किसान आंदोलन में ‘फिर वही बात’। सरकार ने कहा, कानून वापस नहीं लेंगे। किसानों ने कहा, कानून वापसी तक घर वापसी नहीं। अगली वार्ता 15 जनवरी को है। आठवें दौर की वार्ता में कितनी प्रगति हुई, यह 11 जनवरी को साफ हो पाएगा। सुप्रीम कोर्ट में उस दिन सुनवाई प्रस्तावित है। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि यदि सरकार की ओर से बताया जाएगा कि वार्ता प्रगति पर है, तो सुनवाई टाल सकते हैं। ऐसे में वार्ता की प्रगति पर ही 11 जनवरी की सुनवाई निर्भर करेगी। हालांकि गतिरोध अब भी कायम है। यह भी साफ है कि वार्ता में कोई प्रगति नहीं है। फिर ‘डेडलॉक’ की ओर बढ़ रहे ‘डायलॉग’ के ‘प्रोग्रेस’ पर से पर्दा अब 11 जनवरी को उठेगा। इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा की 10 जनवरी की बैठक में अगली रणनीति पर मंत्रणा होगी।
अब सरकार और किसान संगठन यही संदेश देना चाहते कि दोनों वार्ता से हल के पक्षधर हैं। इसलिए दोनों तरफ से एक-दूसरे के पाले में गेंद डाली जा रही है। आंदोलनकारी किसानों को अहसास है कि सरकार कानून रद नहीं करने वाली है। ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा वार्ता से इनकार कर खुद को कटघरे में खड़ा नहीं करना चाहता है। संभवतः इसलिए दोनों तरफ से वार्ता की आखिरी उम्मीद पर तारीख पर तारीख का सिलसिला जारी है। साथ-साथ हठ भी। पहले दौर की बातचीत से आठवें दौर की बातचीत तक वार्ता जहां से शुरू हुई थी, वहीं अटककर रह गई है। प्रगति के नाम पर अब तक गतिरोध ही नतीजे के तौर पर सामने आया है। भाकियू डकौंदा के मंजीत सिंह धनेर कहते हैं कि सरकार रोज बुलाएगी, तब भी जाएंगे। उनकी दलील है कि सरकार बातचीत के लिए हमसे (संयुक्त मोर्चा) ना कहलवा कर आंदोलनकारी किसानों को बदनाम करना चाहती है।
शुक्रवार की बैठक में भी सरकार ने कानून वापसी के बगैर संशोधन के कई विकल्प सुझाए। पिछले दरवाजे से पहल भी की। तीनों कानूनों की वापसी के बजाय आंदोलनकारी किसान संगठनों से विकल्पों पर प्रस्ताव की उम्मीद की। पंजाब-हरियाणा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ लिखित गारंटी, राज्यों को अधिकार, कमेटी के गठन के भरोसे का विकल्प। बदले में तीन कानूनों की वापसी की जिद छोड़ कुछ जरूरी संशोधन, जिन पर अब तक आपसी सहमति बन चुकी है। इन वैकल्पिक फॉर्मूले को भी किसान संगठनों ने सिरे से खारिज कर दिया। संयुक्त मोर्चा कानून वापसी की मांग पर कायम है। पंजाब-हरियाणा के भाजपा नेताओं से केंद्रीय नेतृत्व की मुलाकात और अन्य समर्थक किसान संगठनों से सरकार की बातचीत को लेकर आंदोलनकारी किसान आश्वस्त हैं कि इनका असर उनके आंदोलन पर नहीं पड़ने वाला है।