हिंदू-मुस्लिम समस्या बहुजनों को छद्म-युद्ध में उलझाने की साज़िश-रियाजुल्ला खान

निश्चित ही इस समस्या का विश्लेषण करने के लिए ये एक बहुजन दृष्टि है। इस नजरिये से देखें तो पता चलता है कि हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिकता की समस्या असल मे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के संबंधों पर आधारित नहीं है। बल्कि इस तनाव का संबंध असल मे सवर्ण हिंदुओं और ओबीसी एवं अनुसूचित जाति के आपसी संबंधों से है। उपनिवेश काल मे ही यह प्रयोग करके देख लिए गए थे कि किस तरह से हिन्दू मुस्लिम दंगों के दौरान एवं बाद मे ओबीसी और अनुसूचित जाति की बड़ी जनसंख्या अचानक से स्वयं को हिन्दू महसूस करने लगती है।


इस कोरोना काल में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत की लहर सी आयी हुई है। तबलीगी जमात को केंद्र मे रखते हुए मुसलमानों को भारत मे कोरोना महामारी के फैलाव के लिए जिम्मेदार बताने की भरपूर कोशिश की गयी। दिल्ली मे आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम मे जमात के दिल्ली मुख्यालय मे कई देशों से प्रतिभागी आए हुए थे। अचानक 22 मार्च को घोषित लॉक डाउन के बाद जमात के दिल्ली स्थित भवन मे अचानक से 2500 जमाती फंस गए, इनमे बड़ी संख्या मे विदेशी नागरिक भी थे। अचानक घोषित इस तालाबंदी से जमातियों को ही नहीं बल्कि देश के अनेक करोड़ों लोगों को अपनी यात्राओं और आवागमन की योजना बनाने का कोई समय नहीं मिल सका।


इस स्थिति को मीडिया ने किस तरह पेश किया। जमातियों की ही तरह कई हिन्दू बाबाओं के आश्रमों मे भी विदेशी नागरिक फंस गए थे। इन नागरिकों को तत्काल कहीं ले जाना और उनके लिए अलग से किसी तरह के विशेष इंतजाम करना संभव नहीं था। उदाहरण के लिए दक्षिण भारत मे सद्गुरु जग्गी वासुदेव के आश्रम मे उस समय 150 विदेशी शिष्य मौजूद थे। ये सब 21 फरवरी को आयोजित महाशिवरात्रि कार्यक्रम मे भाग लेने आए हुए थे। ये सभी बाद मे कवारेंटाइन किये गए। इसी तरह से 10 मार्च को मथुरा आए गुजरात के 54 हिन्दू तीर्थयात्री अचानक हुई तालाबंदी की वजह से फंस गए थे जिन्हे 15 अप्रैल को गुजरात वापस भेजा गया। अभी हाल ही मे कोटा मे फंसे हजारों छात्रों को कई राज्यों मे अपने घरों को भेजा गया है।

लेकिन इसे लेकर मीडिया के ज़रिये सांप्रदायिक उन्माद का ‘नैरेटिव’ गढ़ा गया। हिन्दू तीर्थस्थानों या आश्रमों मे अचानक से रुक गए या रोक लिए गए श्रद्धालुओं के बारे मे यह खबर चलाई गई कई ये लोग ‘फँस’ गए हैं। वहीं तबलीगी जमात के लोगों के लिए यह खबरें चलने लगीं कि वहाँ सैकड़ों मुसलमान “छुपे” हुए हैं। इस प्रकार मुसलमानों के लिए जान बूझकर “छुपे हुए हैं” जैसे शब्द को प्रचारित किया गया ताकि उनके प्रति नफरत और अविश्वास को मजबूत किया जा सके। कोरोना के खबर मे आने के पहले भी CAA, NRC जैसे मुद्दों और शाहीन बाग जैसे प्रदर्शनों के मद्देनजर मुसलमानों के खिलाफ एक नकारात्मक वातावरण पहले से ही मीडिया द्वारा बनाया जा चुका था। ऐसे मे पहले से फैलाई जा रही नफरत भरी भावनाओं को कोरोना के भय से जोड़कर और अधिक मजबूत किया जाने लगा।

