अगर भगवान की बात करें तो, अभी भी दुनिया में भगवान को लेकर संशय बना हुआ है। हिंदू धर्म में भगवान की अवधारणा जितनी सरल है, उतनी ही जटिल भी। दुनिया में ऐसा कोई धर्म नहीं है जो भगवान पर विश्वास न रखता हो, भले ही वे ईश्वर को अलग-अलग शब्दों से पुकारते हों।
कई सारे लोगो का मानना है की धर्म तो वास्तव में एक ही है, जो प्राकृतिक रूप से इस संसार में सब पर समान रूप से लागू होता है। जैसे, यदि कोई भी व्यक्ति अपने मन में विकार उत्पन्न करता है, तो वह दुखी हो ही जाता है, चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो या ईसाई। कुदरत का कानून सब पर समान रूप से लागू होता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जिन्हें हम धर्म मानते हैं, वास्तव में वे धर्म नहीं, बल्कि संप्रदाय हैं। धर्म तो वही एक है, जिसकी हुकूमत सब पर चलती है।
आज के इस कलयुगी जीवन में जहां हर एक इंसान दुखी है, शायद ही कोई ऐसा हो जिसे कोई दुख न हो या जिसके जीवन में तनाव न हो। अगर कोई दुखी है तो वह अपने इलाज के लिए चिकित्सक के पास जाता है, परंतु थक हार कर इलाज न मिलने पर वह चिकित्सक भी उसे भगवान भरोसे ही छोड़ देते हैं या यदि किसी के जीवन में तनाव है तो वह भी कोई समाधान न निकलने पर परमेश्वर को ही स्मरण करता है।
ऐसी परिस्थितियों से यह तो सुनिश्चित है कि हम मनुष्यों से ऊपर कोई तो शक्ति है जिसने हमें बनाया है। हमसे श्रेष्ठ कोई तो है जिसे हम अपने दुख के समय में स्मरण करते हैं। अर्थात् भगवान का अस्तित्व तो है, जो हमारे दुख समाप्त करने में सक्षम हैं.। साथ ही भगवान की पूर्ण जानकारी हमारे सभी पवित्र शास्त्र भी देते हैं।
ऋग्वेद-मंडल संख्या 9 सूक्त 96 मंत्र 18 का अनुवाद:
परमपिता परमात्मा, जो असाधारण बालक के रूप में प्रकट होकर प्रसिद्ध कवियों की उपाधि प्राप्त करते हैं, अर्थात् संत या ऋषि की भूमिका निभाते हैं, हजारों भाषणों की रचना करते हैं, उस भगवान द्वारा, जो संत के रूप में प्रकट हुए हैं, संत प्रकृति के व्यक्तियों, यानी भक्तों को स्वर्ग के समान सुख प्रदान करते हैं। वह सनातन पुरुष, अर्थात् सतपुरुष, मोक्ष के तीसरे लोक, अर्थात् सत्यलोक की स्थापना कर, मानव-रूपी तेजोमय शरीर में एक राजा के समान सिंहासन पर विराजमान हैं।"
पवित्र बाइबल (उत्पत्ति ग्रंथ पृष्ठ संख्या 2, अध्याय 1:20-25) में छठे दिन के प्रकरण में प्राणी और मनुष्य के विषय में बताया गया है, जिसमें एक महत्वपूर्ण अंश यह है कि परमात्मा मनुष्य जैसा है, अर्थात् साकार है।
कुरान शरीफ सुरह फुरकान - 25, आयत 52 से 59 का अनुवाद देखने पर, इसमें लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाया है। 6 दिनों में सृष्टि की रचना की और 7वें दिन सिंहासन पर विराजमान हुए। इससे स्पष्ट होता है कि परमेश्वर मनुष्य जैसा है।
दुनिया में हमेशा से ही बहुत सारे लोग रहे हैं, और उनके साथ-साथ उतनी ही विविध विचारधाराएँ भी रही हैं। हर व्यक्ति का ईश्वर या परमात्मा के प्रति अपना-अपना नजरिया रहा है, और जब कुछ लोग एक ही नजरिये से सहमत हो गए, तो उनका एक समूह बन गया। यही अलग-अलग नजरियों से बने अलग-अलग समूह धीरे-धीरे अलग-अलग धर्म बन गए।
धर्म तो आज भी एक ही है। सभी का मूल तत्व जीव मात्र के प्रति दया भाव है। किसी भी धर्म में किसी के भी प्रति कोई गलत बात नहीं है सभी आत्मसुधार और परोपकार पर बल देते हैं धर्म एक ही चौराहे तक जाने वाले अलग-अलग रास्ते हैं जो किसी एक ही मंजिल तक पहुंचते हैं। केवल जाने के रास्ते अलग हैं। अब अलग रास्ते पर जाते हुए हमें भिन्नता दिखाई देती है परंतु पहुँँचते सब एक ही जगह है।
जब धर्म अधर्म बन कर बोझ बन जाता है तब एक कोई शांति दूत उस धर्म से बग़ावत करके एक नई दिशा देते है बाद में उसका नाम से एक धर्म बन जाता है ।
किसी भी चीज को समझने के लिए सबसे पहले मन को शांत रखना चाहिए और फिर काम पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि हम मन से ही प्रश्न खोज लेते हैं और मन में ही जवाब देकर बैठ जाते हैं।
भगवान विश्वास में होते हैं । हर जगह होते हैं । हर रूप में होते हैं ,हमने जिस रुप में देखते हैं वह हमें उसी उसने मिलते हैं।