जब भारत में सिनेमा की शुरुआत हुई, तब महिलाओं के लिए फिल्मों में काम करना एक असाधारण बात थी। समाज में यह माना जाता था कि महिलाओं का फिल्मों में काम करना उचित नहीं है। लेकिन, एक ऐसी महिला आई जिसने न केवल इस परंपरा को तोड़ा बल्कि सिनेमा की दुनिया में महिलाओं के लिए कई रास्ते खोले। वह महिला थी देविका रानी, जो कि पहली बॉलीवुड ड्रीम गर्ल के रूप में जानी जाती हैं।
देविका रानी की प्रारंभिक जीवन और फिल्मी सफर की शुरुआत
देविका रानी का जन्म 1908 में हुआ था और उनकी फिल्मी यात्रा की शुरुआत 1933 में फिल्म ‘कर्मा’ से हुई। इस फिल्म में उनके साथ उनके पहले पति हिमांशु राय ने मुख्य भूमिका निभाई थी। देविका की एक्टिंग और उनके व्यक्तित्व ने उन्हें तत्काल ही फिल्म इंडस्ट्री में प्रमुख स्थान दिला दिया। उनके मजबूत व्यक्तित्व और गुस्से के कारण उन्हें ‘ड्रैगन लेडी’ का उपनाम मिला।
देविका रानी की कहानी और भी प्रेरणादायक हो जाती है जब हम जानतें हैं कि वे 9 साल की उम्र में इंग्लैंड चली गई थीं और वहां पर उन्होंने एक्टिंग की पढ़ाई की। इंग्लैंड में उन्होंने अपनी एक्टिंग की कला को निखारा और फिल्मी दुनिया में अपनी छाप छोड़ी। उनकी एक्टिंग की तुलना उस समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो से की जाती थी।
‘अछूत कन्या’ और जवाहरलाल नेहरू की प्रतिक्रिया
1936 में देविका रानी की एक महत्वपूर्ण फिल्म ‘अछूत कन्या’ रिलीज हुई। इस फिल्म में उन्होंने एक दलित लड़की का किरदार निभाया और एक गाना भी गाया। ‘अछूत कन्या’ फिल्म ने बहुत सफलता हासिल की और लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई। इस फिल्म के रिलीज के बाद देविका रानी को 'ड्रीम गर्ल' के नाम से पुकारा जाने लगा।
इस फिल्म की खासियत यह थी कि उनकी दोस्त सरोजिनी नायडू ने जवाहरलाल नेहरू को इस फिल्म को देखने के लिए प्रेरित किया। फिल्म देखने के बाद, जवाहरलाल नेहरू भी देविका रानी के फैन हो गए थे और उन्होंने देविका रानी को एक फैन लेटर भी लिखा। इस लेटर में उन्होंने देविका की एक्टिंग की तारीफ की और उनकी खूबसूरती की भी सराहना की।
देविका रानी की खूबसूरती और अभिनय
देविका रानी केवल अपनी एक्टिंग के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी खूबसूरती के लिए भी मशहूर थीं। ‘अछूत कन्या’ फिल्म की रिलीज के समय उनकी खूबसूरती की तारीफ ब्रिटेन के अखबारों में भी की गई थी। एक अखबार ने लिखा था कि देविका रानी की इंग्लिश और उनका खूबसूरत चेहरा देखने को पहले कभी नहीं मिला। इस प्रकार उनकी खूबसूरती और अभिनय के लिए उन्हें पद्मश्री जैसे महत्वपूर्ण सम्मान से भी नवाजा गया।
बॉम्बे टॉकीज: एक नई शुरुआत
देविका रानी ने अपने पहले पति हिमांशु राय के साथ मिलकर ‘बॉम्बे टॉकीज’ नामक एक फिल्म स्टूडियो की स्थापना की। इस स्टूडियो के बैनर तले कई सुपरहिट फिल्में बनीं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी। दिलीप कुमार को फिल्मों में लाने का श्रेय भी देविका रानी को ही जाता है। उन्होंने दिलीप कुमार को एक्टिंग के लिए हायर किया और उस समय उन्हें पहली सैलरी के रूप में 1280 रुपये प्रति माह दिए गए थे।
देविका रानी ने सेट पर कई सख्त नियम लागू किए थे। जो भी नियम तोड़ता था, उसकी सैलरी से जुर्माने के तौर पर पैसे काट लिए जाते थे। यह दर्शाता है कि उन्होंने सिनेमा इंडस्ट्री में अनुशासन और मेहनत की अहमियत को समझा और इसे लागू किया।
फिल्म इंडस्ट्री से अलविदा
देविका रानी का फिल्मी सफर 1933 से शुरू होकर 1943 में समाप्त हो गया। इस दौरान उन्होंने एक्टिंग से लेकर प्रोडक्शन तक हर काम किया। 1940 में उनके पहले पति हिमांशु राय का निधन हो गया, और इसके बाद 1943 में देविका रानी ने फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी।
उनके फिल्मी करियर के समाप्त होने के बाद, देविका रानी ने स्वेतोस्लाव रॉरिक से दूसरी शादी की। पहले कपल हिमाचल प्रदेश के मनाली में रहने लगे, और फिर कर्नाटक के बेंगलुरु चले गए। वहां उन्होंने 450 एकड़ की प्रॉपर्टी भी खरीदी, जहां उन्होंने अपना जीवन बिताया।
अंतिम विदाई और उनकी धरोहर
1993 में देविका रानी के दूसरे पति की भी मृत्यु हो गई, और एक साल बाद देविका रानी ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई थी। देविका रानी की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनकी प्रॉपर्टी को लेकर कई वर्षों तक मुकदमा चला। अंततः 2011 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, उनकी प्रॉपर्टी को कर्नाटक सरकार के अधीन कर दिया गया।
देविका रानी ने भारतीय सिनेमा में केवल 10 साल के करियर में कई रिकॉर्ड बनाए और महिलाओं के लिए सिनेमा की दुनिया में नए रास्ते खोले। उनकी उपलब्धियां आज भी प्रेरणादायक हैं और उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि दृढ़ता, मेहनत और आत्म-विश्वास के साथ कोई भी व्यक्ति अपने क्षेत्र में महान उपलब्धियां हासिल कर सकता है।