इधर मुसलमानों के खिलाफ नफरत की एक नई लहर देखने को मिली जो कि भारत की सीमाएं लांघते हुए इस्लामिक राष्ट्रों तक जा पहुंची। अरब के कई देशों मे रोजगार पाने गए हुए कई भारतीय हिंदुओं के ट्वीट्स मे अचानक इस्लामोफोबिक टिप्पणियाँ नजर आने लगीं। न केवल सामान्य नागरिकों के ट्वीट्स बल्कि एक सुप्रसिद्ध बॉलीवूड गायक सोनू निगम और बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के वर्षों पुराने ट्वीट्स भी अचानक चर्चा मे आ गए। सोनू निगम ने अपने किसी पुराने ट्वीट मे जहां पाँच वक्त आने वाली नमाज़ की आवाज पर नकारात्मक टिप्पणी की थी वहीं तेजस्वी सूर्या ने मुस्लिम महिलाओं को सेक्स के दौरान चरम यौनसुख न मिलने की विचित्र टिप्पणी की थी। यह टिप्पणी उन्होंने एक अन्य पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक तारिक फतेह के हवाले से पाँच साल पहले की थी।

मुसलमानों के खिलाफ नफरत की ये दोनों लहरें आपस मे जुड़ी हुई हैं। इनका संबंध भारत मे फैल रहे सांप्रदायिक जहर से है जो हिंदुत्ववादी शक्तियों द्वारा फैलाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर तरह तरह की फेक और शरारतपूर्ण तस्वीरें और वीडियो नजर आने लगे हैं जिसमे कि कोई दाढ़ी टोपी वाला इंसान फलों पर थूक लगा रहा है या कोई नोटों मे थूक लगा रहा है। यह भी खबर फैलाई गई कि मुस्लिम युवक दूसरों के घरों मे थूककर बीमारी फैला रहे हैं। इन खबरों से प्रभावित होकर न केवल भारत के हिंदुओं ने बल्कि खाड़ी देशों मे बसे कई हिंदुओं ने भी मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए ट्वीट करना शुरू कर दिया।

ये बातें अचानक से इतनी बड़ी संख्या मे आने लगीं कि खाड़ी देशों के पत्रकारों, नेताओं और शाही परिवार के सदस्यों का ध्यान इनपर गया। इसके बाद खाड़ी देशों के सबसे प्रभावशाली लोगों ने इस पर प्रतिक्रिया देना शुरू किया। इस मुद्दे उनकी तरफ से इतनी सारी और इतनी कठोर प्रतिक्रियाएं आने लगीं कि भारत के विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री तक को हस्तक्षेप करना पड़ा। भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी 19 अप्रैल की ट्वीट के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया कि कोरोना वाइरस रंग, नस्ल, जाति, धर्म आदि देखकर हमला नहीं करता है। इसके बाद खाड़ी के देशों के कई प्रभावशाली व्यक्तियों के वक्तव्य और इंटरव्यू विस्तार से आए जिनमे भारतीयों से इस्लाम और मुसलमानों के प्रति थोड़ा बेहतर नजरिया रखने की सलाहें दी गयी थीं।

लेकिन इस सबका मतलब क्या है? क्या ये घटनाएं भारतीय समाज की किसी प्राचीन या नवीन प्रवृत्ति की तरफ इशारा करती हैं? अगर समाजशास्त्रीय और समाज मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो निश्चित ही इन बातों का एक गहरा कारण है। इन प्रवृत्तियों की जड़ें तलाशी जा सकती है और इनके पीछे छिपे राजनीतिक गणित को भी समझा जा सकता है। भारत मे उपनिवेश काल मे ही हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिकता का जो बीज पड़ गया था वह भारत की आजादी की रात मे दुनिया के सबसे बड़े सांप्रदायिक दंगे की शक्ल लेकर हमारे सामने आया। इसके बाद नेहरू और पटेल की सूझबूझ ने इसे बहुत हद तक काबू मे रखा लेकिन इस कृत्रिम शांति के गर्भ मे अशान्ति का यह बीज अंकुरित होता ही रहा।

भारत मे हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिकता पर बहुत कुछ लिखा गया है, गांधी नेहरू पटेल और अंबेडकर सहित लोहिया जैसे सर्वाधिक प्रतिभाशाली नेताओं और विचारकों ने भी इस मुद्दे को सुलझाने के लिए विशिष्ट दृष्टियाँ दी हैं। ये दृष्टियाँ सांप्रदायिकता की समस्या को सुलझाने के लिए दी गयी हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे बीच ऐसी विचारधाराएं भी हैं जो सांप्रदायिकता की समस्या को उलझाकर उसकी आड़ मे अपने रंग के राष्ट्रवाद के लिए शक्ति संचय करना चाहती है। हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली शक्तियों का भारत मे जैसे जैसे प्रभाव बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं।

क्या इस समस्या को समझने के लिए कोई निर्णायक दृष्टि हो सकती है?

