बैठक के लिए गए किसानों ने ठुकराया सरकार का दिया खाना, कहा- हम खाना बांधकर लाए हैं, ब्रेक के बाद फिर शुरू हुई वार्ता

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कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसानों का आंदोलन लगातार आठवें दिन जारी है। इस आंदोलन की आग लगातार फैलती जा रही है। पिछली बार की विफल बातचीत के बाद आज दोबारा किसानों और सरकार के बीच वार्ता शुरू हो चुकी है। उम्मीद जताई जा रही है कि इससे कोई हल निकल सकता है। आंदोलन के कारण गुरुवार को लगातार आठवें दिन दिल्ली एनसीआर का यातायात प्रभावित है। कई बॉर्डर अभी भी बंद हैं। वहीं कई सड़कों को किसानों ने जाम कर दिया है।

दिल्ली की लगभग सभी सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन का दायरा अब बढ़ता जा रहा है। किसान प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार अपनी बातों पर अड़ी रहती है तो वे देशभर में बंद का एलान कर सकते हैं। आखिर वो कौन सी बात है जो किसान संगठनों और केंद्र सरकार के मध्य बाधा बन कर सामने आ रही है। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने बैठक में जाने से पहले कहा, किसानों का मन साफ है। हम अपनी मांगों को लेकर एकमत हैं। सवाल एक ही है जो केंद्र सरकार के गले में फंसा है। यूं कहें कि सरकार ने खुद उस सवाल को फंसाया है। यहां बात भरोसे की है। किसान, सरकार से एक ही सवाल पूछते हैं, हम आप पर भरोसा कैसे करें। हमें इसी सवाल का जवाब नहीं मिलता।

अब सरकार कहती है कि कमेटी बना देंगे, एमएसपी को कानूनी प्रावधान में शामिल कर देंगे। किसान अब सरकार पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं। किसानों का एक ही सवाल है। हम पूछते हैं कि उस वक्त सरकार को किसानों की याद क्यों नहीं आई, जब ये तीन कानून बनाए जा रहे थे। तब किसी को भरोसे में नहीं लिया। सरकार ने खुल कर अपनी मनमर्जी की। अब दोनों पक्षों के बीच भरोसा कैसे बनेगा। लोग भ्रम की बात फैला रहे हैं, हम कह रहे हैं कि भ्रम किसी को नहीं है, बात केवल विश्चास और भरोसे की है। इस पर केंद्र सरकार खरी नहीं उतरती है।

किसान नेता कुलवंत सिंह ने कहा, जब पंजाब में लंबे समय से आंदोलन चल रहा था तो केंद्र सरकार बातचीत के लिए आगे क्यों नहीं आई। सरकार की तरफ से कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ, अगर बैठक हुई तो वह महज एक औपचारिकता रही। सरकार ने ये सोचा था कि छोटा-मोटा आंदोलन है, खत्म हो जाएगा। हार थक कर किसान चुप हो जाएंगे। सरकार के साथ अब बातचीत शुरू हुई है।
कुलवंत सिंह के मुताबिक, इसमें कोई नया एजेंडा नहीं रहेगा। किसानों की मांग है कि तीनों कानून वापस हों। दरअसल, केंद्र सरकार ने किसानों को कुछ समझा ही नहीं। न इनकी नीयत साफ है और न ही नीति। ये लोग अब भी किसानों को बरगलाने के प्रयासों में लगे हैं। सरकार अब चाहे जो मर्जी आश्वासन दे, लेकिन किसान उस पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं। वजह, इससे पहले केंद्र सरकार ने कभी भी खेती-किसानी के मामले में किसान से बात नहीं की, जो मन में आया, उसे कानून की शक्ल दे दी।

किसान नेता हनानमौला बताते हैं, अब मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रहेगा। सरकार ने न तो पहले ऐसा कोई काम किया और न अब कर रही है कि जिससे दोनों के बीच कोई भरोसा बन सके। किसान, केंद्र सरकार की बात पर भरोसा कैसे कर लें। मध्यप्रदेश के किसान नेता शिव कुमार कक्काजी के अनुसार, सरकार यह सोच रही है कि किसानों को कुछ मालूम ही नहीं है। वह अभी तक तीनों कानूनों को समझाने में लगी है।

हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह कहते हैं, इन तीन कृषि कानूनों की जानकारी पर किसानों ने पीएचडी कर ली है। दूसरी तरफ, सरकार यह कह रही है कि अभी किसानों को जागरूक करना बाकी है। उन्हें कानूनों को लेकर भ्रम हो गया है। ये कानून कितने अच्छे हैं, हर किसान ये सच्चाई जान चुका है। ये कानून किसानों के लिए मौत का फरमान हैं।

किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्रहाना कहते हैं कि किसानों के मुद्दों पर केंद्र सरकार कभी भी संवेदनशील नहीं रही। किसानों ने उस वक्त भी सरकार को चेताया था, जब इन कानूनों को पास कराया जा रहा था। एक बार भी सरकार की तरफ से ये नहीं कहा गया कि हम तीनों बिलों को संसद में ले जाने से पहले किसानों से बात करेंगे। ऐसे में भरोसा कहां आएगा। अब केंद्र सरकार अपने इसी खोट में फंस कर रह गई है।