उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के आरक्षण आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

उत्‍तर प्रदेश पंचायत चुनाव में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका को लेकर एक बार फिर से ये सवाल खड़े हो गये हैं कि क्या चुनावों में और देरी होगी? जिस तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद चुनाव को दस दिन आगे बढ़ाना पड़ा था, क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी चुनावों की तिथियों को और आगे नहीं बढ़ाना पड़ेगा? वैसे यूपी सरकार की तैयारी को देखें तो ऐसा नहीं लगता है. आइए जानते हैं कैसे ?

सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण को लेकर दाखिल 186 पन्ने की याचिका पर 26 मार्च को सुनवाई होनी है. याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर जो आदेश दिया है उसे बदला जाये. याचिकाकर्ता सीतापुर के दिलीप कुमार ने सुप्रीम कोर्ट से प्रेयर किया है कि 1995 को ही आधार वर्ष मानकर इस चुनाव के लिए सीटों का आरक्षण किया जाये. उन्होंने कहा है कि सरकार ने फरवरी में ऐसा ही करने का शासनादेश जारी किया था. आरक्षण हो भी गया था, लेकिनबाद में हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और 2015 को आधार वर्ष मानकर सरकार को नये सिरे से आरक्षण के आदेश दे दिये.

अब सुप्रीम कोर्ट में जो भी फैसला आये उससे राज्य सरकार के सामने किसी भी तरह का संकट खड़ा नहीं होगा. आधार वर्ष को लेकर सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले से चुनाव में और विलम्ब होने की संभावना नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार के पास दोनों ही लिस्ट मौजूद हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से पहले आरक्षण की जो लिस्ट बनाई गयी थी उसे 1995 को आधार वर्ष मानकर तैयार किया गया था. हाईकोर्ट के फैसले के बाद जो लिस्ट तैयार की गयी है उसे 2015 को आधार वर्ष मानकर तैयार कराया गया है. ऐसे में राज्य सरकार के पास दोनों ही लिस्ट मौजूद है. अब उसे अलग से लिस्ट तैयार करने के लिए और समय नहीं चाहिए जैसा कि हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद दिया गया था. जाहिर है कि आधार वर्ष को लेकर सुप्रीम कोर्ट का चाहे जो फैसला हो, चुनाव में विलम्ब नहीं होगा.

बता दें कि सीतापुर के दिलीप कुमार की याचिका पर 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच सुनवाई करेगी. राज्य सरकार ने पहले ही कैविएट दाखिल करके कह दिया है कि किसी भी ऑर्डर से पहले उसके पक्ष को भी सुन लिया जाये. फिर भी पंचायत चुनावों के नजरिए से 26 मार्च का दिन बेहद अहम है.

Mohd Badar

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