भारत में फाइजर की वैक्सीन को मंजूरी मिलने से पहले मेडिकल जर्नल लेसेंट में छपी एक रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है। इसमें कहा गया है कि फाइजर-बायोएनटेक टीके की दोनों डोज ले चुके लोगों में डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ मूल वायरस की तुलना में पांच गुना कम एंटीबॉडी है। डेल्टा वेरिएंट कोरोना का वह स्वरूप है जो सबसे पहले भारत में पकड़ में आया था और इसे दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
स्टडी में यह भी कहा गया है कि वायरस को पहचानने और इसके खिलाफ लड़ने वाला एंटीबॉडी अधिक उम्र के लोगों में कम पाई जा रही है। इसका स्तर समय के साथ कम होता है। इसका मतलब है कि संवेदनशील लोगों को अतिरिक्त बूस्टर डोज की आवश्यकता होगी।
यह ब्रिटेन सरकार के उस प्लान को सही साबित करता है जिसके तहत दो डोज के बीच अंतर को घटाया जा रहा है। उन्होंने पाया कि फाइजर के एक टीके के बाद लोगों में B.1.617.2 वेरिएंट के खिलाफ कम एंटीबॉडी उत्पन्न हो रही है। यह अध्ययन 250 लोगों के खून की जांच में पाए गए एंटीबॉडी के विश्लेषण के जरिए किया गया, जिन्होंने फाइजर का एक या दोनों टीका लगवा लिया था। विशेषज्ञों ने 5 अलग वेरिएंट वाले वायरस को सेल्स में घुसने से रोकने के लिए एंडीबॉडी की क्षमता जांची, जिसे न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कहा जाता है।
यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है जब भारत में जल्द ही इस वैक्सीन को मंजूरी मिल सकती है। कई देशों में 12-18 वर्ष तक के किशोरों को भी यह टीका लगाया जा रहा है।
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