शासन प्रशासन का राजनीतिकरण बनाम संवैधानिक लोकतंत्र की परिकल्पना ~ रियाजुल्ला खान

291
Riazullah Khan
Riazullah Khan

मुख्यधारा की राजनीति में विचारधारा के फैलाव होने से वैकल्पिक राजनीति की संभावना बढ़ती है और यह वैकल्पिक राजनीति अधिक टिकाऊ भी रहती है। यह काम भारत में गांधी काल से ही चला रहा है। गांधीजी खुद ही उस राजनीति को आगे बढ़ाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे जो सिर्फ सत्ता परिवर्तन न करके बल्कि संपूर्ण सामाजिक व आर्थिक बदलाव को प्रेरित कर सके। ऐसे बहुत सारे साम्यवादी, समाजवादी अथवा वामपंथी दलों को गांधी के समग्र राजनीति वाली श्रेणी में रख सकते हैं, जिनका एकमात्र काम सिर्फ सत्ता तक पहुंचना नहीं होता बल्कि संपूर्ण सामाजिक व आर्थिक प्रणाली को रीडिजाइन करना होता है।

जेपी व किशन पटनायक को एक नई राजनीति के पथप्रदर्शक के तौर पर देखा जा सकता है। गांधी की हत्या के बाद जो राजनीति रही है उसमें ऐसे बहुत सारे लोग रहे हैं जो उस वैकल्पिक राजनीति को आगे बढ़ाते रहे और जिनका उद्देश्य वोटों की राजनीति के बजाय विचारधारा के फैलाव पर रहा, वोटों का विस्तार वैकल्पिक पार्टी को जन्म देती है। जिसका परिणाम हम असम गण परिषद अथवा वर्तमान की आम आदमी पार्टी की राजनीति के रूप में देख सकते हैं। वीपी सिंह काल की जनता दल वाली राजनीति को वोटों को पैमाना मानकर करने वाली एक राजनीति के रूप में देख सकते हैं।वोटों के पैमाने पर देखें तो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा व विचारधारा का अंतर्विरोध, असम गण परिषद व जनता दल को अधिक टिकाऊ नहीं रहने दी थी। यदि आम आदमी पार्टी भी अपने पुराने महारथियों को किनारे करती दिख रही है तो यह भारत में एक नये तरीके के वैकल्पिक राजनीति का गर्भपात ही कहा जाएगा (कहा भी जा रहा है).

गांधीजी ने स्वराज्य के संदर्भ में कहा था कि स्वराज का अर्थ है ‘सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के लिए सतत् प्रयत्न करना फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का। यदि हर छोटी बात के लिए लोग सरकार का मुंह ताकने लगेंगे तो वह स्वराज सरकार किसी काम की नहीं होगी’।गांधी जी के कथन को आप जितना चाहे उतनी बार पढ़कर अलग-अलग मंतव्य समझते रहिये किंतु उनका कथन आज भी प्रासंगिक है। शरीर को विषमुक्त भोजन की जरूरत है। जिससे तन व मन दोनों स्वस्थ रहें। राजनीतिक संस्थाओं व सरकार को समाज पर हावी न होने दिया जाए, जिससे कि समाज अपने भौतिक व सामाजिक संसाधनों का अधिक से अधिक स्व नियमन कर सके। यही आज की वैकल्पिक राजनीति की जरूरत है, जिसमें ग्राम पंचायतों को दिल्ली से निर्देश की जरूरत ना पड़े। बल्कि गांव का उसका जल, जंगल और जमीन पर स्वराज कायम रहे। ऐसी वैकल्पिक राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों, संगठनों व नेताओं की पहचान जरूरी है। पूंजीवादके खिलाफ देशभक्ति की भावना विकसित करने की जरूरत हिंदुत्व की राजनीति, विदेशी पूंजी और कारपोरेट की लूट के खिलाफ देशभक्ति की भावना विकसित करने की जरूरत।

प्रशासन का राजनीतिकरण न हो इसपर सभी राजनैतिक दलों को सोचने की ज़रूरत है ।फिर चाहे पश्चिम बंगाल हो या उत्तर प्रदेश अगर सरकारी मशीनरी का राजनीतिकरण हो जाएगा तो देश में कोई भी विपक्ष अपनी भूमिका का निर्वहन नही कर पायेगा क्योंकि येन केन प्रकेंन किसी का पेट्रोल पंप या किसी का प्रधानमंत्री आवास बुलडोजर से गिरता रहेगा ऐसे में लोकतंत्र में पक्ष विपक्ष के ताने बाने को ही क्षति पहुंचेगी ये भारत के लोकतंत्र को संवैधानिक रूप से पक्ष विपक्ष को प्रदत्त अधिकारों का हनन होगा हमे एक स्वच्छ राजनीतिक ,सामाजिक वातावरण में जनता की भलाई के लिए मिलकर काम करना होगा तभी अम्बेडकर,गांधी,लोहिया,भगत सिंह के सपनो के भारत का निर्माण सम्भव हो पायेगा।