टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन ने भारत सरकार के खिलाफ 20,000 करोड़ रुपये का रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का केस जीत लिया है. द हेग कोर्ट ने शुक्रवार को भारत सरकार के खिलाफ सुनाए गए फैसले में कहा कि भारतीय टैक्स डिपार्टमेंट ने “निष्पक्ष और बराबरी” से काम नहीं किया है. हेग की अदालत में वोडाफोन की तरफ से DMD पैरवी कर रही थी. भारत सरकार और वोडाफोन के बीच यह मामला 20,000 करोड़ रुपये के रेट्रोस्पेक्टिव (पूर्व प्रभावी) टैक्स को लेकर था. वोडाफोन और सरकार के बीच कोई सहमति ना बन पाने के कारण 2016 में कंपनी ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का रुख किया था. जहां आज उसके हक में फैसला आया है.
इस मामले की शुरुआत साल 2007 में हुई थी. ये वही साल था जब वोडाफोन की भारत में एंट्री हुई. इस साल वोडाफोन ने हचिंसन एस्सार (जिसे हच के नाम से जाना जाता था ) का अधिग्रहण किया था. वोडाफोन ने हचिंसन एस्सार की 67 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था. वोडाफोन ने इस अधिग्रहण के लिए 11 अरब डॉलर से ज्यादा का भुगतान किया था. हचिंसन एस्सार भारत में काम करने वाली मोबाइल कंपनी थी.
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने पूंजीगत लाभ को आधार बनाते हुए कंपनी से टैक्स भरने की मांग की थी जिसे कंपनी ने चुकाने से मना कर दिया. कंपनी का तर्क था कि अधिग्रहण टैक्स के दायरे में ही नहीं आता है क्योंकि इस मामले में पूरा वित्तीय लेन-देन भारत में नहीं हुआ है. वहीं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का कहना था कि वोडाफोन ने वैसी संपत्ति का अधिग्रहण किया जो भारत में मौजूद थी.
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