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प्रमुख अर्थशास्त्री चक्रवर्ती ने कहा – आरबीआई को नए नोट छापकर घाटे की भरपाई नहीं करनी चाहिए

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पिनाकी चक्रवर्ती ने रविवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए नए नोट नहीं छापने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह वित्तीय अपव्यय होगा। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई की कि यदि कोरोना की तीसरी बड़ी लहर नहीं आई तो भारत का अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार होगा। 

राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के निदेशक चक्रवर्ती ने कहा कि उच्च मुद्रास्फीति नि:संदेह चिंताजनक है। मुद्रास्फीति को ऐसे स्तर पर स्थिर करना जरूरी है जिसका आसानी से नियंत्रण किया जा सके।

उन्होंने कहा कि नए नोट छापने पर बहस की शुरुआत कोरोना महामारी के आने के साथ हुई थी। राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए नए छापने पर कोई विचार नहीं हुआ। साथ ही कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि आरबीआई कभी ऐसा करेगा।

आरबीआई और सरकार के बीच सहमति ज्ञापन (एमओयू) के तहत हमने 1996 में इसे बंद कर दिया था। हमें इसकी ओर वापस नहीं लौटना चाहिए। विभिन्न तबकों की ओर से ऐसी मांग की जा रही है कि आरबीआई को नए नोट छापकर राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण करना चाहिए।

आरबीआई द्वारा राजकोषीय घाटे के मौद्रीकरण का आशय यह है कि केंद्रीय बैंक सरकार के किसी आपात खर्च को पूरा करने के लिए नए नोट छापे और राजकोषीय घाटे को पूरा करे। 

उन्होंने कहा कि भारत की मौजूदा वृहद आर्थिक स्थिति निश्चित रूप से कोरोना महामारी की पहली लहर की तुलना में अच्छी है। यदि बड़ी तीसरी लहर नहीं आती है, तो आगे चलकर हमें अधिक तेज आर्थिक सुधार देखने को मिलेगा।

महामारी के दौरान रोजगार गंवाने वालों को नकद राशि देने पर उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौरान हम रोजगार सर्किल का बचाव नहीं कर सकते। रोजगार बढ़ाने के लिए तेजी से सुधार जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि कम अवधि में वित्तीय उपायों के जरिए उपलब्ध कराए गए समर्थन से आजीविका को लेकर कुछ सुरक्षा मिलनी चाहिए

Mohd Badar

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