ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जिन वैज्ञानिकों ने कोरोना की पहली वैक्सीन बनाने का दावा किया था। अब वही वैज्ञानिक कोरोना के नए स्ट्रेन को हावी होते देख अब नया टीका बनाने के काम में जुट गए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि टीका नए स्ट्रेन पर असरदार होता है। लेकिन उसके प्रभाव में अंतर आता है तो प्रयोगशाला में सेल कस्चर के जरिए उसमें जरूरी बदलाव एक दिन के भीतर संभव है।
इसके बाद टीका नए स्ट्रेन के खिलाफ भी काम करेगा। ऑक्सफोर्ड के टीके की मुख्य सुत्रधार वैज्ञानिक प्रो. साराह गिलबर्ट का कहना है कि परीक्षण का नतीजा फरवरी मध्य तक आ सकता है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि टीम के सदस्य वायरस के हर रूप पर नजर बनाए हुए है। उम्मीद है कि वर्ष 2021 में और नए स्ट्रेन की पहचान होगी। कंपनी की कोशिश है कि अगर टीके में किसी तरह का कोई बदलाव होता है तो भी उसके उत्पादन और वितरण पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
ऑक्सफोर्ड के टीके का उत्पादन पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट में ‘कोविशील्ड’ नाम से हो रहा है। दुनिया के जिन देशों में इस टीके का उत्पादन हो रहा है उन्हें नए टीके के लिए तैयार रहना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार कोरोना का नया स्ट्रेन दुनिया के 60 देशों में पहुंच चुका है।
लीड्स यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट प्रो. स्टीफन ग्रिफिन का कहना है कि दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन 501वाईवी2 को लेकर यही पता चला है कि ये शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को धोखा दे सकता है। टीका लगवाने से कोई नुकसान नहीं है। नए स्ट्रेन को लेकर टीकाकरण अभियान नहीं थमना चाहिए।
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