सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर एक महत्वपूर्ण सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने देश में बाल विवाह के बढ़ते मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की और कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुनवाई कर रही पीठ ने स्पष्ट किया कि बाल विवाह को पर्सनल लॉ के नाम पर नहीं रोका जा सकता और यह किसी भी व्यक्ति के अपने पसंद के जीवनसाथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन है।
बाल विवाह का अधिकार और कानूनी परिप्रेक्ष्य
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को एक गंभीर सामाजिक मुद्दा मानते हुए इसे रोकने के लिए एक ठोस कानूनी ढांचे की आवश्यकता बताई। CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “हर किसी को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। इस अधिकार का उल्लंघन बाल विवाह के माध्यम से होता है।” कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बाल विवाह के खिलाफ कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि नाबालिगों को सुरक्षा मिले और अपराधियों को सजा मिल सके।
SC ने जारी किए दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के प्रभावी निवारण के लिए विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए। इनमें शामिल हैं:
अधिकारियों को सख्त निर्देश: अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई करनी चाहिए।
समुदाय आधारित दृष्टिकोण: कोर्ट ने कहा कि निवारक रणनीतियों को अलग-अलग समुदायों के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए। यह तभी सफल होगा जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय होगा।
कानून प्रवर्तन का प्रशिक्षण: कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण और क्षमता विकास आवश्यक है। इस मामले में समुदाय आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
कानून की खामियां
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि बाल विवाह निषेध अधिनियम में कुछ खामियां हैं। 2006 में बनाया गया यह अधिनियम बाल विवाह को रोकने और समाज से इसे उन्मूलित करने के उद्देश्य से लाया गया था, लेकिन इसकी कुछ प्रावधानों में सुधार की आवश्यकता है।
वैवाहिक दुष्कर्म पर भी हुई चर्चा
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में भी महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के उन प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी, जो दुष्कर्म के मामले में पति को अभियोजन से छूट प्रदान करते हैं, अगर वह अपनी पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है।
बाल विवाह के खिलाफ सख्त कदम
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के खिलाफ कई प्रमुख कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
अधिकारियों की विशेष ट्रेनिंग: अधिकारियों को इस मुद्दे पर विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ताकि वे बाल विवाह के मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई कर सकें।
हर समुदाय के लिए अलग तरीके अपनाना: बाल विवाह को रोकने के लिए हर समुदाय के लिए विशेष निवारक उपाय अपनाए जाएंगे, ताकि स्थानीय सांस्कृतिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखा जा सके।
जन जागरूकता बढ़ाना: बाल विवाह की समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाएंगे, ताकि समाज में जागरूकता बढ़े और लोग इस कुप्रथा के खिलाफ खड़े हो सकें।
कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखना: बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मामला संसद में लंबित है, और इसे शीघ्र हल करने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई ने बाल विवाह के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। यह स्पष्ट है कि इस कुप्रथा के खिलाफ ठोस कानूनी कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाया जा सके। बाल विवाह केवल एक कानूनी समस्या नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने न केवल कानूनों की मजबूती की दिशा में कदम उठाए हैं, बल्कि एक जागरूक और सशक्त समाज के निर्माण की आवश्यकता भी महसूस कराई है। इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने की दिशा में ठोस प्रयास किए जाएंगे।