोन में सेव करके रखें।
4. साइबर फ्रॉड से संबंधित किसी भी घटना की रिपोर्ट तुरंत पुलिस में करें।
5. अगर कोई खुद को सरकारी अधिकारी बताकर संपर्क करता है तो उनके पहचान पत्र और प्रमाण की मांग करें।
भोपाल की इस घटना से यह साफ हो गया है कि डिजिटल सुरक्षा बेहद जरूरी है। ठग किसी भी तरह से लोगों को अपने जाल में फंसा सकते हैं। ऐसे में जनता को चाहिए कि वह सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत पुलिस को सूचित करें।