भारत में आज 2,20,000 से अधिक लोग ऐसे हैं, जिनकी कर योग्य आय 1 करोड़ रुपये से अधिक है। पिछले एक दशक में इस संख्या में पाँच गुना वृद्धि देखी गई है। और हैरानी की बात यह है कि इनमें से आधे लोग सिर्फ तीन साल में इस श्रेणी में आए हैं। कोविड महामारी के बाद से, बड़े पैमाने पर हुई आर्थिक उथल-पुथल के बावजूद, भारत में करोड़पति करदाताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति कई बड़े कारणों का परिणाम है। तेज़ी से बढ़ता शेयर बाजार, बड़ी कंपनियों का मुनाफा, पेशेवरों की बढ़ती मांग, और कड़े कर नियम जैसे कारकों ने इस वृद्धि को रफ्तार दी है।
करोड़पति करदाताओं में वृद्धि के पीछे क्या हैं कारण?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों में तेजी आई है, जिसने ऊंची आय वाले करदाताओं की संख्या बढ़ाई है। इनमें आईटी, हरित ऊर्जा, रियल एस्टेट, और स्टार्टअप जैसे उभरते क्षेत्र शामिल हैं। इन उद्योगों में काम करने वाले लोगों को बड़े वेतन और लाभ मिल रहे हैं। इसके अलावा, शेयर बाजार की बढ़त और कंपनियों के मुनाफे में इजाफा भी इसमें योगदान कर रहा है।
शेयर बाजार की उछाल और बड़े वेतन का प्रभाव
बीते कुछ सालों में, भारतीय शेयर बाजार में तेजी आई है। उदाहरण के लिए, मार्च 2024 तक BSE सेंसेक्स 73,000 के आंकड़े को छू गया था, जो कि कुछ साल पहले 29,000 पर था। इससे कई निवेशकों और शेयरधारकों को बड़ा लाभ हुआ है। कंपनियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी उच्च वेतन और बड़े बोनस दिए हैं, जिससे उनकी कर योग्य आय में भारी वृद्धि हुई है।
वेतन में हो रही यह वृद्धि बड़े पैमाने पर हुई छंटनी और नई भर्तियों के कारण है। कोविड के बाद, जब नौकरी का संकट बढ़ा, तो कंपनियों को महत्वपूर्ण कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए वेतन में बड़ी बढ़ोतरी करनी पड़ी।
लाभांश वितरण कर (डीडीटी) का बदलाव
2020 में, सरकार ने लाभांश वितरण कर (डीडीटी) में बदलाव किए थे। पहले कंपनियाँ अपने मुनाफे पर डीडीटी का भुगतान करती थीं, लेकिन अब यह कर लाभ पाने वाले व्यक्तियों पर लागू होता है। इस परिवर्तन से भी कई लोग करोड़पति करदाताओं की श्रेणी में आ गए हैं।
सरकार के इस कदम का उद्देश्य था कि भारतीय शेयर बाजार में और अधिक निवेश आकर्षित किया जा सके और उच्च आय वाले निवेशकों पर प्रत्यक्ष कर बढ़ाया जा सके। इसका नतीजा यह हुआ कि उन लोगों की संख्या में तेजी आई है जो करोड़पति करदाताओं के रूप में जाने जाते हैं।
कोविड के बाद तेज़ी से बढ़ा करोड़पति बनने का रुझान
आकलन वर्ष 2013-14 में जहाँ केवल 40,000 लोग ही 1 करोड़ रुपये से अधिक की आय वाले करदाता थे, वहीं आकलन वर्ष 2023-24 तक यह संख्या बढ़कर 2,20,000 हो गई है। यह केवल उच्च आय वाले लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मिडिल क्लास में भी देखा जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड के बाद से स्टार्टअप्स और उद्यमिता में बड़ी वृद्धि हुई है।
क्या यह प्रवृत्ति जारी रहेगी?
वित्तीय विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रवृत्ति में और तेजी आ सकती है। खासकर सेवा क्षेत्र में बढ़ता वेतन और उच्च योग्यता की मांग इसे बढ़ावा देगी। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में भी करोड़पति करदाताओं की संख्या में वृद्धि जारी रह सकती है। भारत की जीडीपी में बढ़ोतरी, आर्थिक सुधार, और कॉरपोरेट्स में प्रोफेशनल्स के लिए बढ़ते वेतन से भी इस प्रवृत्ति को सहारा मिलेगा।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़त में थोड़ी स्थिरता आ सकती है, क्योंकि कई लोग निवेश और काम के अवसरों की तलाश में विदेश भी जा रहे हैं।
भारत में करदाता आधार की विविधता
भारतीय करदाताओं में अब पहले से कहीं अधिक विविधता है। छोटे और मध्यम उद्योगों की स्थिति में आए बदलाव और कंपनियों के बड़े पैमाने पर मुनाफे ने भी करोड़पति करदाताओं की संख्या में वृद्धि की है। जिन क्षेत्रों में उन्नति हुई है, वे हैं - आईटी, हरित ऊर्जा, यात्रा और आतिथ्य।
इसके साथ ही, कई भारतीय उच्च वेतन की तलाश में यूएई जैसे देशों में भी जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह भी एक महत्वपूर्ण कारक है, जो करोड़पति करदाताओं की संख्या को प्रभावित कर सकता है।
क्या भविष्य में भारत में करोड़पतियों की संख्या में और वृद्धि होगी?
बाजार विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि उच्च आय वाले लोगों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए कराधान नीतियों में बदलाव की आवश्यकता होगी। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक मानकों के अनुरूप हो रही है, वैसे-वैसे यह संभावना है कि उच्च आय वाले करदाताओं का दायरा और बढ़ेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि और निवेश के अवसरों की बढ़त से आने वाले वर्षों में करोड़पतियों की संख्या में और इजाफा हो सकता है।