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आवाज के जादूगर कहे जाने वाले मोहम्मद रफी का आज है जन्मदिन – इस गायक के मंच छोड़ने पर रफी ने गाया था जिंदगी का पहला गाना

आवाज के जादूगर कहे जाने वाले प्रख्यात गायक मोहम्मद रफी का आज जन्मदिन है। 24 दिसंबर 1924 को लाहौर में जन्में रफी साहब ने 1940 से लेकर 1980 के युग तक भारतीय फिल्मों के लिए अनमोल कहे जाने वाले गाने गाकर अपने करोड़ों फैंस के दिलों में ऐसी जगह बना ली है जिसे कोई भर नहीं सकता। अपने फिल्मी करियर में 26000 से ज्यादा गाने गाकर रफी साहब एक लकीर बना चुके हैं जिसे पार कर पाना किसी के बस की बात नहीं। रफी साहब की आवाज में वो जादू था कि गाने अपने आप सुरीले हो जाते थे। उनकी सधी हुई सुरीली आवाज की लचक, लहरियां और संगीत की समझ ने उन्हें कम ही वक्त में सुरों का सरताज बना दिया।

कहते हैं कि रफी साहब का परिवार लाहौर से अमृतसर आकर बसा था। छुटपन यानी पांच सात साल की उम्र से ही रफी बड़े भाई की नाई की दुकान पर चले जाया करते थे और वहां से गुजरते एक फकील के नग्मों को बड़े चाव से सुना करते थे। एक दिन रफी फकीर के गाए गाने को गुनगुना रहे थे कि फकीर लौट आया और रफी साहब की सुरीली आवाज को सुनकर हैरान रह गया। फकीर ने रफी साहब को दुआ दी कि वो एक दिन इसी सुरीली आवाज के दम पर हिंदुस्तान के दिल में जगह बनाएंगे।

रफी साहब के शौक का उनके भाई को पता चला तो उसने रफी साहब को गाने की बाकायदा तालीम दिलवाने की सोची। वो रफी साहब को उस्ताद अब्दुल वाहिद के पास ले गए और उनसे दीक्षा दिलवाई। लेकिन रफी साहब का पहली बार गाने का किस्सा भी बड़ा रोचक है।

उन दिनों कुंदन लाल सहगल का गायन की दुनिया में बड़ा नाम था। लोग उनका गाना सुनने के लिए दूर दूर से आते थे। रफी साहब को पता चला कि सहगल साहब ऑल इंडिया के एक प्रोग्राम के लिए मंच पर गाने आ रहे हैं। वो तो अपने भाई के साथ उस प्रोग्राम में पहुंच गए। लेकिन एकाएक बिजली चली गई और सहगल ने गाने से इनकार कर दिया। जब सहगल चले गए तो भीड़ चिल्लाने लगी, तब रफी साहब के भाई के इसरार पर आयोजकों ने रफी साहब को मंच पर खड़ा कर दिया। रफी ने महज 13 साल की उम्र में खुले मंच पर ऐसा गाया कि लोग ताली बजाने पर मजबूर हो गए।

लेकिन इसके बाद वो गायन की तालीम में व्यस्त हो गए और फिर 20 साल की उम्र में मुंबई पहुंचे। उनको पहला गाना मिला पंजाबी फिल्म गुल बलोच से। हालांकि यहां उनको वो शोहरत नहीं मिल पाई जिसके वो हकदार थे। दो साल बाद नौशाद के म्यूजिक से सजी फिल्म अनमोल घड़ी में रफी साहब को गाने के लिए बुलाया गया। गाने के बोल थे, ‘तेरा खिलौना टूटा’। रफी ने यह गीत गाया तो नौशाद साहब ने फिल्म रिलीज होने से पहले ही ऐलान कर दिया था कि बरखुरदार ये गाना जमकर चलेगा औऱ चलेगा आपका सिक्का।

इसके बाद रफी की सफलता का सफर शुरू हुआ और ये बुलंदी तक जा पहुंचा। शहीद, दुलारी, बेजू बावरा जैसी फिल्मों ने रफी को मुख्यधारा में लाकर खड़ा कर दिया। उनकी टक्कर के गायक मिलने मुश्किल हो गए। चौदहवीं का चांद, ससुराल, दोस्ती, सूरज और ब्रह्मचारी जैसी फिल्मों के सुपरहिट होने में रफी साहब के गानों ने अहम भूमिका निभाई। इन फिल्मों के लिए उनको कई पुरस्कार मिले।

आज रफी साहब भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आवाज की रूमानियत उनके गानों की बदौलत दुनिया भऱ के संगीतप्रेमियों के दिलों में हमेशा कायम रहेगी।

Ekta Singh

Ekta Singh covers Political, Entertainment and Sports News. She believes that it is a writer’s responsibility to make sure that the readers get valuable news and hence it is imperative that the words should be written in a manner that it should be easily understood by all.

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