निश्चित ही इस समस्या का विश्लेषण करने के लिए एक दृष्टि है। इस नजरिये से देखें तो पता चलता है कि हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिकता की समस्या असल मे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के संबंधों पर आधारित नहीं है। बल्कि इस तनाव का संबंध असल मे सवर्ण हिंदुओं और ओबीसी एवं अनुसूचित जाति के आपसी संबंधों से है। उपनिवेश काल मे ही यह प्रयोग करके देख लिए गए थे कि किस तरह से हिन्दू मुस्लिम दंगों के दौरान एवं बाद मे ओबीसी और अनुसूचित जाति की बड़ी जनसंख्या अचानक से स्वयं को हिन्दू महसूस करने लगती है।

एक किताब एक इश्वर और एक मसीहा न होने के कारण हिन्दू धर्म को एवं इस धर्म की सदस्यता को परिभाषित करना हमेशा एक असंभव सा काम रहा है। इस कठिनाई के कारण स्वयं हिन्दू बताए जाने वाले समुदायों को सवर्ण हिंदुओं की तरह सम्मान और अधिकार न देते हुए भी हिन्दू बनाए रखना एक कठिन काम है। इस कठिन काम को किन्ही अन्य उपायों से सिद्ध किया जाता रहा है। इस काम के लिए भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उनकी देशभक्ति एवं नैतिकता सहित उनके धार्मिक आचरण, पूजा पद्धति आदि के प्रति भारत के ओबीसी एवं अनुसूचित जाति जनजाति के मनों मे नफरत घोली जाती है।

इस नफरत का परिणाम यह होता है कि एक आम ओबीसी या अनुसूचित जाति का युवक हिन्दू धर्म मे अपने लिए सम्मानित स्थान मांगने की बजाय मुसलमानों को भारत मे मिले हुए स्थान पर प्रश्न उठाने लगता है। इस प्रकार सांप्रदायिक नफरत भारत के सबसे बड़े और सबसे कमजोर धर्म को एक विशेष तरह की सुरक्षा दे देती है। इसीलिए भारत की वर्तमान परिस्थितियों मे सांप्रदायिकता की समस्या और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रस्तावनाएं एक साथ बलवती होती जा रही हैं। इस प्रकार इस नजरिए से देखें तो हिन्दू मुस्लिम समस्या असल मे भारत के ओबीसी और अनुसूचित जाति की एक विशाल जनसंख्या को एक छद्म युद्ध मे उलझाने के लिए रची जाती है। इस छद्म युद्ध मे जीत या हार दोनों का भारत के ओबीसी और अनुसूचित जाति को कोई लाभ नहीं मिलता।

Ekta Singh

Ekta Singh covers Political, Entertainment and Sports News. She believes that it is a writer’s responsibility to make sure that the readers get valuable news and hence it is imperative that the words should be written in a manner that it should be easily understood by all.

Recent Posts

लखनऊ की इति राज बनीं मिसेज इंडिया यूनिवर्सल की फर्स्ट रनर अप..

लखनऊ की पूर्व एंकर इति राज ने मिसेज इंडिया यूनिवर्सल 2023 फर्स्ट रनरअप का खिताब…

11 months ago

एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ का रिलीज हुआ जबरदस्त Teaser..

2002 के गुजरात के गोधरा कांड पर आधारित फिल्म ‘एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ का टीजर…

11 months ago

2% इंट्रेस्ट लोन का जाल, चीन के चक्कर में पड़कर कहीं बांग्लादेश भी न बन जाए श्रीलंका..

1971 में अस्तित्व में आए बांग्लादेश चीनी कर्ज में फंसता जा रहा है. बांग्लादेश के…

11 months ago

कैलिफोर्निया में राहुल गांधी, बीजेपी ने कहा, ‘पीएम मोदी बॉस हैं’ यह बात कांग्रेस नेता नहीं पचा सकते..

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर नई संसद में…

11 months ago

‘रवींद्र जडेजा BJP कार्यकर्ता, उनकी बदौलत CSK ने जीती IPL ट्रॉफी’, तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई का बयान..

तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नमलाई ने चेन्नई सुपरकिंग्स को पांचवीं बार आईपीएल विजेता बनने…

11 months ago